मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़ों ने देश में आर्थिक नीति निर्माण की जटिलता को बढ़ा दिया है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर में बढ़कर 7.35 फीसदी हो गई। इस तरह उसने भारतीय रिजर्व बैंक के 2 से 6 फीसदी के दायरे को भी लांघ लिया। खाद्य मुद्रास्फीति 14.12 फीसदी रही जबकि इससे पिछले माह यह 10.01 फीसदी थी। इसके लिए सब्जियों और दालों की बढ़ी हुई कीमत उत्तरदायी थी। खुदरा महंगाई ने ऐसे वक्त तय लक्ष्य का उल्लंघन किया है जब वृद्घि में तेजी से धीमापन आया था। चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था के 7.5 फीसदी की नॉमिनल दर से बढऩे की उम्मीद है।
नीतिगत दरों में 135 आधार अंकों की कमी करने के बाद आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने दिसंबर में ब्याज दरों में बदलाव नहीं करने का एकदम उचित निर्णय लिया है। ऐसा मोटे तौर पर मौद्रिक नीति संबंधी जोखिम के कारण किया गया। मौद्रिक नीति के अलावा खुदरा मुद्रास्फीति में इजाफा 2020-21 के बजट को भी प्रभावित करेगा। कम मुद्रास्फीति राजग सरकार की उपलब्धियों में से एक रही है। ऐसे में आगामी बजट में धीमी आर्थिक वृद्घि और बढ़ती मुद्रास्फीति दोनों को साधना आसान नहीं होगा।
बजट प्रस्तुत होने के कुछ दिन बाद एमपीसी मौद्रिक नीति की दिशा स्पष्ट करेगी। हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि खाद्य वस्तुओं में उच्च मुद्रास्फीति अस्थायी है और आने वाले महीनों में इसमें कमी आएगी। एमपीसी को और सतर्कता बरतनी होगी। मूल मुद्रास्फीति जहां सहज स्तर पर है, वहीं ताजा शीर्ष मुद्रास्फीति के आंकड़े फरवरी की बैठक में दरों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी की संभावना खारिज करते हैं।
बहरहाल बड़ा सवाल यह है कि आखिर एमपीसी कब तक दरों को लंबित रखेगी। दो बातें ध्यान देने लायक हैं। पहली, आरबीआई के मई 2019 के एक शोध पत्र में कहा गया कि मुद्रास्फीति के व्यापक अनुमानों में चूक होती है क्योंकि खाद्य कीमतों से लगने वाले झटकों का अंदाजा नहीं होता। खासतौर पर सब्जियों जैसी खराब होने वाली चीजों की कीमतों का।
पूरे देश से मिलने वाले प्रमाण यही सुझाव देते हैं कि अनुमान में कमियों का संबंध खुदरा मूल्य सूचकांक में खाद्य पदार्थों के भार से है। चूंकि बीते सालों में खाद्य कीमतों में गिरावट के अनुमान नहीं लगाए जा सके इसलिए कहा जा सकता है कि आने वाले समय में इसमें इजाफे के अनुमान लगाने में भी कठिनाई होगी। दूसरी बात, यदि आरबीआई लगातार तीन तिमाहियों तक मुद्रास्फीति के लक्ष्य हासिल करने में नाकाम रहा तो उसे केंद्र सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इसमें उसे नाकामी के कारण बताने होंगे और प्रस्तावित कदमों का जिक्र करना होगा। यह भी बताना होगा कि वह कितने समय में लक्ष्य को हासिल करेगा। जाहिर है केंद्रीय बैंक ऐसी स्थिति से बचना चाहेगा।
मुद्रास्फीति को लक्ष्य बनाने वाले ढांचे के कारण आने वाले महीनों में आरबीआई बड़ी परीक्षा भी होने वाली है। इस संदर्भ में यह देखना अहम होगा कि आखिर आरबीआई किस हद तक अपने मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान बदलता है और निकट भविष्य में खाद्य कीमतें कैसा व्यवहार करती हैं। भारतीय स्टेट बैंक का एक शोध बताता है कि सब्जियों की मुद्रास्फीति में इजाफा होने के दो महीने बाद प्रोटीन की महंगाई में इजाफा होता है। इसके अतिरिक्त वैश्विक खाद्य कीमतों में भी अहम इजाफा हुआ है। ऐसे में मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के जोखिम के साथ मौद्रिक नीति आगामी तिमाहियों में वृद्घि को सहारा देने की स्थिति में नहीं होगी। ऐसे में आर्थिक स्थिति में सुधार की जिम्मेदारी पूरी तरह सरकार पर होगी। इसका खाका बजट में सामने आना चाहिए।
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