चैनल शुल्क में बदलाव पर ट्राई बनाम भारतीय प्रसारक | मीडिया मंत्र | | वनिता कोहली-खांडेकर / January 17, 2020 | | | | |
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) एक असंभव काम करने में सफल रहा है। इसने भारतीय प्रसारकों को एकजुट कर दिया है। देश की हरेक बड़ी प्रसारक कंपनी के प्रमुख पिछले हफ्ते मुंबई में एक मंच पर इक_ा हुए थे। इनमें सोनी के एन पी सिंह, ज़ी के पुनीत गोयनका, डिज्नी-स्टार के उदय शंकर और टीवी टुडे के अरुण पुरी भी शामिल थे। ये सभी 74,000 करोड़ रुपये आकार के भारतीय टीवी बाजार में हिस्सेदारी के लिए कड़ी प्रतिस्पद्र्धा करते रहे हैं। उन्होंने कभी भी एक दूसरे के लिए कुछ नहीं बोला है। लेकिन भारतीय प्रसारण फाउंडेशन (आईबीएफ) के एक संवाददाता सम्मेलन में ये सभी एक सुर में बोलते हुए सुनाई दिए। यह काफी असामान्य है लेकिन यह समय ही असामान्य है।
इस साल 1 जनवरी को ट्राई ने 11 महीने पहले लागू की गई शुल्क व्यवस्था में कुछ बदलावों की घोषणा की है। इन बदलावों के संदर्भ में ही आईबीएफ ने 10 जनवरी को यह संवाददाता सम्मेलन किया था। उसके बाद ट्राई ने 13 जनवरी को अपना संवाददाता सम्मेलन कर अपनी बात रखी। उसके अगले दिन आईबीएफ और उसके प्रसारक सदस्यों ने शुल्क व्यवस्था में बदलावों को चुनौती देते हुए बंबई उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की है। दुनिया के दूसरे बड़े टेलीविजन बाजार और उसकी नियामक संस्था के बीच चाहतों का टकराव बदस्तूर जारी है। यह तब तक जारी रहेगा जब तक टीवी उद्योग या तो पतनशील हो जाए या फिर ट्राई को यह अहसास हो जाए कि बेहद प्रतिस्पद्र्धी बाजार में प्रसारकों को अपनी इच्छा के मुताबिकचैनल का शुल्क तय करने का पूरा अधिकार है। और यह पहलू भी महत्त्वपूर्ण है कि मनोरंजन, खेल, फिल्म या संगीत की कीमत वॉयस या डेटा या खाद्यान्न की तरह तय नहीं की जा सकती है। बंडल में चैनल मिलने से असल में उपभोक्ताओं को फायदा होता है। लेकिन बार-बार नियमों में बदलाव करने से एक नकारात्मक चक्र बनता है जो वृद्धि, नौकरी, कर और उपभोक्ता पसंद जैसे तमाम नियामकीय पहलुओं को प्रभावित करता है।
यह लड़ाई खत्म हो सकती है अगर प्रसारक और वितरक एकजुट होकर अपनी बात रखना सीख लें। देश में निजी टेलीविजन के उदय के 28 साल बाद भारत में केबल टीवी की औसत कीमत दुनिया भर में सबसे कम वाली श्रेणी में है और यह मुद्रास्फीति दर से भी नीचे बनी रही है। फिर भी कोई एक ग्राफ या चार्ट ऐसा नहीं है जो इस बड़े उद्योग के कीमत पहलू को रेखांकित कर सके और उपभोक्ताओं एवं नियामकों को अवगत करा सके। दोनों पक्षों का यह टकराव निश्चित तौर पर तभी खत्म होगा जब ट्राई साधारण प्रभाव विश्लेषण करना सीख लेता है। नियमन करने या नहीं करने से जुड़े प्रभावों एवं लागत का विश्लेषण करने के लिए जबरदस्त दृढ़ता की जरूरत है। यह टीवी उद्योग की रक्षा करेगा और उपभोक्ताओं को भी पीड़ा से बचाएगा। ब्रिटेन के ऑफकॉम जैसे संचार नियामक नियमित रूप से यही काम करते हैं। अगर ट्राई ने नए नियम लागू करने से पहले संभावित असर का विश्लेषण किया होता तो वह महज एक साल पहले जारी आदेश में ढेरों बदलाव लागू नहीं करता।
