टाटा समूह के नेतृत्व वाली कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय में दी अपनी याचिका में कहा है कि टाटा समूह के संस्थापक रतन एन टाटा और ट्रस्ट के अन्य नोमिनी को टाटा संस के मामलों में पहले से कोई फैसला लेने से रोकने का एनसीएलएटी का आदेश संदिग्ध है और यह कंपनी के शेयरधारकों और बोर्ड सदस्यों के अधिकारों का उल्लंघन है। टाटा समूह कंपनियों की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में टाटा ट्रस्ट्स की 66 प्रतिशत हिस्सेदारी है और टाटा इन ट्रस्टों के चेयरमैन हैं। ट्रस्ट के अन्य नोमिनी के साथ टाटा ने साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन से हटाने में अहम योगदान दिया जिससे मिस्त्री और टाटा के बीच तीन वर्ष पुराना टकराव और बढ़ गया। टाटा संस द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि एनसीएलएटी के आदेश में चेयरमैन के चयन से संबंधित टाटा संस के आर्टिकल 118 की बगैर कोई कारण बताए पूरी तरह से अनदेखी की गई है। टाटा संस के मामले में, चूंकि टाटा ट्रस्ट्स के पास लगभग 66 प्रतिशत शेयर पूंजी है, लेकिन यह दैनिक प्रबंधन से संबंधित नहीं है और बहुसंख्यक शेयरधारकों के हितों को सुरक्षित बनाने के लिए आर्टीकल 121 शामिल किया गया था। याचिका में कहा गया है, 'एनसीएलएटी के निर्णय ने टाटा संस के आर्टीकल ऑफ एसोसिएशन को मनमाने ढंग से पेश किया है, जिसमें बहुसंख्यक शेयरधारक अल्पसंख्यकों के अधीन हैं जिससे कॉरपोरेट लोकतंत्र के मूल नियम का उल्लंघन हुआ है।' लगता है कि एनसीएलएटी इसे लेकर गलत तथ्यों से प्रभावित हुआ है कि मिस्त्री की कंपनियों ने टाटा संस में लगभग 100,000 करोड़ रुपये का निवेश किया था। मिस्त्री की कंपनियों ने बोनस इश्यू और राइट इश्यू के जरिये अपनी बहुलांश शेयरधारिता खरीदी और टाटा संस की शुरुआती पूंजी के तौर पर सिर्फ 69 करोड़ रुपये का निवेश किया था।
