सरकार सिंगल मोड ऑप्टिकल फाइबर के आयात पर 25 प्रतिशत संरक्षण शुल्क लगा सकती है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक इस सिलसिले में अधिसूचना जल्द आने की संभावना है। पिछले साल स्टरलाइट टेक्नोलॉजिज और बिड़ला फुरुकावा फाइबर जैसी कंपनियों ने कारोबारी उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) के पास आवेदन दाखिल कर फाइबर पर संरक्षण शुल्क लगाए जाने की मांग की थी। 2018-19 में इस श्रेणी में आयात 3 गुना बढ़कर 18 करोड़ डॉलर हो गया, जो इसके पहले के साल में महज 5.13 करोड़ डॉलर था। सरकार के भारतनेट कार्यक्रम के लिए फाइबर की सरकारी खरीद के कारण अचानक यह तेजी आई है। नवंबर में डीजीटीआर ने अस्थायी रूप से 200 दिन के लिए 25 प्रतिशत संरक्षण शुल्क लगाने का प्रस्ताव किया था। यह पाया गया था कि खासकर चीन से सस्ता आयात हो रहा है, साथ ही दक्षिण कोरिया और जापान भी भारतीय बाजारों में माल उतार रहे हैं, उसके बाद शुल्क लगाने का प्रस्ताव आया। सस्ते आयात की वजह से पिछले वित्त वर्ष में भारत की घरेलू कंपनियों को कर्मचारियोंं की छटनी करनी पड़ी और उन्हें अपनी विनिर्माण इकाइयां बंद करनी पड़ी। मांग में बढ़ोतरी के बावजूद 2018-19 में फर्मों के क्षमता उपयोग के साथ मुनाफे और बाजार हिस्सेदारी में भी कमी आई। सरकार के निष्कर्षों पर जनता की प्रतिक्रिया मिलने के 21 दिन बाद उम्मीद की जा रही थी कि सरकार कार्रवाई करेगी। यह अवधि अब खत्म हो गई है। ज्यादा दाम के अन्य सामानों में शामिल सिंगल मोड ऑप्टिकल फाइबर का इस्तेमाल ऑप्टिकल फाइबर केबल के विनिर्माण के लिए होता है। यह आयात सरकार की नजर में था क्योंकि इस तरह के केबल का इस्तेमाल खासकर महत्त्वाकांक्षी भारतनेट कार्यक्रम में होता है, जो 2017 में शुरू किया गया है। भारतनेट के तहत एक नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की योजना है, जिसके माध्यम से 2 एमबीपीएस से 20 एमबीपीएस की ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सभी परिवारों व संस्थानों को देश भर में मिल सके। ऑप्टिकल केबल से डिजिटल डेटा सिगनल की सैकड़ों मील तक आवाजाही होती है, जिसकी प्रवाह क्षमता की दर इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन केबल की तुलना में बहुत ज्यादा होती है। इसमें बाल की तरह पतले पारदर्शी सिलिकॉन का इस्तेमाल होता है, जो कम अपवर्तक इंडेक्स्ड क्लैडिंग से ढके होते हैं, जिससे आसपास लाइट लीकेज को रोका जा सके। ऑप्टिकल फाइबर के बहुत ज्यादा संवेदनशील होने के कारण यह सामान्यतया ज्यादा मजबूत, हल्की रक्षात्मक सामग्री जेसे केवलर से ढका होता है। यही वजह है कि ज्यादा खर्चीला होने के बावजूद राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन) ने ऑप्टिकल फाइबर अपनाने का फैसला किया। एनओएफएन का मकसद देश के 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से हर पंचायत को ब्रॉडबैंड से जोडऩा और न्यूनतम 100 एमबीपीएस की स्पीड प्रदान करना है। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बीएसएनएल, रेलटेल और पावरग्रिड के मौजूदा फाइबर केबल का इस्तेमाल हो रहा है और इसकी पहुंच बढ़ाई जा रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार की योजना आयात शुल्क बढ़ाने की है, जिससे घरेलू विनिर्माताओं को राहत मिलेगी, लेकिन हमसे यह भी कहा गया है कि एनओएफएन जैसी मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर इसका असर पड़ सकता है क्योंकि मौजूदा घरेलू विनिर्माण क्षमता कम है। कम समय में घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय के चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम के तहत फाइबर केबल के उत्पादन पर अतिरिक्त प्रोत्साहनों की भी घोषणा कर सकती है। इस योजना से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा कि केबल बिछाने के लिए राह निकालना भी अब बड़ी चुनौती है क्योंकि नगर निगम और ग्राम पंचायतें अक्सर केबल बिछाने के काम को अनुमति नहीं देतीं, जो उनकी जमीन से होकर गुजरता है। इस तरह की समस्या का सामना बिजली या जलनिकासी लाइनों के मामले में नहीं उठती है क्योंकि लोगों को इसका सीधा लाभ नजर आता है। इसकी वजह से इस उद्योग ने सरकार से इसे प्राथमिकता वाले क्षेत्र में डालने की मांग की है, जिससे कि इस क्षेत्र को सरकार का जरूरी समर्थन मिल सके।
