ऊहापोह में फंसी वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी परियोजना का क्या है भविष्य? | शाइन जैकब / नई दिल्ली January 01, 2020 | | | | |
दो घटनाओं ने दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी बनाने की भारत की योजना को संदेह के घेरे में ला दिया है। 6 करोड़ टन क्षमता और 44 अरब डॉलर की लागत वाली वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी परियोजना की घोषणा जून 2018 में की गई थी। इस परियोजना में सऊदी अरामको और अबूधाबी नैशनल ऑयल कंपनी (एडनॉक) के पास 50 फीसदी हिस्सेदारी तथा शेष हिस्सेदारी देश की तेल विपणन कंपनियों इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) के पास है।
उसके बाद गत अगस्त में मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपने केमिकल और रिफाइनिंग कारोबार की 20 फीसदी हिस्सेदारी 15 अरब डॉलर में सऊदी अरामको को बेचने की योजना की घोषणा की। यह बिक्री कंपनी की मार्च 2021 तक अपना कर्ज समाप्त करने की व्यापक योजना का हिस्सा है। नवंबर 2019 में सरकार ने कहा कि वह बीपीसीएल में अपनी 53.29 फीसदी हिस्सेदारी बेचेगी। इसे खरीदने की इच्छुक कंपनियों में सऊदी अरामको के अलावा फ्रांसीसी कंपनी टोटाल, बीपी पीएलसी, वेदांता, एक्सॉन मोबिल, आरआईएल और अदाणी समूह शामिल हैं।
इन बातों ने वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी की संभावनाओं को धूमिल किया है क्योंकि अब बहस इस बात पर हो रही है कि एक नई रिफाइनरी शुरू करना बेहतर होगा या पहले से चली आ रही रिफाइनरी को ठीक माना जाए? दूसरे शब्दों में कहें तो बीपीसीएल को वेस्ट कोस्ट की तुलना में खरीदारों के लिए बेहतर विकल्प माना जा रहा है।
हालांकि विशेषज्ञों की राय ऐसी नहीं है क्योंकि बीपीसीएल की परिसंपत्ति का अवमूल्यन हो रहा है। वह 20 वर्ष पहले वर्ष उत्कृष्टतम स्तर पर रही होगी। एक वैश्विक सलाहकार कंपनी के वरिष्ठ विशेषज्ञ की मानें तो नई रिफाइनरी के निर्माण में नई तकनीक शामिल होती है और साथ ही कच्चे तेल का प्रबंधन और उत्पादन आदि अधिक किफायती होता है। यह भविष्य की दृष्टि से बेहतर तैयारी होती है।
यह बात सैद्धांतिक तौर पर ठीक है लेकिन चूंकि यह भारत है इसलिए वेस्ट कोस्ट प्रोजेक्ट पहली ही बाधा पर अटक गया- यानी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण। रत्नागिरि क्षेत्र में भारी विरोध के कारण इस संयुक्त उपक्रम को रायगड जिले में 140 किमी उत्तर में स्थानांतरित करना पड़ा। कच्चे तेल की तीन यूनिट वाले रिफाइनरी-पेट्रोकेमिकल परिसर के लिए कम से कम 15,000 एकड़ जमीन की आवश्यकता है। साथ ही इसे समुद्र के निकट भंडारण और बंदरगाह की सुविधा भी चाहिए। स्थानीय लोगों के भारी विरोध के कारण इनमें से कोई मांग पूरी नहीं हो सकी है।
अब यह परियोजना राजनीतिक दिक्कतों में उलझ सकती है। शिव सेना जो रत्नागिरि में जमीन से जुड़े विरोध का नेतृत्व कर रही थी, वह अब महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार चला रही है। ऐसे में रायगड में जमीन अधिग्रहण करना भी मुश्किल हो सकता है। इस संयुक्त उपक्रम यानी रत्नागिरि रिफाइनरी ऐंड पेट्रोकेमिकल्स के मुख्य कार्याधिकारी बी अशोक कहते हैं, 'हम रिफाइनरी का तकनीकी काम कर रहे हैं। हालांकि जमीन तय करना जरूरी है और हमारी नजर दो-तीन स्थानों पर है। सऊदी अरामको फिलहाल चल रहे कामकाज में पूरी तरह शामिल है।'
उद्योग जगत के एक अनुमान के मुताबिक बीपीसीएल के रिफाइनिंग क्षेत्र का मूल्य ही लगभग 400 डॉलर प्रति टन है जबकि शेष बुनियादी ढांचे में 200-300 डॉलर प्रति टन को और शामिल किया जा सकता है। इसमें टर्मिनल, पाइपलाइंस और खुदरा स्टोर आदि शामिल हैं। यह अनुमान एस्सार-रोसनेफ्ट के हालिया सौदे और एचपीसीएल की बाड़मेर रिफाइनरी की योजनाओं के आधार पर लगाया गया। बीपीसीएल को पेट्रोकेमिकल्स में ज्यादा अनुभव नहीं है। दूसरी ओर एक नई रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स उपक्रम स्थापित करने की लागत करीब 600-700 डॉलर प्रति टन आएगी।
