2020 में भी रहेगा 2019 की घटनाओं का असर | शंकर आचार्य / January 14, 2020 | | | | |
वैश्विक स्तर पर और भारत के स्तर पर सन 2020 कैसा साबित हो सकता है? इस सवाल के जवाब की तलाश करते हुए मैं अनिश्चितता और अपर्याप्त जानकारी के धुंध को पार करने का प्रयास करता हूं तो हालिया समाप्त वर्ष 2019 की लंबी छायाएं मेरी राह रोक लेती हैं। सन 2019 न तो वैश्विक सहयोग के लिए, न ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए और न ही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर वर्ष था।
वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक सहयोग
वैश्विक सहयोग के संपूर्ण फलक को देखें तो सन 2019 में भारी गिरावट देखने को मिली। व्यापक तौर पर देखें तो अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 2017 के बाद से नीतियों में लगातार बदलाव किए और उनकी बदौलत अंतरराष्ट्रीय मामलों में एकपक्षीय रुख आया। इसके अलावा बहुपक्षीय सहयोग और संधियों तथा संस्थानों के मामलों में भी उन्होंने निरंतर बदलाव किए। तीन उदाहरणों पर विचार करना आवश्यक है।
पहला, अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत की बात करें तो ट्रंप ने चीन, यूरोप और कुछ अन्य देशों के खिलाफ कारोबारी जंग की शुरुआत की। यह जंग जारी है और इसका असर वैश्विक व्यापार, निवेश और वृद्धि पर भी देखने को मिल रहा है। हालांकि चीन के साथ संभावित पहले चरण के समझौते से लाभ मिल सकता है लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह किस हद तक होगा। विश्व व्यापार संगठन की विवाद निस्तारण वाली अपील संस्था में नियुक्तियों को व्यवस्थित तरीके से बाधित करके अमेरिकी प्रशासन ने यह सुनिश्चित कर दिया कि दिसंबर 2019 में यहां सात के बजाय केवल एक न्यायाधीश रह गया।
इससे हुआ यह कि सदस्यों के बीच विवादित मसलों पर निर्णय के लिए अनिवार्य न्यूनतम तीन न्यायाधीश भी नहीं रह गए। अपील संस्था का कामकाज ठप हो गया और विश्व व्यापार अप्रत्याशित और खतरनाक रूप से ऐसी स्थिति का शिकार हो गया जहां विवाद निस्तारण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं रही। इसका नकारात्मक असर 2020 में और आगे देखने को मिलेगा।
दूसरा, सन 2015 में जलवायु परिवर्तन पर हुए पेरिस समझौते से अब तक कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण के क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम हासिल नहीं हुए हैं। यकीनन जलवायु परिवर्तन की स्थिति निरंतर बिगड़ रही है। एक बार पुन: अमेरिका का ट्रंप प्रशासन इस बात का दोषी है कि उसने जून 2017 में अमेरिका के एकतरफा ढंग से बाहर निकलने का नोटिस दिया और अपनी नीतियों तथा संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में असहयोग के जरिये समझौते की भावना के प्रतिकूल काम किया।
गत माह मैड्रिड में ऐसे ही एक सम्मेलन का आयोजन किया गया लेकिन वहां भी कोई प्रगति नहीं हुई। कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के परिणामों के बारे में सर्वव्यापी रिपोर्ट होने के बावजूद ऐसा हो रहा है। लब्बोलुआब यह कि हम सन 2100 तक वैश्विक ताप में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की दिशा में बढ़ रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि तक रोकने की बात है।
