गैर-सूचीबद्ध फर्मों के लिए आएगी अधिग्रहण संहिता | |
रुचिका चित्रवंशी / नई दिल्ली 01 13, 2020 | | | | |
► कंपनी अधिनियम की धारा 230 (11) में गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिए अधिग्रहण संहिता का है प्रावधान
► इस उप-धारा को 2014 में जोड़ा गया था लेकिन अभी अधिसूचित नहीं किया गया है
► प्रस्तावित संहिता के तहत 75 फीसदी हिस्सेदारी वालों को शेष अधिग्रहण के लिए एनसीएलटी की लेनी होगी मंजूरी
कंपनी मामलों का मंत्रालय गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिए अधिग्रहण संहिता को अंतिम रूप देने में लगा है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि इसे जल्द ही जारी किया जाएगा। प्रस्तावित नए नियमों के अनुसार गैर-सूचीबद्ध कंपनी में अकेले या अन्य पक्षों के साथ 75 फीसदी हिस्सेदारी लेने वालों को पूरी हिस्सेदारी लेने के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) जाने की अनुमति होगी। गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिए कोई औपचारिक अधिग्रहण संहिता नहीं है और शेयरों का हस्तांतरण अनुबंध और समझौते के आधार पर किया जाता है। वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'हम ऐसी व्यवस्था लाना चाहते हैं जो ज्यादा कठिन नहीं हो लेकिन कानून के मुताबिक हो। हम इस तरह के अधिग्रहण की प्रक्रिया और मानदंड तैयार करेंगे।'
वर्ष 2014 में सरकार ने कंपनी अधिनियम में धारा 230 (11) के तहत एक प्रावधान जोड़ा था, जिसमें कहा गया है, 'अधिग्रहण की पेशकश सहित किसी तरह के करार या समझौते इस प्रकार होंगे : सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में अधिग्रहण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड द्वारा तैयार नियमन के अनुसार होंगे।' धारा 230 (12) में आगे कहा गया है, 'असंतुष्ट पक्ष सूचीबद्ध कंपनियों से इतर किसी कंपनी की अधिग्रहण पेशकश से जुड़ी किसी शिकायत की स्थिति में पंचाट के पास आवेदन कर सकता है। पंचाट आवेदन के गुण-दोष के आधार पर आदेश पारित कर सकता है।' हालांकि इस संशोधन को क्रियान्वित नहीं किया गया था क्योंकि अधिग्रहण संहिता पर काम चल रहा था।
विशेषज्ञों के अनुसार अधिग्रहण संहिता के सूचीबद्ध होने के बाद उदाहरण के तौर पर टाटा ट्रस्ट्स जैसी इकाइयां जिसकी टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी है, वह समूह की अन्य कंपनियों के साथ इस प्रावधान का उपयोग कर 75 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने का विकल्प अपना सकती है और अल्पांश शेयरधारकों की हिस्सेदारी लेने के लिए एनसीएलटी में जा सकती है। हालांकि इस तरह के अधिग्रहण की लागत काफी ज्यादा हो सकती है।
एनसीएलएटी के अनुमान के अनुसार टाटा संस की अल्पांश शेयरधारक शापूरजी पलोनजी के पास 18 फीसदी हिस्सेदारी है, जिसका वर्तमान मूल्य करीब 1 लाख करोड़ रुपये है। इस बीच, केंद्रीय विधि मंत्रालय प्रस्तावित अधिग्रहण संहिता का अध्ययन कर रहा है। कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स में पार्टनर अंकित सिंघी ने कहा, 'वर्तमान में गैर सूचीबद्ध कंपनियों का अधिग्रहण नियमकीय मंजूरी के दायरे में नहीं आता है। सरकार अधिग्रहण के मामले में अल्पांश शेयरधारकों को बहुलांश शेयरधारकों की तरह ही अपने शेयर बेचने की सहूलियत दे सकती है, औरयह एनसीएलटी की अनुमति पर निर्भर करेगा।'
वर्तमान में सेबी द्वारा अधिसूचित अधिग्रहण संहिता केवल सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनियों पर ही लागू होता है। इसके मुख्य मकसद में से एक छोटे शेयरधारकों के हितों की रक्षा करना है।उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि नीति के तहत बाजार संचालित कॉरपोरेट नियंत्रण होना चाहिए और सरकार का हस्तक्षेप ककेवल इस तरह की व्यवस्था के विफल रहने पर ही होना चाहिए।
शार्दुल अमरचंद मंगलदास में वरिष्ठ रिसर्च फेलो प्रतीक दत्ता ने कहा, 'अल्पांश शेयरधारकों के हितों की रक्षा के लिए सरकार के नियमन से बाजार पर कॉरपोरेट नियंत्रण को समृद्ध करने में ही मदद करेगा। हमें इस पहलू से अधिग्रहण के नियमन की जरूरत पर विचार करना चाहिए, खास तौर पर तब जब अल्पांश शेयरधारकों की सुरक्षा के लिए पहले से ही वैकल्पिक कानूनी प्रणाली उपलब्ध है।'
कंपनी अधिनियम की धारा 237 में कहा गया है कि अगर अधिग्रहणकर्ता के पास एकीकरण, शेयरों की अदला-बदली, प्रतिभूति में बदलाव या अन्य वजहों से कुल जारी शेयर पूंजी का 90 फीसदी हिस्सेदारी हो जाती है, तो उन्हें कंपनी को शेष शेयर खरीदने के बारे में सूचित करना होगा। इस तरह के अधिग्रहण में अधिग्रहणकर्ता को पंचाट में नहीं जाना होता है। 90 फीसदी शेयर होने पर उसके पास अन्य शेष शेयर खरीदने का अधिकार होता है।
प्रस्तावित संहिता के तहत 75 फीसदी हिस्सेदारी वाला अन्य अल्पांश शेयरों को खरीदने के लिए पंचाट में जा सकता है। अधिकारी ने कहा, 'हम सभी शेयरधारकों के हितों की रक्षा करना चाहते हैं। पंचाट यह देखेगा कि पेशकश अल्पांश शेयरधारकों के लिहाज से पर्याप्त है या नहीं।'
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