फ्लिपकार्ट में रोबोट की फौज | पीरजादा अबरार / January 19, 2020 | | | | |
बेंगलूरु के बाहरी इलाके में ई-कॉमर्स क्षेत्र की दिग्गज कंपनी फ्लिपकार्ट का एक केंद्र है जहां सामान की छंटनी की जाती है और आगे ग्राहकों के लिए भेजा जाता है। हैंगर के आकार की इस इमारत में जाने पर आप मशीनों की आवाज सुन सकते हैं। ये हजारों की संख्या में काम कर रहे रोबोट (जिन्हें कोबोट कहा जाता है) की आवाज है जो यहां कर्मियों के साथ साथ काम कर रहे हैं।
कर्मी नारंगी रंग के रोबोट पर उत्पाद रखते हैं और कोबोट प्रत्येक पार्सल पर लिखी जानकारी पढ़कर उन्हें अलग अलग करके आवश्यक जगह पर रख देते हैं। यहां काम कर रहे हजारों कर्मचारियों में से एक नकुल पूंजी कहते हैं, 'इनके साथ काम करना शानदार है।'
पहले पूंजी ग्राहक द्वारा ऑर्डर करने वाले सामान को उठाकर उसे अलग करते थे और वापस उस जगह पर जाते थे जहां सामान रखे हुए हैं। विभिन्न स्थानों के लिए सामान भेजने के क्रम में वे घंटों इधर से उधर जाते थे। पूंजी के साथ काम करने वाले ललित मांझी कहते हैं, 'मुझे फिलहाल तकनीकी उपकरणों के साथ काम करते हुए सुरक्षा मानकों का ध्यान रखने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।'
ऑनलाइन 20 लाख अतिरिक्त ग्राहकों तक पहुंच बनाने के लक्ष्य पर काम कर रही फ्लिपकार्ट तकनीक के बढ़ते प्रयोग के बीच रोबोट पर दांव लगा रही है। फिलहाल कंपनी 80 से अधिक श्रेणियों में देश के सभी 20,000 पिनकोड पर अपनी सेवाएं दे रही है।
फ्लिपकार्ट में रोबोटिक्स के प्रमुख प्रणव सक्सेना कहते हैं, 'अगर आप कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं तो पैकेजों की छंटनी मेंं लगने वाले समय को घटाना होगा। मानवीय तरीके से इस काम को करने में गलती होने की भी संभावना बनी रहती है। कोबोट को इस्तेमाल करने के पीछे विचार यह है कि यह बड़े पैमाने पर काम करेंगे जिससे ग्राहकों को तेज सेवा मिलेगी।'
पिछले वर्ष प्रायोगिक परियोजना के तौर पर रोबोट का इस्तेमाल शुरू करने वाली कंपनी ने बेंगलूरु के सुकोया रोड स्थित फैसिलिटी केंद्र में उनकी संख्या शुरुआत के 450 से चार गुना बढ़ा दी है। मूल रूप से स्वचालित निर्देशित वाहन (एजीवी) रोबोट प्रति घंटे 18,000 पैकेजों की छंटनी कर सकते हैं। वे चौबीसों घंटे काम करने में सक्षम हैं और अपनी बैटरी खत्म होने पर अलग-अलग चार्जिंग प्वाइंट पर खुद को चार्ज करते हैं। फ्लिपकार्ट के अनुसार, ये एजीवी या कोबोट्स आसानी से एक काम से दूसरे काम में लगाए जा सकते हैं। इससे कंपनी को बिग बिलिनयन डे जैसे समय में बेहतर सेवा देने में आसानी होती है।
सक्सेना कहते हैं, 'जब आप तेजी से प्रसार करते हैं तो ऐसे समय में स्केलिंग अनेक तरह की समस्या पैदा करती है। विशेषकर, ऐसे समय में जब आपको इस बात की जानकारी न हो कि आपका कितना विस्तार होगा। उदाहरण के लिए, तीन साल पहले आपको नहीं पता था कि लोग कपड़ों की ज्यादा खरीदारी करेंगे या इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान की। इन सबके प्रबंधन के लिए आपको सेवाओं में लचीलापन लाने की जरूरत होती है और रोबोटिक्स इसमें अहम भूमिका निभाता है।'
ऑर्डर की छंटनी करने वाली फ्लिपकार्ट की फैसिलिटी का आकार फुटबॉल स्टेडियम के बराबर है और इसमें दो फ्लोर हैं। एक कर्मी प्रत्येक पैकेज को स्कैन करता है और इसे उचित स्थान पर भेजने के लिए कन्वेयर बेल्ट पर रख देता है। वहां, एक अन्य कर्मी इसे रोबोट को सौंप देता है जो सामान पर लिखे बारकोड को पढऩे के लिए इसे स्कैनिंग मशीन तक लेकर जाता है। इसमें लिखी जानकारी के हिसाब से रोबोट संबंधित पिनकोड पर सामान भेजने से जुड़े स्थान पर लेजाकर सामान रख देता है।
