परबती लाल छोटू राम जाट ने अपने सिर पर परंपरागत पगड़ी बांधी हुई है और उन्हें देखकर ऐसा अंदाजा होता है कि वह ऐसे हठी इंसान होंगे जो किसी भी कीमत पर बदलना नहीं चाहेंगे। सब्सिडी का लाभ लेने वाले दूसरे तबके के प्रति उनमें अजीब तरह का गुस्सा है। राजस्थान के सीकर में महरौली खटीक में रहने वाले जाट, बागवानी विभाग के अधिकारियों के एक समूह से कहते हैं, 'मैं आंदोलन से बच कर रहता हूं। जैविक खाता हूं और कभी बीमार नहीं पड़ता।' अधिकारियों का यह समूह उन्हें सौर ऊर्जा से संचालित पंप का इस्तेमाल करने के लिए आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे उनकी खेत की सिंचाई आसानी से हो सकती है, इसके लिए किसी को रात में जागना भी नहीं पड़ेगा और बिजली बिल की बचत भी होगी।
वह राज्य सरकार की कुछ योजनाओं का लाभ पाने की पात्रता नहीं रखते हैं क्योंकि उनके दो बेटे सरकारी नौकरी में हैं और वे इस वक्त गुजरात में सीआईएसएफ के लिए काम करते हैं। हालांकि इसके बावजूद वह सौर संचालित पंप के लाभार्थी हो सकते हैं। जाट के तीन बेटों में से एक उनके खेत में उनकी मदद करते हैं और वह सिंचाई के लिए हर दो महीने में 1,800 रुपये खर्च करते हैं। उन्हें सिंचाई के लिए रोजाना छह घंटे की जल आपूर्ति की जाती है। वह अपने पड़ोसी शिशुपाल मीणा से बिल्कुल अलग हैं जिन्होंने एक पॉलीहाउस बनाने के साथ ही बारिश का पानी संग्रह करने के लिए तालाब बनाया है और उनके पास 5 हॉर्सपावर (एचपी) का सोलर पंप है।
राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर जयपुर की तरफ उदयपुरिया है जहां हरि भगवान कुमावत अपने गांव की महिला पटवारी अधिकारी से काफी नाराज दिखते हैं। वह कहते हैं, 'यह तो सौर ऊर्जा की बात है न कि घरेलू बिजली की।' वह एक डीजल ट्रैक्टर की तरफ इशारा करते हैं जिससे एक पंप चल जाता है और खेतों में सिंचाई भी हो जाती है। पटवारी ही सौर ऊर्जा संचालित पंपों के लिए आवेदन को स्वीकृति देता है और उसकी एक शर्त यह है कि किसानों के पास ग्रिड कनेक्शन नहीं होना चाहिए या फिर पंपों को डीजल पर नहीं चलाया जाना चाहिए।
राजस्थान सरकार में प्रधान सचिव (बागवानी) नरेश पाल गंगवार कहते हैं कि केंद्र की कुसुम योजना के दूसरे अहम शर्त (कंपोनेंट सी) के मुताबिक सौर ऊर्जा पंप के लिए पात्रता रखने के लिए किसानों के पास सिंचाई के लिए ग्रिड कनेक्शन नहीं होना चाहिए। वह कहते हैं, 'ग्रिड कनेक्शन वाले किसान जो सौर ऊर्जा वाले पंप चाहते हैं वे कुसुम के कंपोनेंट सी के तहत सरकारी सब्सिडी हासिल कर सकते हैं।' उनका ही विभाग कंपोनेंट बी पर अमल कर रहा है जिसके तहत उन्हें अतिरिक्त 25,000 पंप लगाने हैं। राज्य के बजट में इसके लिए 257 करोड़ रुपये की सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। राज्य सरकार ने जो पोर्टल सेट किया है उसके जरिये करीब 48,000 आवेदन मिले हैं। निदेशक (बागवानी) वी श्रवण कुमार कहते हैं, 'हम पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर 25,000 कनेक्शन दे रहे हैं।'
हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के देरोली अहिर गांव के किसान एक घंटे के लिए पानी खरीदने के लिए 80-150 रुपये खर्च करते हैं। कुछ लोग जसवंत सिंह की तरह होते हैं जो पहले कुएं से पानी निकालकर उसका इस्तेमाल करते हैं हालांकि वे अब इसका कभी-कभार ही इस्तेमाल करते हैं। सिंह कहते हैं, 'दिसंबर और जनवरी सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए अच्छे नहीं हैं। भीषण गर्मी वाले मौसम में भी सोलर प्लेट्स से बिजली पैदा नहीं होती जब तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड को पार कर लेता है। हमें पहले की व्यवस्था पर ही निर्भर रहना पड़ता है।'
हरियाणा कुसुम योजना के सभी तीनों हिस्सों को लागू करने जा रहा है और इसने पंपों के लिए सब्सिडी बढ़ाई है। इस योजना के तहत केंद्र और राज्य द्वारा 30-30 फीसदी सब्सिडी देने की अधिसूचना थी लेकिन हरियाणा अकेले ही 45 फीसदी सब्सिडी देगा। एक ऑनलाइन पोर्टल के जरिये राज्य ने आवेदन मंगाए हैं और उन्हें 15,354 आवेदन मिले हैं। पहले चरण में कंपोनेंट बी के तहत इसे 15,000 पंपों की स्वीकृति मिली है।
महेंद्रगढ़ जिले के दफ्तर में 2019-20 के लिए आवेदनों की संख्या 1,000 के लक्ष्य के मुकाबले 819 है और यह कहा जा सकता है कि प्रतिक्रिया उतना उत्साहजनक नहीं है। जिले के 8 में से तीन ब्लॉक, नारनौल, निजामपुर, नांगल चौधरी में भूमिगत पानी निकालने की अनुमति नहीं मिली है और इसी वजह से आवेदनों की संख्या कम है।
कुमार के मुताबिक राजस्थान में 5-7.5 हॉर्स पावर सोलर पंप की मांग राजस्थान में ज्यादा है क्योंकि भूमिगत जल स्तर कम है। 3 हॉर्सपावर से भी कम क्षमता वाले पंप का इस्तेमाल केवल खेत के तालाब से पानी निकालने के लिए किया जाता है। हालांकि वह यह चेतावनी देते हैं कि ईईएसएल ने छह ठेकेदारों के नाम पर मुहर लगाई है ऐसे में पहले के मुकाबले अमल की रफ्तार धीमी रह सकती है क्योंकि तब 20 से अधिक ठेकेदार इस पर काम कर रहे थे।
केंद्रीय मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक ईईएसएल की निविदा में करीब 20 बोलीकर्ताओं ने हिस्सा लिया। इसमें 31 ने दिलचस्पी दिखाई थी लेकिन छह अयोग्य साबित हुए और बाकी ने कोई वित्तीय बोली नहीं लगाई। बोली लगाने वाले को पांच जोन में से चुना गया और पूर्वोत्तर तथा पर्वतीय क्षेत्रों के लिए दर ज्यादा थी। निविदा को अंतिम रूप दिए जाने में देरी के बावजूद राज्य कुसुम की शुरुआत करने के लिए किसानों की तरफ से आवेदन मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
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