चालू वित्त वर्ष 2020 में राज्यों की राजकोषीय स्थिति पर दबाव रहने की संभावना है। इसकी वजह आर्थिक मंदी, कर राजस्व में कमी और ज्यादा व्यय है। इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुताबिक ऐसे में उनका राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत पर पहुंच सकता है, जो बजट में 2.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। कुल मिलाकर राज्यों ने वित्त वर्ष 2020 के लिए 30.97 लाख करोड़ रुपये कुल राजस्व का अनुमान लगाया था। वित्त वर्ष 19 का पुनरीक्षित अनुमान (10.2 प्रतिशत वृद्धिï के साथ) 28.10 लाख करोड़ रुपये था। राज्यों के बजट उनकी विधानसभाओं में पेश किए गए जैसा केंद्र करती है। राज्यों ने वित्तवर्ष 2020 में नॉमिनल जीडीपी में 11 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था। लेकिन वित्त वर्ष 202 की पहली छमाही में नॉमिनल वृद्धिï दर 7 प्रतिशत थी। कर राजस्व में वृद्धि नॉमिनल जीडीपी वृद्धि के समानांतर चलता है। रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि ऐसे में राज्य सरकारों के कर संग्रह में बजट अनुमान की तुलना में उल्लेखनीय कमी आने की संभावना है। चालू वित्त वर्ष मेंं कर राजस्व में वृद्धि 11.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था और इस हिसाब से 22.15 लाख करोड़ रुपये राजस्व आने की संभावना थी। राज्यों का कर संग्रह 3 अलग अलग राजस्वों के हिसाब से घटा है- राज्य का अपना कर राजस्व (एसओटीआर, राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी), केंद्रीय कर में हिस्सेदारी (केंद्रीय वस्तु एïवं सेवा कर (सीजीएसटी) और अनुदान (जीएसटी मुआवजा)। वित्त वर्ष 2020 में पिछले साल की तुलना में केंद्र के करों में राज्यों की हिस्सेदारी 13.98 प्रतिशत बढऩे का अनुमान लगाया गया था। बहरहाल सालाना आधार पर वित्त वर्ष 2020 (अप्रैल-अक्टूबर) में सिर्फ 2.7 प्रतिशत बढ़ा है। इसकी वजह से राज्यों के राजकोषीय घाटे को लेकर दबाव बढ़ा है। राज्यों ने केंद्र के कर में से 8.5 लाख करोड़ रुपये मिलने का अनुमान लगाया था। लेकिन केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2020 में राज्यों का हिस्सा 8.1 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है। यहां तक कि 8.1 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य हासिल करने के लिए वित्त वर्ष 2020 की शेष अवधि में केंद्रीय करों का संग्रह 15.1 प्रतिशत बढ़ाना होगा, लेकिन ऐसा होने की संभावना कम ही नजर आ रही है।