उस स्थान तक जाने के लिए सबसे छोटे रास्ते का पता लगाने के लिए रोबोट मशीन लर्निंग (एमएल) तकनीक का प्रयोग करता है। रोबोट एक दूसरे से रियल टाइम में संवाद भी करते हैं, चाहे वह एक दूसरे से टकराने से बचने के लिए हो या सामान के वितरण के लिए। फ्लिपकार्ट में वऌिरष्ठ प्रबंधक और कंपनी की ऑटोमेशन, शोध एवं विकास टीम का हिस्सा रहे निखिल वर्तक कहते हैं, 'रोबोट की मदद से हम 99.9 प्रतिशत सटीकता के स्तर पर पहुंच गए हैं।'
काम पर जाने से पहले रोबोट नियंत्रित करने वाले कर्मियों को कठिन प्रशिक्षण से गुजरना होता है। ऑटोमेशन क्षेत्र में कर्मियों को सुरक्षा हेलमेट, जैकेट और जूते पहना जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि फ्लिपकार्ट में रोबोट का उपयोग आपूर्ति शृंखला के स्वचालन की दिशा में अहम कदम साबित होगा। प्रबंधन सलाहकार फर्म प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस में एसोसिएट वाइस प्रेसीडेंट अश्विन कृष्णमूर्ति कहते हैं, 'भारत में कंपनियों ने रोबोट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। वॉलमार्ट द्वारा रोबोटिक्स स्टार्टअप के अधिग्रण से फ्लिपकार्ट को काफी मदद मिल रही है और कोबोट की मदद से सामान छांटने की दक्षता में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है।'
किसी भी ई-कॉमर्स कंपनी के लिए वेयरहाउस और आपूर्ति शृंखला सबसे जटिल पायदान होते हैं। ईवाई इंडिया में ई-कॉमर्स एवं उपभोक्ता इंटरनेट के लीडर तथा पार्टनर अंकुर पहवा के अनुसार अब ये कंपनियां खरीदारी वाले दिन या मात्र 4 घंटे में डिलिवरी जैसे उपायों पर काम कर रही हैं और इसके लिए कंपनियों को लॉजिस्टिक, वेयरहाउसिंग तथा आपूर्ति शृंखला पर काफी ध्यान देना होगा। वह कहते हैं, 'वेयरहाउस में रोबोटिक्स का उपयोग करने से प्रदर्शन क्षमता में 5-10 गुना तक की बढ़ोतरी होती है। ऑनलाइन खरीदारी कारोबार में तेजी लाने और लॉजिस्टिक लागत को कम करने के लिए वेयरहाउस में इस उन्नतक तकनीक का उपयोग और कुशल मानव श्रम को उन्नत बनाना काफी अहम है।' दूसरे वैश्विक बाजारों के साथ भारत भी ड्रोन, स्वचलित वाहन जैसी नई तकनीकों का परीक्षण कर रहा है, जिससे मानवीय हस्तक्षेप कम होगा। कंपनियां कृत्रिम मेधा (एआई) और एमएल जैसी तकनीकों में भी निवेश कर रही हैं। आपूर्ति शृंखला में एआई के प्रयोग से बेहतर प्रबंधन, उत्पादों की छंटनी और मांग का सटीक अनुमान लगाने में मदद करती है जिससे क्षमता सुधार के साथ साथ ग्राहक संतुष्टि भी बेहतर होती है।
ईवाई के पाहवा कहते हैं, 'एमेजॉन और वॉलमार्ट ने आरएफआईडी तकनीक के साथ ड्रोन विकसित करने में अच्छी प्रगति की है और इसकी मदद से इन्वेंटरी प्रबंधन को स्वचलित करने में मदद मिलेगी। ड्रोन रियल टाइम प्रबंधन और स्टॉक खत्म होने जैसी चुनौतियों का सामना करने में भी अहम योगदान करेंगे।' इंटरनैशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स के अनुसार, भारत में औद्योगिक रोबोटों की बिक्री नए रिकॉर्ड पर पहुंच गई है और अकेले 2018 में उद्योगों में 4,771 रोबोट स्थापित किए गए। यह पिछले वर्ष की तुलना में 39 प्रतिशत अधिक है। सालाना स्तर पर उद्योगों में रोबोट लाए जाने के मामले में भारत दुनिया में 11वें स्थान पर है। हालांकि इनमें से अधिकांश रोबोट दूसरे देशों से खरीदे जाते हैं, लेकिन गुडग़ांव स्थित ग्रेऑरेंज भारत में काफी पहले शुरू किए गए ऐसे रोबोटिक्स स्टार्ट-अप में से एक है जो उन्नत रोबोटिक्स सिस्टम को डिजाइन, निर्माण और तैनात करती हैं। ग्रेऑरेंज के रोबोट को महिंद्रा, डेल्हीवरी, डीटीडीसी और पेपरफ्राई जैसी कंपनियों द्वारा उपयोग किया जा रहा है।
ऑक्सफर्ड इकनॉमिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर करीब 22.5 लाख रोबोट का उपयोग होता है और पिछले तीन दशक में यह संख्या तीन गुना से भी अधिक बढ़ी है। रुझान बताते हैं कि अगले 20 वर्षों में रोबोट का वैश्विक उपयोग 20 गुना बढ़कर साल 2030 तक 2 करोड़ तक पहुंच जाएगा।
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