आईओसी के पूर्व निदेशक (वित्त) ए के शर्मा कहते हैं, 'किसी भी विदेशी निवेशक के लिए बीपीसीएल एक आदर्श चयन है क्योंकि विपणन के देशव्यापी नेटवर्क के अलावा इससे तत्काल नकदी की आवक भी शुरू हो जाएगी। जबकि वेस्ट कोस्ट जैसी परियोजना शुरू करने में पांच से सात वर्ष का समय लग सकता है।'
मौजूदा बाजार हिस्सेदारी के अनुसार बीपीसीएल में 53.29 प्रतिशत सरकारी हिस्सेदारी की कीमत करीब 57,000 करोड़ रुपये होगी। इस पर यदि 20-30 प्रतिशत प्रीमियम जोड़ लिया जाए तो यह राशि 70,000 से 80,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है। आईजीएल और पेट्रोनेट जिनमें बीपीसीएल की हिस्सेदारी क्रमश: 22.5 फीसदी और 12.5 फीसदी है उन्हें भी ध्यान में रखना होगा क्योंकि इससे मूल्य और बढ़ेगा। बहुत संभव है कि खरीदार इस मूल्यांकन पर भुगतान न करें। पब्लिक सेक्टर ऑफिसर्स एसोसिएशन, फेडरेशन ऑफ ऑयल पीएसयू ऑफिसर्स और कन्फेडरेशन ऑफ महाराष्ट्र कंपनी ऑफिसर्स एसोएसिएशन जैसे अधिकारियों के संगठनों की मानें तो बीपीसीएल की परिसंपत्तियों का मूल्य करीब 9 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है।
उद्योग जगत के विशेषज्ञ अलग तरह से सोचते हैं। वैश्विक सलाहकार फर्म के एक अधिकारी ने कहा कि रूढि़वादी तरीके से आकलन किया जाए तो बीपीसीएल के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये का स्थानापन्न मूल्य मिलेगा लेकिन एक नई रिफाइनरी अधिक लचीलापन प्रदान कर सकती है।
'नई बनाम मौजूदा' की यह बहस काफी समय से चल रही है और ज्यादातर यह सऊदी अरामको की भारत में निवेश करने की योजनाओं पर केंद्रित रही है जो दुनिया की सबसे बड़ी कच्चा तेल उत्पादक कंपनी है। अप्रैल 2016 में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कंपनी के तत्कालीन चेयरमैन खालिद अल फलीह से मुलाकात की और उनके सामने तीन पेशकश रखीं: वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी में साझेदारी, मध्य प्रदेश में भारत पेट्रोलियम और ओमान ऑयल कंपनी के स्वामित्व और परिचालन वाले संयुक्त उपक्रम बीमा रिफाइनरी के विस्तार में भागीदारी या फिर दक्षिण-पश्चिम गुजरात में दहेज में एक पेट्रोकेमिकल संयंत्र। आरआईएल के पास यहां एक पेट्रोकेमिकल परिसर है।
आरआईएल के साथ अरामको का सौदा मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली इस कंपनी को कच्चा तेल जुटाने की क्षमता बढ़ाने में मदद करेगा और उसके सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम)में सुधार करने में मदद मिलेगी। सौदे की शर्त के मुताबिक अरामको जामनगर रिफाइनरी को भी 25 एमटीपीए कच्चे तेल की आपूर्ति करेगा। इससे भी आरआईएल की कच्चा तेल हासिल करने की क्षमताएं मजबूत होंगी। यह उसे पारंपरिक रूप से भी अन्य प्रतिस्पर्धियों पर बढ़त दिलाता रहा है। आपूर्ति की अतिरिक्त सुरक्षा के अलावा यह सौदा आरआईएल को मूल्य के मोर्चे पर भी बढ़त दिला सकता है क्योंकि एक अहम आपूर्तिकर्ता अब कारोबार में निवेशक भी होगा।
इसका सकारात्मक असर पेट्रोकेमिकल्स कारोबार पर भी पड़ेगा जिसमें कच्चा तेल प्रमुख कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होता है। इससे आरआईएल को कच्चे तेल के वैश्विक बाजार की अनिश्चितताओं से भी निजात मिलेगी। यह अनिश्चितता अमेरिका और ईरान के बीच उपजे तनाव की वजह से है। यद्यपि एक असंबद्घ मामले के बकाये के चलते सरकार द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर इस सौदे को अवरुद्घ करने की मांग की गई है।
आरआईएल का सौदा और बीपीसीएल का आसन्न विनिवेश दोनों ने अरामको के लिए परिदृश्य बदल दिया है। जैसा कि एक विश्लेषक ने सुझाया इस महीने के आरंभ में वाल स्ट्रीट में आरंभिक पेशकश के चलते अरामको के पास इतना पैसा है कि वह इन तीनों सौदों पर आगे बढ़ सके।
इसके लिए पर्याप्त वजह मौजूद है। भारत अपनी जरूरत का 18 फीसदी कच्चा तेल सऊदी अरब से आयात करता है और इस उभरते बाजार में कंपनी को अपनी पहुंच मजबूत करने में मदद मिलेगी। पेट्रोलियम निर्यातक देशों के समूह ओपेक के अनुमान के मुताबिक 2040 तक भारत की कच्चे तेल की मांग बढ़कर 58 लाख बैरल रोजाना हो जाएगी। यह वैश्विक चरणबद्घ वृद्घि का लगभग 40 फीसदी होगी। इस बात से समझा जा सकता है कि वैश्विक कारोबारी भारत में इस कदर रुचि क्यों ले रहे हैं?
|