चेन्नई स्थित मुरुगप्पा ग्रुप के प्रवर्तकों का आपसी विवाद गहराता ही जा रहा है। मुरुगप्पा ग्रुप के पूर्व वरिष्ठतम सदस्य और संरक्षक एमवी मुरुगप्पन की दो वर्ष पहले मृत्यु के बाद परिसंपत्ति निपटान का मामला अब तक नहीं सुलझ पाया है। एमवी मुरुगप्पन कार्बोरंडम यूनिवर्सल के चेयरमैन और समूह की परोपकारी संस्था के न्यासी भी थे।
मुरुगप्पन की मौत के बाद उनकी 8.15 प्रतिशत हिस्सेदारी के वारिसों में उनकी दो पुत्रियों में सबसे बड़ी एवं पेशे से तकनीकी सलाहकार वल्ली अरुणाचलम भी अपनी माता एव वी वल्ली मुरुगप्पन के साथ शामिल थीं। अरुणाचलम ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि उन्हें जल्द ही कोई न कोई रास्ता निकलने की उम्मीद है, लेकिन जल्द कोई समाधान नहीं निकला तो उन्हें दूसरे विकल्प आजमाने होंगे।
उन्होंने कहा, 'निदेशक मंडल में महिलाओं को जगह दिलाने की यह लड़ाई उन दूसरी महिलाओं के लिए स्थितियां आसान कर देगी, जिन्हें भेदभाव से गुजरना पड़ रहा है।' मुरुगप्पन ग्रुप की इंजीनियरिंग, चीनी, कृषि उत्पाद, प्लांटेशन, कन्फेक्शनरी बायो-उत्पाद, रसायन, बीमा एवं वित्तीय सेवाओं आदि कारोबारों में मौजूदगी है। यह नौ विभिन्न सूचीबद्ध कंपनियों का भी परिचालन करता है, जिनका संयुक्त कारोबार 36,000 करोड़ रुपये से अधिक और बाजार पूंजीकरण 69,000 करोड़ रुपये है। समूह के हितों पर इसकी एक कंपनी अंबाडी इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड का नियंत्रण है। अरुणाचलम का कहना है कि यह एक प्राइवेट कंपनी है, जिसके निदेशक मंडल में एक भी महिला प्रतिनिधि नहीं है।
अरुणाचलम का तर्क है कि उनके पिता की मृत्यु के बाद कंपनी का मौजूदा प्रबंधन एवं उनके चाचा एमवी सुबैया, जो परिवार में वरिष्ठतम हैं, और उन्होंने विरासत को लेकर दो संभावित उपायों पर विचार किया था। इन दो विकल्पों में एक विकल्प दिवंगत पिता की हिस्सेदारी उचित बाजार मूल्य पर खरीदना और उन्हें बाहर निकलने की अनुमति देना या निदेशक मंडल में उन्हें जगह देना था।
हालांकि समूह ने किसी भी विकल्प पर सहमति नहीं जताई। उन्होंने कहा, 'अब कंपनी में एक सबसे बड़े शेयरधारक की हैसियत से कंपनी के संचालन को लेकर हमें कुछ नहीं बताया जा रहा है। अरुणाचलम ने कहा कि वह विभिन्न विकल्पों पर विचार करने के तैयार थी। उन्होंने कहा, 'सौदा करने का हमेशा एक उचित तरीका हा सकता है और हमने यह भी नहीं कहा कि हमारे किसी भी लेनदेन का भुगतान एकमुश्त कर दिया जाए।'
अरुणाचलम ने कहा कि उनके पिता की इच्छा थी कि सभी परिसंपत्ति वितरण सदभाव पूर्ण तरीके से किया जाए, लेकिन दो वर्ष बीतने के बाद उन्हें लग रहा है कि वे सभी विकल्प दूर हाथ से निकल रहे हैं, जिनसे उन्हें खुशी (पिता) मिल सकती थी। उन्होंने कहा, 'मैं यथार्थवादी हूं, लेकिन हालात नहीं सुधरे तो मुझे दूसरे उपलब्ध विकल्पों पर विचार करना होगा।' अरुणाचल ने कहा कि जब उनके पिता जीवित थे तो उन्होंने परिवार का पूरा साथ दिया और सदस्यों को सभी तरह से मदद की। उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि उनके योगदानों को इस समय कोई याद करने के लिए तैयार नहीं है।
वी सुबैया और एमए अलगप्पन ने इस बारे में उन्हें भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया। मुरुगप्पा समूह के अधिकारियों ने भी इस मामले में प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। उनका कहना है कि यह मामला परिवार और परिवार से जुड़ी निवेश कंपनी से जुड़ा है। मुरुगप्पा के मौजूदा संरक्षक सुबैया समूह के कार्यकारी चेयरमैन रह चुके हैं। अलगप्पन भी समूह के कार्यकारी चेयरमैन रह चुके हैं और उन्होंने 2009 में यह पद छोड़ा था। सवाल यह है कि अगर अरुणाचलम पुरुष होती तो क्या स्थिति अलग होती? अरुणाचलम को ऐसा लगता है। उन्होंने कहा कि परिवार के मौजूदा प्रमुख एमवी सुबैया ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि परिवार ने कभी भी महिला सदस्यों को कारोबार में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी है।
कई सफल पारिवारिक कारोबारी समूहों की तरह मुरुगप्पा समूह ने भी भविष्य की तैयारी के लिए स्वामित्व को परिचालन प्रबंधन की भूमिका से अलग किया है। इनमें पेशेवर मैनेजरों और गैर पारिवारिक निदेशकों को कॉरपोरेट बोर्ड में शामिल करना शामिल है। साथ ही समूह में भविष्य के मद्देनजर अपने कारोबार के पोर्टफोलियो में भी बदलाव किया है।
हालांकि समूह की कई कंपनियां कम मुनाफा दे रही हैं लेकिन उसका जोर नए क्षेत्रों में निवेश और मौजूदा कारोबार के विस्तार पर है। 2018 में कंपन ने रूस में एक गैस संयंत्र पर 2,000 करोड़ रुपये निवेश करने की घोषणा की थी। इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज (आईआईएएस) के प्रबंध निदेशक अमित टंडन ने कहा कि कई प्रवर्तकों वाले किसी भी बड़े कारोबारी समूह के लिए प्रबंधन की व्यवस्था में बदलाव आसान नहीं है। हालांकि कारोबार के बदलते समीकरणों के मद्देनजर इसकी समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए। सबसे अहम बात यह है कि ऐसा सर्वसम्मति से होना चाहिए। पिछले दशक में कंपनियों और कॉरपोरेट समूहों में एक बड़ा बदलाव यह रहा कि महिलाओं की संख्या पहले से बढ़ गई।
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