नया साल गुजरे साल से कम निराशाजनक होने की उम्मीद | ए के भट्टाचार्य / January 02, 2020 | | | | |
वर्ष 2019 के निराशाजनक ढंग से खत्म हो जाने के बाद वर्ष 2020 से तमाम उम्मीदें लगी हैं। क्या नया साल भारतीय अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक पाएगा? और पिछले साल अधिकांश समय अपने सियासी एजेंडे पर ही टिकी रही नरेंद्र मोदी सरकार इस साल अर्थव्यवस्था पर अधिक ध्यान देगी? वर्ष 2020 में मोदी सरकार की तरफ से उठाए जाने वाले कदमों के बारे में कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता है, भविष्यवाणी करना तो दूर की बात है। नए साल में प्रमुखता से सामने आने वाले प्रमुख आर्थिक मुद्दों की सूची तैयार करना कहीं अधिक सुरक्षित होगा। यहां पर तीन ऐसे मुद्दों या घटनाओं की सूची है जो अगले 12 महीनों में घटित हो सकते हैं।
एयर इंडिया बन जाएगी इतिहास: अगर अधिकारियों पर यकीन करें तो सरकारी स्वामित्व वाली एयरलाइन एयर इंडिया जून 2020 के बाद वजूद में नहीं रहेगी। मोदी सरकार इस बात की पुरजोर कोशिश कर रही है कि इसे किसी निजी एयरलाइन को बेच दिया जाए लेकिन इसका कोई खरीदार ही नहीं दिख रहा है। अगर जून तक खरीदार सामने नहीं आता है तो सरकार एयर इंडिया का परिचालन बंद कर देगी। इसके पायलटों ने पहले ही नागरिक उड्डयन मंत्रालय को पत्र भेजकर कहा है कि एयर इंडिया को बंद करने के पहले उनके वेतन एवं अन्य भत्तों के बकाये का भुगतान किया जाए।
एयर इंडिया की बंदी देश के नागरिक उड्डयन क्षेत्र में एक दौर के अंत की निशानी होगी। इस एयरलाइन को टाटा ने शुरू किया था और कुछ समय तक इसका संचालन भी किया। फिर देश के पहले प्रधानमंत्री ने इस एयरलाइन का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला किया। लेकिन किसी भी प्रधानमंत्री ने एयर इंडिया की बाजार हिस्सेदारी में कमी, उसकी अक्षमता में वृद्धि और घाटा बढऩे से रोकने की कोशिश नहीं की। नतीजा यह हुआ कि समय के साथ सरकारी खजाने पर उसकी निर्भरता बढ़ती चली गई।
लेकिन मोदी सरकार ने 2017 के मध्य में यह फैसला किया कि एयर इंडिया का निजीकरण किया जाएगा। लेकिन बिक्री के लिए अपनाई गई प्रक्रिया ऐसी थी कि उसका नाकाम होना तय था। दोबारा सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने इसके निजीकरण की कोशिश फिर शुरू कर दी है लेकिन खास कामयाबी नहीं मिली है। अब कहा जाने लगा है कि जून में इसे बंद कर दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो यह इसकी तस्दीक करेगा कि सरकारों ने एयर इंडिया को किस तरह लगातार नजरअंदाज किया है और अपनी एक परिसंपत्ति को नष्ट होने दिया। अगर निजीकरण की कोशिश पहले की गई होती और जमीनी धरातल पर रहते हुए आकर्षक पेशकश की गई होती तो एयर इंडिया अपने बदतर भविष्य से बच सकती थी।
बजट से दिखेगी सरकारी वित्त की सही तस्वीर: एक महीने बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2020-21 का बजट पेश करेंगी। इस बजट से यह साफ संकेत मिलेगा कि सरकार सुस्त पड़ती आर्थिक वृद्धि से किस तरह निपटना चाहती है। वह राजकोषीय मजबूती की जरूरत को ध्यान में रखते हुए करों में कटौती या ढांचागत परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाने या दोनों तरीकों के मिश्रित इस्तेमाल में से किसे आजमाती हैं।
हालांकि बजट से अधिक स्पष्ट होने वाली बात सरकारी वित्त की सही स्थिति से जुड़ी होगी। इसमें पहली बार यह स्वीकारोक्ति होगी कि वर्ष 2018-19 में वास्तविक सकल कर राजस्व संग्रह 2019 के बजट में पेश संशोधित अनुमानों से भी काफी कम रहा था। सरकार की गैर-बजट उधारियों की सच्ची तस्वीर भी इस बजट से पता चल सकेगी। अपने व्यय के लिए सरकार ने अपने प्रमुख राजकोषीय घाटे आंकड़े पर प्रतिकूल असर डाले बगैर अतीत में गैर-बजट उधारियां की थीं। यह देखना दिलचस्प होगा कि बजट 2020 गैर-बजट उधारियों या कल्पनाशील लेखांकन का रास्ता अपनाए बगैर हासिल राजकोषीय घाटे के बारे में अधिक वास्तविक तस्वीर पेश करता है या नहीं।
जीएसटी परिषद की बैठकें होंगी हंगामेदार: वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की नई दिल्ली में गत महीने हुई बैठक ने यह दिखाया कि आने वाले महीनों में इसकी चर्चाएं कितनी हंगामाखेज होंगी? परिषद की 38वीं बैठक में लॉटरी दरें तय करने का फैसला होना था। इसके लिए परिषद के इतिहास में पहली बार मतदान का तरीका आजमाया जाना था। तीन वर्षों के अपने वजूद में जीएसटी परिषद में सारे निर्णय सर्वसम्मति से ही लिए गए थे।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में देश की सियासत बदल गई है। अब केवल 17 राज्यों में ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकारें रह गई हैं। जीएसटी परिषद में 29 राज्यों और दो केंद्रशासित क्षेत्रों- दिल्ली एवं पुदुच्चेरी को मताधिकार मिला हुआ है। हालांकि राज्यों एवं केंद्रशासित क्षेत्रों के मत का मूल्य 2:1 है। अगर किसी निर्णय पर सहमति नहीं बनती है तो परिषद में मतदान होगा। बैठक में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों के तीन-चौथाई मत पाने पर ही प्रस्ताव स्वीकृत हो सकेगा। खास बात यह है कि इसमें केंद्र सरकार को अकेले ही 33 भारांक हासिल है। हालांकि मोदी सरकार जीएसटी परिषद की बैठकों में भाजपा-शासित 17 राज्यों पर भरोसा कर सकती है। लेकिन इनका समर्थन मिलने के बाद भी उसके पास 69 अंक ही हो पाएंगे। यानी उसे कोई फैसला लेने के लिए फिर भी छह मतों का इंतजाम करना होगा। इस तरह जीएसटी परिषद की बैठक में उसे कम-से-कम तीन अन्य राज्यों का समर्थन भी चाहिए होगा। इतना तो तय है कि 2020 में जीएसटी परिषद की बैठकों में अधिक विवाद होंगे और केंद्र सहकारी संघवाद की भावना के अनुरूप चलने के लिए मजबूर होगा।
वर्ष 2020 में ये तीनों मसले यह दिखाएंगे कि नया साल भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ शासन के लिए भी कितनी नई चुनौतियां पेश करने वाला है? अगर सरकार इन घटनाओं से जल्द सही सबक सीखती है तभी यह सोचा जा सकता है कि 2019 की तुलना में 2020 का अंत उतना निराशाजनक नहीं होगा।
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