बंगाल में भाजपा नेताओं में बढ़ी असंतुष्टि | अभिषेक रक्षित / January 06, 2020 | | | | |
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) न केवल नागरिक समाज के विभिन्न वर्गों बल्कि विपक्षी दलों तथा पश्चिम बंगाल में पार्टी के मध्यम कतार के नेताओं के निशाने पर भी आ गई है। राज्य में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसा के साथ प्रदर्शन हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को राज्य में किसी भी कीमत पर राज्य में लागू न करने की प्रतिबद्धता जताई है। वह देश के दूसरे दलों के साथ भी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ तालमेल बनाने की कोशिश में हैं।
दूसरी तरफ राज्य में भाजपा नेता भी नागरिकता संशोधन कानून के प्रति दबे सुर में ही आलोचना कर रहे हैं। भाजपा राज्य इकाई के उपाध्यक्ष चंद्र कुमार बोस इस कानून के मौजूदा स्वरूप की आलोचना को लेकर सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं। उनका कहना है, 'देश किसी दल की राजनीति से ऊपर है। आखिर मैं कैसे चुप रह सकता हूं जब मैं यह देख पा रहा हूं यह गलत हो रहा है।'
सुभाष चंद्र बोस (नेताजी) के परिवार से ताल्लुक रखने वाले बोस कहते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून मौजूदा स्वरूप में देश की धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा, 'मैं नागरिकता कानून के खिलाफ नहीं हूं। लेकिन मौजूदा स्वरूप में यह मुसलमानों के खिलाफ है। मेरा यह मानना है कि यह समुदाय देश के इतिहास और विरासत का अहम हिस्सा है और इन्हें भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। नेताजी अगर होते तो वह इस कानून को कभी पारित होने की इजाजत नहीं देते।'
पार्टी के दूसरे नेता बोस की तरह इतने मुखर नहीं हैं लेकिन वे सवाल करते हैं कि इस कानून की वजह से राज्य में भाजपा की संभावनाओं पर क्या असर होगा। ऐसे वक्त में जब भाजपा ने राज्य में अपना दखल बढ़ाना शुरू किया था लेकिन नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी की वजह से पार्टी की संभावनाएं क्षीण नजर आ रही हैं। पिछले साल आम चुनाव के दौरान भाजपा का राज्य में अच्छा प्रदर्शन रहा और पार्टी ने राज्य की 42 सीट में से 18 हासिल करते हुए 40.25 फीसदी वोट हिस्सेदारी पा ली। तृणमूल को 22 सीट मिलीं और पार्टी की वोट हिस्सेदारी 43.28 फीसदी रही।
हालांकि विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी को न केवल अपने मजबूत गढ़ खडग़पुर सदर को गंवाना पड़ा बल्कि वह दो अन्य सीटों पर भी तृणमूल का मुकाबला नहीं कर पाई। कुछ हारने वाले उम्मीदवारों और पार्टी के मझोले क्रम के नेतृत्व ने भी चुनाव में खराब प्रदर्शन के लिए नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को जिम्मेदार ठहराया। बोस का मानना है कि अगर इस वक्त पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होते हैं तो भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषक सव्यसाची बसु रॉय चौधरी कहते हैं, 'भाजपा के नेतृत्व के सुर में भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भ्रम वाली स्थिति है जिसकी वजह से पार्टी की संभावनाओं को नुकसान हो रहा है।'
तृणमूल पार्टी में भी मझोले स्तर के नेता भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनके हाथों से मुस्लिम वोट खिसक रहे हैं और इस समुदाय के समर्थन के बगैर राज्य की सत्ता में वापस आना मुश्किल है क्योंकि इन मतदाताओं की तादाद 30 फीसदी है। राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, 'पश्चिम बंगाल के हिंदू भी इस बात को लेकर चिंतित हैं क्योंकि असम में 12 लाख हिंदू एनआरसी से बाहर हैं।'
इसके अलावा भाजपा के असंतुष्ट नेताओं का भी मानना है कि जब तक राज्य सरकार केंद्र के साथ सहयोग नहीं करती है तब तक नागरिकता संशोधन कानून पर अमल नहीं किया जा सकता। राज्य के एक असंतुष्ट भाजपा नेता कहते हैं, 'संसद में कई कानून पारित हुए हैं लेकिन क्या सबको सफलतापूर्वक अमलीजामा पहनाया गया है? संघीय संरचना में किसी भी कानून के ठीक तरह से लागू करने के लिए राज्य सरकार का सहयोग जरूरी है।' पार्टी में असंतोषजनक स्थिति बनने के बावजूद भाजपा ने विपक्ष की रणनीति का विरोध करने का फैसला किया है और यह लोगों को नागरिकता संशोधन कानून के फायदे गिना रही है।
पार्टी 'अभिनंदन यात्रा' के जरिये अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही है और देश भर में ऐसी रैलियों का आयोजन कर रही है। पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष दिलीप घोष राज्य में हो रही हिंसा में कथित तौर पर शामिल होने और अतिवादी रुख अपनाने के लिए ममता बनर्जी के प्रशासन और तृणमूल की आलोचना कर रहे हैं और उनके मुताबिक यह देश के हितों के खिलाफ है।
भाजपा के मुताबिक देश के नागरिकों को नागरिकता कानून को लेकर चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि किसी को भी राष्ट्रीयता साबित करने के लिए सामान्य आधिकारिक दस्तावेज की जरूरत होगी। हालांकि इसके लिए जरूरी दस्तावेज की सूची को अंतिम रूप देना बाकी है।
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