सूखे खेत और भूमिगत जल का नहीं कोई आसरा | |
ज्योति मुकुल / 01 02, 2020 | | | | |
हरियाणा के गांवों में भूमिगत जल बनाए रखने की कोशिश हो रही है पर राजस्थान
के किसानों के पास न तो पानी है और न उम्मीद
राजस्थान और हरियाणा के कई हिस्सों में महिलाओं का बाहर निकलकर बात करना असामान्य है। ऐसे में जयपुर जिले की चौमू तहसील के उदयपुरिया गांव में प्रेम देवी जब बोलना शुरू करती हैं तब वह इस असमंजस में होती हैं कि उन्हें बैठकर बात करनी चाहिए या खड़े रहकर।
उनके आंगन के बाहर एक पेड़ पर लगे पपीतों को प्लास्टिक से लपेटा हुआ है। ये दिखने में बड़े लगते हैं लेकिन अभी पके नहीं है। वह बताती हैं कि कैसे उनकी आधा हेक्टेयर से भी कम जमीन पर दो बोरवेल थे जिनसे छह साल पहले ही पानी निकलना बंद हो गया। उनका परिवार बाजरा उगाने के लिए अब बारिश की सिंचाई पर ही पूरी तरह निर्भर है जिसे लोग घर में खाते भी हैं और बकरी के लिए चारे का इंतजाम भी हो जाता है। उनका बेटा अपनी आजीविका चलाने के लिए एक निर्माण परियोजना में काम करता है।
उनकी कई शिकायतों में ग्रिड बिजली की शिकायत भी है। उनके परिवार को बिजली के बिल में 833 रुपये की सब्सिडी मिलती है लेकिन अब नियम में बदलाव की वजह से बैंक खाते में नकदी हस्तांतरण होता है। वह कहती हैं कि उन्हें पैसा नहीं मिलता है और अधिकारी कहते हैं कि शायद उनका बैंक खाता नहीं जुड़ा होगा।
जयपुर और आगरा को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 52 से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर सीकर जिले के श्री माधोपुर तहसील के भरणी गांव में मुरली धर के सूखे खेत में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। उनके परिवार में 12 सदस्य हैं और उनके बेटे मजदूरी करते हैं जिससे उनका घर चलता है। वह बारिश के मौसम में ही बाजरा और एक किस्म की तिलहन तारामिरा उगाते हैं जो देश के उत्तरी पश्चिमी सूखे क्षेत्र में उगाई जाती है।
तारामिरा सरसों की फसल की तरह ही होता है जिसे परंपरागत तौर पर राजस्थान और हरियाणा में उगाया जाता है। झुंझुनू जिले में बागवानी विभाग के सहायक निदेशक धर्मवीर डूडी कहते हैं कि गेहूं की तुलना में इस क्षेत्र के लिए तिलहन अच्छी फसल है। वह कहते हैं, 'अगर गेहूं से प्रति क्विंटल 2,000 रुपये मिलते हैं तब सरसों से करीब 4,000 रुपये मिलते हैं। इसके अलावा गेहूं में ज्यादा खाद देने की जरूरत पड़ती है और इसके लिए कम से कम छह से सात बार सिंचाई करनी होती है। सरसों में केवल तीन बार सिंचाई करनी पड़ती है और खाद भी कम लगता है। इसके अलावा सरसों के पत्ते से सूक्ष्म जीव पैदा होते हैं जो मिट्टïी की सेहत के लिए अच्छे होते हैं।'
झुंझुनू जिले से लेकर हरियाणा के महेंद्रगढ़ तक खेतों के बीच कई खेजड़ी के पेड़ नजर आते हैं। इन पंरपरागत पेड़ों से मिट्टी को नाइट्रोजन मिलता है और इसे क्षेत्र के लिए अच्छा माना जाता है। डूडी का कहना है, 'आपको राजस्थान में ऐसे पेड़ खूब देखने को मिलेंगे। जब आप सीमा पार कर हरियाणा की तरफ जाते हैं तब आपको ऐसा नहीं दिखेगा।'
यह सड़क हरियाणा में नारनौल की तरफ बढ़ती है जहां छह लेन वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 11 की चर्चा है। भैंसावता खुर्द गांव के काशी राम इस बात को लेकर हैरानी जताते हैं कि इस सड़क से उनकी किस्मत बदलेगी या नहीं। उनके सूखे खेत से कोई आमदनी नहीं हो पाती। उनके परिवार को गांव के एक कुएं से पीने का पानी मिलता है और सिंचाई के लिए उन्हें बारिश पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कुछ साल पहले उन्होंने मुर्गीपालन का काम किया था लेकिन यह चल नहीं पाया। वह कहते हैं, 'मैं मुर्गीपालन वाला शेड अब शादियों के लिए देता हूं।'
राजस्थान और हरियाणा के ज्यादातर हिस्सों में पानी की दिक्कत है। ऐसे में राज्य सरकारों ने सौर संचालित पंप योजना के लिए सूक्ष्म सिंचाई को अनिवार्य बना दिया है। ऐसे में सिंचाई के लिए बिजली बिल शून्य हो जाता है लेकिन ज्यादा मात्रा में भूमिगत जल निकाले जाने का खतरा बना रहता है।
राजस्थान सरकार में निदेशक (बागवानी) वी श्रवण कुमार कहते हैं कि राज्य कई सौर जल पंप नियंत्रक को बढ़ावा देगा ताकि सिंचाई से इतर दूसरे कामों मसलन थ्रेशिंंग और आटा चक्की आदि के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल हो सके। वह कहते हैं, 'सिंचाई के लिए एक कनेक्शन और दूसरे इस्तेमाल के लिए तीन की जरूरत होगी।' केंद्र की कुसुम योजना के तहत कंपोनेंट सी में किसान, बिजली वितरण कंपनियों को अतिरिक्त बिजली बेचेंगे। इसका लक्ष्य भूमिगत जल के ज्यादा इस्तेमाल को रोकना है।
हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के देरोली अहीर गांव में एक दूसरी ही स्थिति नजर आती है जो सिंचाई वाली नहरों के नजदीक हैं। भूप सिंह कहते हैं, 'सूखी जमीन की समस्या को आंशिक रूप से बदल दिया गया है।' गांव की पंचायत ने एक हेक्टेयर जमीन तालाब और दो कुएं बनाने के लिए दिया है। बारिश के पानी के अलावा नारनौल नहर से निकलने वाला ज्यादा पानी इन जगहों पर जमा हो जाता है। सिंह अपने पुराने घर के बगल में नया घर बनाने मेंं व्यस्त हैं क्योंकि उनके बेटे की शादी होने वाली है। वह कहते हैं, 'पांच किलोमीटर के दायरे में यह जीवनरेखा बन गई है।' हालांकि उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि उनके नए घर की छाया की वजह से बगल में मौजूद सोलर पैनल का उत्पादन कम हो सकता है।
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