खस्ताहाल निजी बैंकों की नीलामी की योजना | |
सोमेश झा / नई दिल्ली 01 07, 2020 | | | | |
► अभी निजी और सरकारी बैंकों के लिए पीसीए के समान नियम
► एनपीए, पूंजी पर्याप्तता की सीमा का उल्लंघन पर बैंकों को पीसीए में रखा जाता है
► अभी छह बैंक पीसीए में, इनमें से दो निजी क्षेत्र के
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लंबे समय से खराब वित्तीय स्थिति से जूझ रहे निजी क्षेत्र के बैंकों की नीलामी की योजना बना रहा है। केंद्रीय बैंक त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) के तहत सरकारी और निजी बैंकों के लिए अलग-अलग नियामकीय व्यवस्था अपनाना चाहता है। निजी बैंकों की नीलामी इसी योजना का हिस्सा है। आरबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि बैंक नियामक पीसीए में शामिल निजी बैंकों के लिए को जल्दी से जल्दी इससे बाहर निकालने की व्यवस्था बनाने पर विचार कर रहा है। इसी के तहत बैंकों की नीलामी की संभावना तलाशी जा रहा है।
सूत्र ने कहा, 'निजी बैंक हमेशा के लिए पीसीए ढांचे में नहीं रह सकते हैं। अगर प्रवर्तक लंबे समय तक बैंक को पटरी पर लाने में नाकाम रहते हैं तो आरबीआई ऐसे बैंकों की परिसंपत्तियों, देनदारियों और परिचालन को नीलाम कर सकता है। इसके लिए एक योजना तैयार की जा रही है।' अब तक आरबीआई ने विलय के जरिये निजी बैंकों की खराब वित्तीय स्थिति को दुरुस्त करने के लिए हस्तक्षेप किया है। आरबीआई ने अंतिम बार सितंबर, 2006 में ऐसा हस्तक्षेप किया था। यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक (यूडब्ल्यूबी) के बदतर पूंजी आधार के कारण केंद्रीय बैंक ने उस पर रोक लगा दी थी।
इसके बाद 17 संस्थाओं ने इसमें दिलचस्पी दिखाई थी और आरबीआई ने यूडब्ल्यूबी के कामकाज पर एक महीने की पाबंदी लगाने के बाद उसका आईडीबीआई में विलय करने का फैसला किया था। 2004 से पहले आरबीआई निजी क्षेत्र के ग्लोबल ट्रस्ट बैंक पर तीन महीने की रोक लगाने के बाद उसका सार्वजनिक क्षेत्र के ऑरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में विलय कर दिया था। अलबत्ता, उसने अब तक किसी कमजोर बैंक की नीलामी नहीं की है।
सलाहकार फर्म अश्विन पारेख एडवाइजरी सर्विसेज के मैनेजिंग पार्टनर अश्विन पारेख ने कहा, 'आरबीआई को मौजूदा कानून के तहत ऐसा करने का अधिकार है। पहले आरबीआई विलय के जरिये निजी बैंकों की नाजुक वित्तीय स्थिति का समाधान करता था। लेकिन इसमें बैंकों की नीलामी की योजना शामिल नहीं थी। यह आरबीआई का एक प्रगतिशील दृष्टिïकोण लगता है क्योंकि नीलामी के जरिये नाकाम बैंक के शेयरधारकों को अपने निवेश का बेहतर मूल्य मिलेगा। यह व्यवस्था के लिए अच्छा है।'
अमेरिका में स्वतंत्र एजेंसी द फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन को बैंकों के समाधान का अधिकार है और वह नाजुक स्थिति से गुजर रहे वित्तीय संस्थानों की मजबूत बैंकों को नीलामी करता है। भारत में आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों (सरकारी और निजी ) की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ रखने के लिए पीसीए को शुरुआती चेतावनी के हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। अगर कोई बैंक पूंजी, परिसंपत्ति गुणवत्ता और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की सीमाओं का उल्लंघन करता है तो उसे पीसीए में डाला जाता है। यह व्यवस्था 2002 से चलन में है और 2017 में आरबीआई ने इसे ज्यादा सख्त बनाया था।
इसके तहत कमजोर बैंकों के विस्तार, लाभांश वितरण और प्रबंधन को मिलने वाले मुआवजे पर पाबंदी लगा दी गई। केंद्रीय बैंक 2020 में पीसीए व्यवस्था की समीक्षा करेगा। अभी छह बैंक पीसीए में शामिल हैं जिनमें निजी क्षेत्र के दो बैंक आईडीबीआई बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक शामिल हैं। आईडीबीआई बैंक को मई 2017 में और लक्ष्मी विलास बैंक को सितंबर 2019 में इसमें शामिल किया गया था। एक साल पहले 12 बैंक इसमें शामिल थे जिनमें 11 सरकारी और एक निजी बैंक था। अभी बैंकों को पीसीए से बाहर निकालने के लिए कोई तय व्यवस्था नहीं है। लेकिन एक साल से आरबीआई उन बैंकों पर से पीसीए पाबंदियां हटा रहा है जो पीसीए की सीमाओं के दायरे में आ गए हैं।
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