भारत का कृषि और संबंधित गतिविधियों में सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान स्थिर मूल्य पर 2.80 के स्तर बने रहने की संभावना है। लेकिन मौजूदा मूल्य पर जीवीए 4 साल के उच्च स्तर 9.80 प्रतिशत पर पहुंच सकता है। इससे खाद्य महंगाई के संकेत मिलते हैं, जिसकी वजह से किसानों की आमदनी 7 प्रतिशत बढ़ सकती है, जो 20-14-15 के बाद का बेहतर आंकड़ा है।
बहरहाल कुछ विशेषज्ञों की इससे अलग राय है। उनका कहना है कि स्थिर मूल्य व मौजूदा मूल्य पर जीवीए में अंतर किसानों की आमदनी की सही जानकारी देता है, लेकिन 2019-20 में मामला अलग है क्योंकि कुल मिलाकर हाल के आंकड़ों के मुताबिक खाद्य उत्पादन बहुत ज्यादा नहीं सुधरा है।
2018-19 में स्थिर मूल्य पर जीवीए 2.90 प्रतिशत था, जबकि तत्कालीन मूल्य पर 4 प्रतिशत था लेकिन महंगाई दर में 1.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जो जीडीपी की नई शृंखला शुरू होने के बाद का निचला स्तर था। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रमुख संकेतक यह है कि रबी फसल का उत्पादन कैसा रहता है। अगर उत्पादन उम्मीद से ज्यादा रहता है और कीमतें स्थिर बनी रहती हैं तो इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'सीएसओ द्वारा मंजूर किए गए तरीके के मुताबिक रबी की बुआई के रकबे को इसमें शामिल किया गया है। आंकड़ों से संकेत मिलता है कि सीएसओ को उम्मीद है कि 2019 में भारत का रबी उत्पादन सामान्य रहेगा।'
3 जनवरी 2020 तक रबी की फसल की बुआई पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब 6.82 प्रतिशत ज्यादा थी और यह पिछले 5 साल के औसत रकबे की तुलना में 4.65 प्रतिशत अधिक थी। रबी की सभी फसलों की बुआई का रकबा पिछले साल की तुलना में ज्यादा था। वहीं खरीफ के उत्पादन में 0.80 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई थी।
अगर ग्रामीण इलाकों में आमदनी बढ़ती है तो पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा असर पड़ सकता है, हालांकि इससे ग्रामीण इलाकों के एक छोटे हिस्से की आमदनी बढ़ती है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी का कहना है, 'खाद्यान्न के दाम में बढ़ोतरी निश्चित रूप से उत्पादकों के लिए अच्छी खबर है क्योंकि इससे उन्हें अच्छी आमदनी होगी लेकिन ग्रामीण इलाकों में मजदूरी में बढ़ोतरी उनके लिए अच्छी खबर नहीं हो सकती है। मुझे लगता है कि सब्जियों के दाम कम होंगे क्योंकि यह मौसमी होती हैं। लेकिन दलहन की महंगाई बढ़ सकती है।'
श्रम ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि सीपीआई-एएल में तेज बढ़ोतरी के कारण अक्टूबर 2019 में सामान्य कृषि श्रमिकों (पुरुष) की वास्तविक ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि 5.16 प्रतिशत के नकारात्मक क्षेत्र में चली गई।
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