कांग्रेस और अन्य 19 विपक्षी दलों ने देश की राजधानी में बैठक कर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे विरोध का समर्थन करने के लिए आपसी संतुलन बनाने और देश में आर्थिक संकट जैसी स्थिति बनने पर नरेंद्र मोदी सरकार से कड़े सवाल पूछने की मांग की। विपक्षी दलों ने इस बैठक में प्रस्ताव पारित कर नरेंद्र मोदी सरकार से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को वापस लेने की मांग की। इस प्रस्ताव में राज्य की गैर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकारों से अपने राज्य में राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) पर अमल नहीं करने का निवेदन किया गया। हालांकि इस अहम बैठक में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे विपक्षी दलों ने हिस्सा नहीं लिया। द्रमुक इस बैठक में इस वजह से शामिल नहीं हुई क्योंकि तमिलनाडु में कांग्रेस की स्थानीय इकाई के साथ पार्टी की असहमति है जबकि आप को आमंत्रित नहीं किया गया था। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि बैठक में हिस्सा न लेने वाले लगभग सभी दलों ने संविधान की रक्षा करने की गुहार लगाई है और वे नहीं चाहते हैं कि एनपीआर पर अमल किया जाए। वहीं केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि विपक्ष के प्रस्ताव ने पाकिस्तान को खुश किया है और सीएए पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ बर्बर व्यवहार को उजागर करने का मौका है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी चाहते थे कि इस बैठक में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मोदी सरकार की नाकामी पर ज्यादा चर्चा की जाए जबकि वाम और अन्य दलों ने कहा कि विपक्ष को उन लोगों के साथ खड़े रहना चाहिए जो अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। राहुल ने प्रधानमंत्री को चुनौती देते हुए कहा कि वह प्रदर्शन कर रहे छात्रों के सामने अर्थव्यवस्था के हाल का ब्योरा दें। हालांकि विपक्षी दलों में इस बात पर सहमति थी कि संवैधानिक तौर पर राज्यों को जनगणना और एनपीआर कराने के लिए केंद्र की अधिसूचना का पालन करना होगा। हालांकि इन विपक्षी दलों ने सोमवार को संशोधित नागरिकता कानून को वापस लेने एवं राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि वे सभी मुख्यमंत्री एनपीआर की प्रक्रिया निलंबित करें जिन्होंने अपने राज्यों में एनआरसी लागू नहीं करने की घोषणा की थी। विपक्षी दलों का कहना है कि दरअसल एनपीआर ही एनआरसी का शुरुआती चरण हैं ऐसे में अपने राज्यों में एनआरसी लागू नहीं करने की घोषणा करने वाले सभी मुख्यमंत्रियों को एनपीआर की प्रक्रिया टालनी चाहिए। विपक्षी दलों ने केंद्र से इस भेदभावपूर्ण कानून में संशोधन की मांग करनी चाहिए।
