तेल की कीमतों ने बढ़ाई कंपनियों की चिंता | श्रीपद ए ऑटे और राम साहू / January 06, 2020 | | | | |
अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव और उसके ब्रेंट क्रूड तेल के दामों पर भी असर से भारतीय कंपनियों की चिंताएं बढ़ गई हैं। ब्रेंट क्रूड तेल की कीमतें सोमवार को करीब 70 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं। देश में कंपनियां पहले ही कमजोर आर्थिक स्थिति से जूझ रही हैं। अब उन्हें लागत में बढ़ोतरी और उसकी वजह से मार्जिन घटने का संकट भी नजर आ रहा है।
बाजार में भी यह चिंता साफ नजर आई। कच्चे तेल की कीमतों से तुलनात्मक रूप से अधिक जुड़ाव रखने वाले क्षेत्रों जैसे तेल विपणन (ओएमसी), विमानन, पेंट एवं एडहेसिव, सीमेंट और टायर के शेयरों की कीमतों में सात फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई, जबकि एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स करीब दो फीसदी लुढ़ककर बंद हुआ।
इस समय मांग कमजोर बनी हुई है। ऐसे में कंपनियां का कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ ग्राहकों पर डालने में सक्षम होना अहम होगा। इसकी वजह यह है कि अमेरिका और ईरान के बीच तनातनी की अनदेखी नहीं की जा सकती। हालांकि बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि हालात सामान्य होने पर तेल की कीमतें नीचे आ जाएंगी।
इंडिया रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, 'अमेरिका और ईरान के बीच यह तनाव कितने लंबे समय तक बना रहेगा, इसे लेकर कुछ कहना मुश्किल है। हालांकि इससे कच्चे तेल की आपूर्ति में अवरोध पैदा होगा और अगर तेल की कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहीं तो यह बड़ी चिंता की बात होगी।' कुछ अन्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर हालात बदतर हुए तो ब्रेंट क्रूड तेल के दाम 70 डॉलर प्रति बैरल या वित्त वर्ष 2019 की औसत कीमतों से 8-9 फीसदी अधिक रहेंगे।
ऐसे माहौल में इंडियन ऑयल कॉरपोरेश जैसी तेल विपणन कंपनियों पर बड़ा असर पड़ सकता है क्योंकि इसका उनका रिफाइनिंग और मार्केटिंग मार्जिन सीधे प्रभावित होगा। हालांकि तेल विपणन कंपनियों ने हाल में ऊंची कीमतों का बोझ ग्राहकों पर डालने की अपनी क्षमता दिखाई है। मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के विश्लेषक स्वर्णेंदू भूषण का मानना है कि तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी से तेल विपणन कंपनियों के लिए बढ़ी कीमतों का बोझ ग्राहकों पर डालना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अगर वे ऐसा नहीं कर पाईं तो भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) के विनिवेश को लेकर सवाल खड़ा हो जाएगा। तेल विपणन कंपनियों पर अतिरिक्त दबाव अधिक ब्याज लागत के रूप में आएगा क्योंकि तेल की ऊंची कीमतों से उनकी कार्यशील पूंजी की जरूरत बढऩे के आसार हैं।
हालांकि निर्मल बांग के अनुसंधान प्रमुख सुनील जैन की राय अलग है। उनका मानना है कि तेल विपणन कंपनियां लागत के बोझ को ग्राहकों पर डालने के लिए ईंधन की कीमतें बढ़ा सकती हैं। वहीं बीपीसीएल के विनिवेश की योजना को मद्देनजर रखते हुए ईंधन की कीमतों को नियंत्रित करने में सरकार के दखल देने के आसार नहीं हैं। हालांकि इसका पता आने वाले समय में ही चल पाएगा।
जैन ने कहा कि हालांकि विमानन कंपनियों के लिए कीमतों में बढ़ोतरी मुश्किल साबित हो सकती है क्योंकि इससे यात्रियों की संख्या प्रभावित हो सकती है। विमानन कंपनियों की परिचालन लागत में करीब 40 फीसदी हिस्सा कच्चे तेल का है।
अन्य क्षेत्र जिन पर कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का नकारात्मक असर पड़ेगा, उनमें टायर और सीमेंट शामिल हैं। ये दोनों क्षेत्र इस समय कमजोर मांग के दौर से गुजर रहे हैं। पेंट और एडहेसिव पर भी तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का असर पड़ेगा। लेकिन ये क्षेत्र कीमत बढ़ाने की स्थिति में हैं, इसलिए उनके लिए मार्जिन को बनाए रखना बड़ी चिंता नहीं होगी।
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का फायदा केवल तेल एïवं गैस उत्पादक क्षेत्र को मिलेगा क्योंकि इसे अपने उत्पादों के ज्यादा दाम मिलेंगे। हालांकि पीएसयू के विनिवेश से संबंधित मुद्दों के कारण सोमवार को ओएनजीसी और ऑयल इंडिया के शेयर करीब 1-2 फीसदी नीचे थे। साफ तौर पर दबाव बढ़ रहा है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि भारतीय कंपनियां मार्जिन और मात्रात्मक वृद्धि के लिहाज से कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से कैसे निपटती हैं।
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