अरुंधति दासगुप्ता और अमृता पिल्लई / January 12, 2020
बॉलीवुड सितारों की चमचमाती दुनिया के हर घंटे का लेखा-जोखा होता है। उनके बारे में लोग ट्वीट भी करते हैं लेकिन राजनीति के लिए यहां थोड़ी ही गुंजाइश दिखती है। अमूमन इन सितारों की जिंदगी प्यार, फिल्में, फिटनेस, जोडिय़ों के लक्ष्य के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है और वे खुद सोशल मीडिया पर हल्की-फुल्की बातें ही साझा करते हैं। हालांकि इस लिहाज से पिछला हफ्ता थोड़ा अलग रहा।
बॉलीवुड की सामान्यतौर पर अच्छी और आकर्षक लगने वाली चीजों की जगह जुलूस, विरोध प्रदर्शन से जुड़ी कविताएं और विद्रोह गीत ने ले ली जिससे अभियान में जोश बढ़ गया। फिल्म जगत से जुड़े कई लोगों ने बोलना शुरू किया और विरोध प्रदर्शन में शिरकत करने के लिए अपने सुरक्षित दायरे से बाहर निकले और उन्होंने धरना और जुलूस से जुड़ी सूचनाओं को रिट्वीट करना शुरू कर दिया।
इंस्टाग्राम टाइमलाइन पर आलिया भट्ट ने लिखा, 'जब छात्र, शिक्षक और शांति से रहने वाले नागरिक रोजमर्रा आधार पर शारीरिक हमले का शिकार होते हैं तब यह मान लेना गलत है कि सबकुछ ठीक है। हमे सच से आंख से आंख मिलाकर जरूर देखना चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि हमारे घर में ही युद्ध जैसी स्थिति है।'
बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा दीपिका पडुकोणे की फिल्म छपाक इस शुक्रवार को रिलीज हुई। उन्होंने मुंबई की एक रैली में हिस्सा लेने के बाद कहा, 'यह देखना सुखद है कि लोग सड़कों पर निकल रहे हैं। मुझे इस बात का गर्व है कि लोग अपने विचारों को उठा रहे हैं चाहे वह सड़क से उठाते हों या फिर अपने घर से।' वह केवल इस बयान तक ही सीमित नहीं रहीं बल्कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंसक हमले का शिकार हुए छात्रों के समर्थन में विश्वविद्यालय परिसर में जाने का फैसला लिया और वे प्रदर्शनकारियों के साथ खड़ी नजर आईं।
मशहूर निर्देशक और संगीतकार विशाल भारद्वाज अपनी फिल्मों और संगीत के अलावा शायद ही कभी किसी विषय पर बोलते हैं लेकिन उन्हें नागरिकता संशोधन कानून और छात्रों के पर हिंसक कार्रवाई के खिलाफ एक रैली में मुंबई के कार्टर रोड पर कविता पाठ करते हुए सुना गया। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से कहा कि सुबह होने से पहले हमेशा अंधेरा छाया रहता है ऐसे में आप अपना भरोसा बुलंद रखें। विरोध प्रदर्शन के इस जुलूस में अनुराग कश्यप, वरुण ग्रोवर, स्वरा भास्कर, जावेद अख्तर, फरहान अख्तर, जावेद जाफरी के साथ कई अन्य लोग भी नजर आए।
ऐसा नहीं है कि फिल्मी जगत से जुड़े ज्यादातर कलाकार केवल प्रदर्शनकारियों के समर्थन में अपनी आवाज उठा रहे हैं बल्कि इनमें कुछ ऐसे हैं जो सरकार के कदमों का समर्थन भी कर रहे हैं। मशहूर अभिनेत्री जूही चावला ने नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा मुंबई में आयोजित एक रैली में हिस्सा लिया वहीं अभिनेता अजय देवगन ने कहा कि वह तथ्यों के सामने आने तक इंतजार करेंगे। बॉलीवुड के लोकप्रिय अभिनेता अक्षय कुमार और अमिताभ बच्चन अपनी चुप्पी की वजह से सुर्खियों में रहे।
फिल्मी जगत की दुनिया कई झंझावातों में भी खुद को बखूबी बचाने का हुनर जानती हैं लेकिन इस बार एक राजनीतिक मुद्दे पर इस उद्योग के लोगों की आवाज बुलंद होना अप्रत्याशित है। कला और थियेटर को बढ़ावा देने वाले एक मंच जुनून की संस्थापक संजना कपूर कहती हैं, 'छात्र आंदोलन के उभार और लोगों के बाहर निकलने और आवाज उठाने की आजादी पर अंकुश लगने जैसी स्थिति का सामना करने के लिए मेरे भीतर साहस जरूर है। यह महसूस करना अच्छा है कि कोई अकेला नहीं है और किसी को चुप नहीं कराया जा सकता।'
पेशे से जुड़े जोखिम
