इंटरनेट पाबंदी रोकने के लिए हों अधिक प्रयास | नेहा अलावधी और रोमिता मजूमदार / January 10, 2020 | | | | |
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अधिकारियों से कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं के निलंबन की समीक्षा करने के लिए कहा जिसे कई लोगों द्वारा बेहतरीन कदम बताया गया लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार द्वारा बार-बार इंटरनेट बंद किए जाने को रोकने के लिए यह काफी छोटा कदम है। शुक्रवार को न्यायालय ने कहा, 'हमें लगता है कि इंटरनेट या दूसरी किसी भी दूरसंचार सेवा को पूरी तरह से निलंबित कर देने के विकल्प को राज्य द्वारा केवल 'आवश्यक' एवं 'अपरिहार्य' होने पर ही विचार किया जाना चाहिए। इस स्थिति में भी राज्य को वैकल्पिक तथा कम कठोर उपाय को लागू करने का प्रयास करना चाहिए।' इसमें कहा गया कि इंटरनेट के माध्यम से बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कोई भी कारोबार, व्यवसाय करने की स्वतंत्रता को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) तथा अनुच्छेद 19(1) (जी) के तहत आती हैं और यह मौलिक अधिकार है।
नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली में सेंटर फॉर कंम्यूनिकेशन गवर्नेंस के कार्यकारी निदेशक सर्वजीत सिंह कहते हैं, 'यह निराशा भरा निर्णय है और कश्मीर में इंटरनेट बंद की समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। हालांकि कुछ ऐसे सिद्धांत हैं जिनके इस्तेमाल से भविष्य में इंटरनेट बंद करने की चुनौती से निपटा जा सकता है। उम्मीद है कि पारदर्शिता की आवश्यकता, इंटरनेट बंद करने के लिए समयावधि उपलब्ध कराना और इस प्रक्रिया की समीक्षा कराए जाने से देश में इंटरनेट बंद किए जाने की प्रक्रिया में पारदॢशता आएगी।'
सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता तथा साइबर कानून विशेषज्ञ एनएस नपीनई का कहना है कि वैश्विक स्तर पर पहले ही भारत सबसे अधिक बार इंटरनेट बंद करने के मामले पर जाना जा रहा है और सरकार संचार को बंद नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, 'हमें खुशी है कि सत्ता में बैठे लोग संचार माध्यमों की अहमियत पहचान रहे हैं। इसे बंद करने के लिए बहुत विशिष्ट तथा कठोर प्रक्रियाएं हैं। लेकिन हमने देखा है कि बहुत आम स्थिति में भी ये प्रक्रियाएं अपना ली जाती हैं। भारत में चलन बन चुका इंटरनेट शटडाउन समाप्त होना चाहिए और उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय इस प्रक्रिया का पहला कदम बना है।'
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक अपार गुप्ता का कहना है कि इस निर्णय ने आम सिद्धांतों की रुपरेखा तय की है और ऐसे मामलों में सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले उपाय बताए हैं। उन्होंने कहा, 'आदेश कहता है कि इंटरनेट शटडाउन अनिश्चितकाल के लिए लागू नहीं किया जा सकता... अब बहुत कुछ आदेश के अनुसार सरकार की आगे की कार्रवाई तथा न्यायालय के अपने निर्णय पालन के आदेश पर निर्भर करेगा।' गैर-लाभकारी कानूनी सेवा संगठन सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर भारत में इंटरनेट बंद होने के मामलों की सूची बनाता है और इसके अनुसार वर्ष 2012 से अब तक देश में 381 बार इंटरनेट बंद किया जा चुका है। साल 2019 में 106 बार ऐसा किया गया, जिसमें कश्मीर में इंटरनेट बंद करने का मामला भी शामिल है। कश्मीर में इंटरनेट बंद किया जाने वाला निर्णय, पूरे विश्व में सबसे अधिक समय तक इंटरनेट बंद किए जाने वाला मामला है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की अप्रैल 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2012-2017 के बीच कुल 16,315 घंटे इंटरनेट बंद रहा जिससे देश को करीब 3.04 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
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