केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा-शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने 'स्टार' निर्यातकों के लिए सत्यापन प्रणाली को अधिक मजबूत बनाने के लिए विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) से कथित तौर पर संपर्क साधा है। सीबीआईसी ने महानिदेशालय को लिखे पत्र में 'स्टार' दर्जा रखने वाले निर्यातकों को लेकर अपनी चिंता जताई है। इन निर्यातकों को कई तरह की रियायतें दी जाती हैं जिनमें निगरानी का निम्न स्तर एवं कागजी कार्रवाई में छूट भी शामिल है।
सीबीआईसी को लगता है कि कुछ स्टार निर्यातक इस सुविधा का दुरुपयोग कर रहे हैं। खासकर, जीएसटी खुफिया महानिदेशालय और राजस्व खुफिया महानिदेशालय की तरफ से पिछले कुछ महीनों में की गई जांच के दौरान ऐसे निर्यातकों को चिह्निïत किया गया है जिन्होंने धोखाधड़ी कर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) भुगतान पर रिफंड लिया है। अधिकारियों के मुताबिक, फर्जी बिलों की समस्या व्यापक है और इन फर्जी बिलों का इस्तेमाल कर निर्यातक इनपुट टैक्स क्रेडिट के मद में करोड़ों रुपये का दावा पेश करते हैं और फिर उसका इस्तेमाल निर्यात के लिए आईजीएसटी भुगतान में करते हैं। इसी के साथ वे आईजीएसटी नकद रिफंड का भी दावा करते हैं। यह घोटाला विदेश भेजे जाने वाले माल और इनपुट के बारे में गलत जानकारी देने पर टिका हुआ है। हालांकि सीबीआईसी का कहना है कि रसीद एवं कर के मामले में संबंधित डेटा समूहों की उपलब्धता ने ऐसी गलत घोषणा का पता लगाना आसान बना दिया है।
यह अहम है कि सरकार व्यवस्था में नियंत्रण एवं संतुलन की मात्रा इसलिए बढ़ाती है कि बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी न हो सके। लेकिन इस मामले में यह साफ है कि डीजीएफटी और सीबीआईसी दोनों की जरूरतें अलग हैं। दोनों की जरूरतों के बीच उच्च स्तर का संतुलन साधने की जरूरत है। सीबीआईसी स्वाभाविक तौर पर इस लिहाज से सोचेगा कि जीएसटी राजस्व को पूर्व-अपेक्षित स्तर के करीब पहुंचाने के लिए क्या करना जरूरी है? वहीं डीजीएफटी को भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घावधि जरूरतें ध्यान में रखते हुए प्राथमिकताएं तय करने की जरूरत है, खासकर यह सुनिश्चित करना होगा कि निर्यातकों को कागजी कार्रवाई के बोझ तले न दबना पड़े।
स्वाभाविक बात है कि कारोबार जगत को करों का भुगतान ईमानदारी से करना चाहिए और सरकार को जीएसटी प्रणाली के लाभ एवं लागत को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए उद्योग संगठनों से संपर्क साधना चाहिए। नियमों के हिसाब से नहीं चलने वाले कारोबारों को जांच के घेरे में आने के बाद स्वाभाविक तौर पर कामकाज समेटना पड़ेगा, लिहाजा यह उद्योग जगत के ही हित में है कि जीएसटी प्रणाली के अनुपालन का विस्तार हो।
हालांकि हस्तक्षेपकारी नियंत्रण एवं संतुलन और अनुपालना के बीच संतुलन साधना पेचीदा काम है और कारोबारी सुगमता से जुड़े प्रावधानों में कोई भी बदलाव बहुत सोच-समझकर लाया जाना चाहिए। सीबीआईसी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि निर्यात क्रेडिट से जुड़ी धोखाधड़ी राष्ट्रीय स्तर पर इतना बड़ा मसला है कि कारोबारी सुगमता के एजेंडे को तिलांजलि देने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर यह एक राजनीतिक निर्णय होगा कि स्टार निर्यातकों पर अधिक निगरानी एवं नियंत्रण कैसे लागू किया जा सकता है? इस समस्या के कारणों पर सबसे अलग सोच की जरूरत है।
बड़े स्तर पर धोखाधड़ी की आशंका को कम करने के लिए एक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। इस मामले में आईजीएसटी का भुगतान ही समस्या के केंद्र में नजर आ रहा है। यह जीएसटी संरचना के उन पहलुओं में से एक है जिन पर गौर करने की जरूरत है। सरकार और जीएसटी परिषद को इस मुद्दे पर गौर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने के बारे में सोचना चाहिए।
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