खबर है कि सरकार आगामी बजट में प्रत्यक्ष कर निर्धारिती वर्ग के लिए रियायत योजना लाने जा रही है। इस योजना के तहत निर्धारिती को यह छूट होगी कि वह पिछले पांच-छह वर्ष की किसी भी अतिरिक्त आय की घोषणा बिना किसी जुर्माने या कार्रवाई की आशंका के कर सके। यह प्रस्ताव प्रत्यक्ष कर कार्य बल की ओर से पेश किया गया है। सरकार को उम्मीद है कि यह योजना क्रियान्वयन के पहले ही वर्ष करीब 50,000 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाएगी।
इससे अनुपालन में सुधार होने की भी उम्मीद है। इसके पीछे सरकार की प्रेरणा को समझना बहुत मुश्किल नहीं है। सरकार चालू वित्त वर्ष में राजस्व संग्रह में भारी कमी का सामना कर रही है और आशंका है कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3.3 फीसदी के स्तर से ऊपर निकल जाएगा। गत 15 दिसंबर तक प्रत्यक्ष कर संग्रह में शुद्घ रिफंड में 0.7 फीसदी की वृद्घि देखने को मिली जबकि इसके लिए 17.3 फीसदी का लक्ष्य तय किया गया था। अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए सरकारी वित्त का प्रबंधन अगले वित्त वर्ष में भी चुनौतीपूर्ण बना रहेगा।
ऐसे में सरकार को राजस्व की आवक तो पसंद आएगी ही चाहे वह कहीं से भी आए। सरकार को यह उम्मीद भी है कि इस योजना के आने से अदालती मामलों में कमी आएगी। एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल करीब 7-8 लाख करोड़ रुपये के करीब 5 लाख विवाद के मामले कई स्तरों पर लंबित हैं।
बहरहाल, ऐसी रियायत योजना से बचा जाना चाहिए। इसकी दो ठोस वजह हैं। पहली, यह कर कानूनों की दृढ़ता को प्रभावित करता है और इससे करदाता अपने बकाये की सही जानकारी देने से बचेंगे। यदि सरकार नियमित अंतराल पर ऐसी रियायत योजनाएं सामने लाएगी तो कर कानूनों को गंभीरता से कौन लेगा? यह ईमानदार करदाताओं के साथ भी गलत होगा। इसका व्यवहार के स्तर पर बहुत नकारात्मक असर होगा।
कर वंचना करने वाले को अगर यह लगे कि भविष्य में उसके लिए रियायत का रास्ता मौजूद होगा तो वह गलत व्यवहार करने के लिए प्रेरित होगा। दूसरा, ऐसी योजनाओं की शुरुआत 1950 के दशक से हुई और इनसे वांछित परिणाम हासिल नहीं हुए। ऐसे में यह उम्मीद कम ही है कि सरकार को पहले वर्ष में इससे 50,000 करोड़ रुपये की राशि मिलेगी। अप्रत्यक्ष कर के मामले में चल रही सबका विश्वास नामक विवाद निस्तारण योजना के बारे में कहा जा रहा है कि इससे 30,000 से 35,000 रुपये की राशि हासिल हुई जबकि अनुमान 1.5 लाख करोड़ रुपये का था। यही कारण है कि सरकार को इसकी अवधि 15 जनवरी तक बढ़ानी पड़ी। राजग सरकार के सत्ता में आने के बाद प्रत्यक्ष कर निर्धारिती के लिए लाई गई योजना के नतीजे भी अपेक्षा से कमतर थे। ऐसे में रियायत और माफी योजना के बजाय सरकार को अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए दो क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है। वर्ष 2020-21 का बजट इसकी शुरुआत के लिए एक बेहतर बिंदु है। पहली बात व्यय को राजस्व अनुमान की हकीकत के साथ सुसंगत करना होगा। सरकार प्राय: राजस्व अनुमान तो बढ़ाचढ़ाकर लगाती है और व्यय का अनुमान कम करके। इससे समस्या पैदा होती है। दूसरा, कर कानूनों को सहज बनाने के लिए दरों को तार्किक बनाने की दिशा में तेजी से काम करना होगा। इससे न केवल अनुपालन और राजस्व में सुधार होगा और अदालती मामलों में भी कमी आएगी। सरकार ने आय कर मामलों में इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का इस्तेमाल की शुरुआत कर बेहतर किया है। इससे अनुपालन सुधरेगा और प्रताडऩा के मामलों में कमी आएगी।
इसके अलावा सरकार को कर प्रशासन के क्षेत्र में भी क्षमता में भी सुधार करना होगा ताकि वास्तविक कर वंचकों का पता लगाया जा सके। रियायत योजनाओं का नियमित इस्तेमाल बताता है कि क्षमता सीमित है और कर प्रशासन में संसाधनों का आवंटन सही नहीं है।