इंडिया फाउंडेशन फॉर दि आट्र्स (आईएफए) की कार्यकारी निदेशक अरुंधती घोष का कहना है कि अपनी आवाज उठाने के लिए साहस की जरूरत होती है। आवाज उठाने का पेशागत नुकसान भी झेलना पड़ सकता है। मुमकिन है कि ऐसी सक्रियता की वजह से किसी निर्माता की फिल्म को पहले सप्ताहांत में दर्शक भी न मिलें और किसी अभिनेता/अभिनेत्री को काम न मिले। इसके अलावा भी कई चिंताएं हैं जो खासतौर पर उन लोगों से जुड़ी हैं जो लोग किसी ब्रांड के साथ करार करते हैं या फिर किसी सामाजिक अभियान से जुड़े हैं। मिसाल के तौर पर एक ऑनलाइन दवा कंपनी मेडलाइफ के साथ दीपिका का ब्रांड करार है लेकिन जेएनयू में उनकी मौजूदगी की वजह से लोगों ने उन पर भद्दी टिप्पणी करने के साथ यह धमकी तक दे डाली की वे ऐप को अपने टाइमलाइन से डिलीट कर देंगे। दीपिका की आलोचना करने के साथ-साथ फिल्म 'छपाक' का बहिष्कार करने का भी लोगों ने ऐलान कर दिया।
ऑर्मेक्स कंज्यूमर एक्सप्रेस के सीईओ प्रिया लोबो कहती हैं कि हमारे यहां स्कूल, घर या दफ्तरों में ऐसा महौल नहीं है कि लोगों को अपनी आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। वह कहती हैं, 'सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि देश के सोशल मीडिया का अर्थ लोगों को ट्रोल करना है और मुझे लगता है कि लोग इसमें फंसना भी नहीं चाहते। किसी भी अभिनेता/अभिनेत्री के लिए सबसे आसान यह है कि वे जलवायु परिवर्तन (या लड़कियों की शिक्षा, जल संरक्षण) जैसे मुद्दों के लिए अपने चेहरे का इस्तेमाल कर संदेश दे दें और कई लोगों ने सरकारी योजनाओं के समर्थन में ऐसा किया भी है।' लेकिन राजनीतिक और वैचारिक मसला बिल्कुल अलग ही बात है। कई लोगों का कहना है कि मतभेद वाली स्थिति इस वजह से भी बनती है क्योंकि कला भले ही राजनीति से जुड़ी है लेकिन कारोबार के साथ ऐसी बात नहीं है।
शायद इसी वजह से काफी पहले से ही बॉलीवुड ने कारोबार की वजह से राजनीति से दूर रहने का फैसला किया। लेकिन थियेटर की दुनिया में ऐसा नहीं है जहां भेदभाव वाली नीतियों के खिलाफ और उसके लिए प्रदर्शन काफी लंबे समय से होता रहा है। मुंबई के एक थियेटर समूह 'तमाशा' के सह संस्थापक सुनील शानबाग और सपन शरण का कहना है कि थियेटर जगत में कलाकारों की बिरादरी छात्रों के समर्थन में है और वे इन मुद्दों पर गीत गाने, कविता लिखने के साथ रात भर धरने में बैठते भी हैं। उनका कहना है कि पहले के मुकाबले बड़ी तादाद में लोगों का हुजूम उमड़ रहा है।
नागरिकता संशोधन कानून और छात्रों पर हमला विरोध का प्रमुख मुद्दा रहा। फिल्म निर्देशक तनुजा चंद्रा का मानना है कि नाराजगी और रोष की वजह से उनके जैसे लोग सड़कों पर निकल रहे हैं। वह कहती हैं, 'छात्रों पर निरंकुश और गैरकानूनी तरीके से हमला किया गया और शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया कई निर्दोष लोगों की जान चली गई। मैं इस बात पर हैरान हूं कि प्रशासन ने किस तरह जन प्रतिरोध दबाने की कोशिश की और मुझे लगता है कि फिल्म जगत के लोग भी इस बात पर नाराज होंगे।'
महिलाएं आगे
बॉलीवुड ने जहां असंतोष के सुर को पहचानने की कोशिश की है वहीं इस उद्योग की प्रमुख महिलाएं इस सुर को प्रबलता दे रही हैं। आलिया भट्टï और दीपिका जैसी अभिनेत्रियों ने इस विरोध प्रदर्शन को सुर्खियों में लाने का काम किया वहीं ऋचा चड्ढा, तापसी पन्नू, स्वरा भास्कर, कोंकणा सेन शर्मा विरोध-प्रदर्शन के समय के बारे में पोस्ट करने के साथ-साथ पोस्टर लगा रही हैं और देश भर से प्रदर्शन की खबरों को रिट्वीट कर रही हैं। मशहूर निर्देशक जोया अख्तर भी मुंबई की रैलियों में हिस्सा लेते हुए नजर आईं।
अक्षय कुमार की छात्रों की हिंसा के खिलाफ कोई टिप्पणी न करने की वजह से आलोचना की गई तब उनकी पत्नी और अदाकारा ट्विंकल खन्ना ने ट्वीट किया, 'भारत में गाय को छात्रों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षा दी जाती है और यह एक ऐसा देश है जो अब झुकने के लिए तैयार नहीं है।' महिला प्रदर्शनकारी पुलिस के सामने दृढ़ता से खड़ी होकर, निडरता से गाकर और ठंड में पूरी रात धरने में बैठकर इस पूरे अभियान को परिभाषित कर रही हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की दो छात्रों लदीदा फरजाना और आयशा रेन्ना अपने पुरुष दोस्तों को दिल्ली पुलिस से बचाती हुई नजर आईं जबकि सर में पट्टी बांधे जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष भीड़ को संबोधित करती नजर आईं।
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