तीसरा और सबसे अहम वैश्विक कृत्य है वैश्विक शांति जो 2019 में अमेरिका और रूस के बीच सन 1987 की एक संधि समाप्त होने के बाद से ही दबाव में है। इसके अलावा सामरिक हथियार कम करने संबंधी नई संधि को विस्तार नहीं मिल पाने, उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार कार्यक्रम को सीमित रखने पर सहमति नहीं बन पाने और ईरान तथा अमेरिका (और उसके सहयोगियों इजरायल और सऊदी अरब) के बीच बढ़ते तनाव ने भी इसमें योगदान किया है।
अमेरिका मई 2018 में 2015 की कई देशों वाली ईरान परमाणु संधि से एकपक्षीय रूप से अलग हो गया और उसने ईरान पर कई प्रतिबंध थोप दिए। पिछले दिनों अमेरिका द्वारा ईरान के एक शीर्ष जनरल की हत्या ने सन 2020 में पश्चिम एशिया में बड़े संघर्ष की राह प्रशस्त की है।
विश्व अर्थव्यवस्था
सन 2019 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि घटकर 2.5 फीसदी रह गई। ऐसा तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की वजह से हुआ। 21 लाख करोड़ डॉलर की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर 2.4 फीसदी रह गई जबकि 19 लाख करोड़ डॉलर की यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था 1.5 फीसदी और 14 लाख करोड़ डॉलर की चीनी अर्थव्यवस्था 6.1 फीसदी पर रही। दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में इन तीनों की हिस्सेदारी 60 फीसदी है। मंदी की बड़ी वजहों में अमेरिका में कर कटौती प्रोत्साहन में कमी, कारोबारी जंग, चीन का बढ़ता कर्ज और यूरोपीय संघ के वृद्धि के इंजन जर्मनी में आया धीमापन शामिल हैं।
अमेरिका और चीन में लगातार धीमापन आने और यूरोपीय संघ में मामूली बदलाव के अनुमान के बावजूद अक्टूबर 2019 में आईएमएफ के वैश्विक पूर्वानुमान में कहा गया कि 2020 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर मामूली सुधरकर 2.7 फीसदी रहेगी। इसके लिए कुछ बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बेहतर प्रदर्शन की संभावना को वजह बताया गया है। इनमें ब्राजील, मैक्सिको, तुर्की भारत और सऊदी अरब जैसे देश शामिल हैं। परंतु पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव के साथ अब ये संभावनाएं धूमिल दिख रही हैं। ऐसे में कहा जा सकता है 2020 में वैश्विक वृद्धि 2019 से कमतर रह सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
सितंबर 2019 तक की छह तिमाहियों में देश की आर्थिक वृद्धि 8 फीसदी से गिरकर 4.5 फीसदी रह गई। सन 2019-20 के पूरे वर्ष के लिए यह 5 फीसदी रह सकती है जो पूरे दशक का सबसे निचला स्तर है। आधिकारिक आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं। मंदी की वजहों पर पर्याप्त चर्चा हो चुकी है। इसमें वित्तीय क्षेत्र में तनाव और सरकारी उधारी शामिल हैं जिनके कारण निजी निवेश और खपत में कमी आई। प्रतिस्पर्धा में कमी के कारण जीडीपी में निर्यात की हिस्सेदारी कम हुई है, विनिर्माण कम हुआ है और प्रमुख सेवा क्षेत्रों मसलन दूरसंचार, विमानन और बिजली आदि में समस्याएं सामने आई हैं।
वृद्धि में हालिया गिरावट के पहले रोजगार और बेरोजगारी के आधिकारिक आंकड़ों ने बताया कि रोजगार की स्थिति खस्ता है। बीते दो वर्ष में मंदी बढऩे के कारण हालात और खराब हुए हैं।
उत्पादन और रोजगार में सुधार की बहुत अधिक संभावना नहीं नजर आती। नीतिगत और संस्थागत बाधाएं भी राह का रोड़ा हैं। सन 2020 में संभावना यही है कि आर्थिक वृद्धि 5 फीसदी के आसपास बनी रहेगी। परंतु यदि पश्चिम एशिया में विवाद बढ़ता है तो इसमें काफी कमी आ सकती है।
(लेखक इक्रियर में मानद प्रोफेसर और देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)
|