नैशनल कंपनी लॉ अपील ट्रिब्यूनल ने शुक्रवार को कंपनी पंजीयक, मुंबई की याचिका पर सुनवाई पूरी कर ली। यह याचिका टाटा संस बनाम साइरस मिस्त्री मामले में फैसले में प्रतिकूल टिप्पणी हटाने के लिए दाखिल की गई है। न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की अगुआई वाले दो सदस्यीय पीठ ने कहा, इस मामले में वह अपना फैसला नहीं बदलेगा, लेकिन इस पर स्पष्टीकरण जारी करेगा कि आरओसी पर इस फैसले से कोई कलंक यानी लांछन न लगे। 18 दिसंबर को अपने आदेश में एनसीएलएटी ने आरओसी के खिलाफ गंभीर टिप्पणी की थी। कहा गया था कि टाटा संस ने आरओसी के सहयोग से हड़बड़ी में खुद को सार्वजनिक कंपनी से प्राइवेट कंपनी के रूप में तब्दील कर दिया, जो अवैध है। मुखोपाध्याय ने कहा कि इस आदेश में हड़बड़ी का इस्तेमाल कंपनी के लिए किया गया, न कि आरओसी के लिए। हमने किसी गलत मंशा से आदेश जारी नहीं किया और इससे आरओसी पर कोई लांछन नहीं लगा है।अपील ट्रिब्यूनल ने कहा कि वह स्पष्ट करेगा कि सिर्फ आरओसी ने ही कंपनी के सार्वजनिक से निजी इकाई बनने के मामले पर एनसीएलटी के आदेश का पालन किया। मुखोपाध्याय ने कहा, हम अपना फैसला नहीं बदलेंगे। चूंकि आरओसी कभी भी अनिवार्य पक्षकार नहीं था और हमें उन पर लांछन लगाने का कोई न्यायाधिकार नहीं है। आरओसी के वकील ने ट्रिब्यूनल से कहा कि यह फैसला आरओसी के लिए काफी आलोचनात्मक है और समझा जा रहा है कि उसने अवैध काम किया जबकि उसने इस मामले में सिर्फ एनसीएलटी के आदेश का पालन किया है। एनसीएलएटी के चेयरपर्सन ने कहा, ये हमारे निष्कर्ष हैं और अगर आपको इस आदेश से किसी तरह की समस्या है तो आप सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।आरओसी ने ट्रिब्यूनल से कहा कि मौजूदा कंपनी अधिनियम यह तय करने के लिए सबस्क्रिप्शन की सीमा तय नहीं करता कि कंपनी को प्राइवेट यानी निजी माना जाए। कानून में संशोधन कारोबारी सुगमता में इजाफे के लिए किया गया था।
