सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लाइसेंस शुल्क बकाये को समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) को जोडऩे के उसके आदेश के खिलाफ दूरसंचार कंपनियों की समीक्षा याचिका खारिज किए जाने के पश्चात सबकी निगाहें सरकार के अगले कदम पर हैं। करीब 15 दूरसंचार कंपनियों (जिनमें से कई बंद हो गईं या बिक गईं) को 1.47 लाख करोड़ रुपये की राशि चुकानी है। इसमें जुर्माने और ब्याज की राशि शामिल है। दूरसंचार विभाग के पास यह विकल्प है कि वह सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति लेकर उद्योग जगत को एजीआर बकाया भुगतान को व्यवस्थित करने को कहे। यदि सरकार या न्यायपालिका से राहत नहीं मिलती है तो दूरसंचार उद्योग को गहन वित्तीय तनाव से बचाने का एकमात्र यही तरीका नजर आता है।
यह सच है कि 1.47 लाख करोड़ रुपये का पूरा भुगतान चालू वित्त वर्ष में सरकार की राजस्व कमी पूरी करने में काफी मददगार साबित होगा। इसके अलावा यदि गैर दूरसंचार कंपनियों का 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का एजीआर बकाया 24 जनवरी तक हासिल हो जाता है तो यह सरकार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि वह पहले ही बढ़ते राजकोषीय अंतर से जूझ रही है। परंतु इस मामले में सरकार को अधिकतम राजस्व हासिल करने के विचार से बचना चाहिए और इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि देश के इस अग्रणी क्षेत्र की दिक्कतों को दूर किया जा सके।
फिलहाल दूरसंचार विभाग या किसी भी अन्य सरकारी विभाग को चरणबद्ध भुगतान विकल्प को दूरसंचार उद्योग के लिए राहत मानने के बजाय इसे बचाने का एक उपाय मानना चाहिए। इसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसके कदमों के दीर्घावधि में क्या परिणाम होंगे। कम से कम एक ऑपरेटर यानी वोडाफोन आइडिया पर यदि यह दबाव बनाया गया कि वह इस सप्ताह के अंत तक 50,000 करोड़ रुपये चुकता करे तो उसका पतन तय है। यानी दुनिया की अव्वल दूरसंचार कंपनियों में से एक ब्रिटेन की वोडाफोन का भारत में सफर समाप्त हो जाएगा। यह कंपनी एक दशक से भी पहले भारत में सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाई थी। चूंकि यह क्षेत्र प्रतिस्पर्धा के कारण दबाव में नहीं है इसलिए एक बड़ी कंपनी का यूं पतन होना निवेशकों को प्रभावित करेगा। इसका असर बैंकिंग पर भी पड़ेगा और सरकार के लिए लागत बढ़ेगी।
एक अन्य शीर्ष दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल को 35,000 करोड़ रुपये से अधिक का एजीआर बकाया चुकाना है। मजबूर करने पर यह कंपनी समय सीमा का ध्यान रख सकती है क्योंकि उसने हाल ही में फंड जुटाया है। परंतु इसका बुरा असर कंपनी की आने वाले दिनों की निवेश संभावनाओं पर अवश्य पड़ेगा। पहला झटका तो उसकी 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी की संभावनाओं को ही लगेगा। अतीत में स्पेक्ट्रम की अच्छी खासी कीमतों और रिलायंस जियो के आगमन के बाद आक्रामक प्रतिस्पर्धा के चलते कीमतें कम होने के चलते दूरसंचार उद्योग पहले ही बहुत अधिक कमजोर हो चुका है।
सरकार पिछले 14 वर्ष से भी अधिक समय से दूरसंचार कंपनियों के साथ विभिन्न मंचों पर इस मामले में जूझती रही है और अक्टूबर 2019 में उसे उस समय इस मामले में जीत मिली जब सर्वोच्च न्यायालय ने लंबित लाइसेंसिंग शुल्क और स्पेक्ट्रम उपभोग शुल्क के आकलन की एजीआर की दूरसंचार विभाग की परिभाषा को मान लिया। बहरहाल, दूरसंचार विभाग को दूरसंचार उद्योग की स्थिति पर ध्यान देने के अलावा दीर्घावधि के राजस्व लक्ष्यों पर भी विचार करना चाहिए। बात यह है कि यदि दूरसंचार क्षेत्र बचता है तो उसका राजस्व सरकार के साथ साझा होता रहेगा। निरंतर राजस्व प्राप्ति के इस स्रोत को नुकसान पहुंचाने से क्या हासिल होगा?
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