सबसे पहले वर्ष 2016 में टीवी चैनलों को लेकर शुल्क व्यवस्था रखी गई थी। उसमें चैनलों की अधिकतम कीमत तय की गई थी और बंडलिंग को लेकर तमाम कायदे-कानून बनाए गए थे। लंबी अदालती कार्यवाही के बाद इसे फरवरी 2019 में जाकर लागू किया जा सका था। इससे पारदर्शिता बढ़ाने में मदद मिली लेकिन इसने कीमतें बढ़ाने का भी काम किया। चैनलों के जटिल पैकेज से परेशान होकर उपभोक्ता केबल से डीटीएच या टीवी से ऑनलाइन का रुख करने लगे। शिकायतें बढऩे के बाद ट्राई ने अगस्त 2019 में एक परामर्श-पत्र पेश किया था जो बंडलिंग के खिलाफ शेखी बघारने जैसा था। उसके बाद यह आदेश आया है।
अगर ट्राई का नया आदेश लागू किया जाता है तो कीमतों में और तेजी आएगी, चैनल एवं पैकेज पर संशय बढ़ेगा और इन बदलावों के बारे में सूचित करने पर भी अधिक पैसे खर्च करने होंगे। इसका मतलब लाइफस्टाइल चैनल, कई खेल चैनल और विशिष्ट चैनलों का खात्मा भी होगा। इससे नौकरियों एवं कर राजस्व का भी नुकसान होगा। यह काफी कुछ एक ऐसे साल में घटित हो रहा है जब आर्थिक सुस्ती ने विज्ञापन वृद्धि को दो अंकों से घटाकर एक अंक में ला दिया है। ट्राई अक्सर कीमतों के मुद्दे पर जोर देता है। पिछला आदेश लागू होने पर 100 फ्री-टु-एयर चैनलों के लिए हर घर से प्रति माह 130 रुपये का नेटवर्क क्षमता शुल्क वसूलने की व्यवस्था लागू की गई जिससे कीमतें बढ़ गईं। नए आदेश में इसे बढ़ाकर 200 चैनलों के लिए अधिकतम 160 रुपये कर दिया गया है। ऐसे में हर टीवी कनेक्शन पर मासिक शुल्क बढऩा लाजिमी है।
इस बिंदु पर बंडलिंग को लेकर ट्राई की कवायद का कोई मतलब नहीं दिखता है। वैश्विक स्तर पर बंडलिंग अधिकांश उद्योगों में की जा चुकी है। एयरलाइंस, होटल, मीडिया, उपभोक्ता उत्पाद और सबसे खास क्षेत्र दूरसंचार में भी यह संपन्न हो चुका है। होटलों में बंडलिंग के चलते बफे अपेक्षाकृत सस्ते हैं और उनमें लॉ कार्ते भोजन की तुलना में अधिक विविधता भी होती है। जी कैफे जैसा खास मिजाज का चैनल अधिक महंगा होगा अगर वह एक बंडल का हिस्सा नहीं है जिसमें अधिक मशहूर ज़ी टीवी है।
ट्राई के पास बड़ी मात्रा में शोध संसाधन, ढेर सारे आंकड़े और हितधारकों तक पहुंच है। एक नियामक के रूप में वह प्रभाव विश्लेषण के तरीके समझने के लिए दूसरे देशों के नियामकों से संपर्क साध सकता है। उससे टीवी उद्योग, उपभोक्ता और खुद ट्राई भी शुल्क नियमों में हो रहे बदलावों के असर से बच सकेंगे।
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