केरल विधानसभा में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को वापस लेने की मांग वाला प्रस्ताव मंगलवार को एक दिन के विशेष सत्र में पारित हो गया। इस तरह वाम दल द्वारा शासित यह पहला राज्य है जिसने इस विवादास्पद कानून के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया जिसको लेकर देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। इस बीच दिल्ली के अधिकारियों के मुताबिक केंद्र नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता देने की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन करने पर विचार कर रहा है ताकि अगर कोई राज्य इसका विरोध भी करे तो इस प्रक्रिया पर असर न पड़े।
गृह मंत्रालय जिलाधिकारी के जरिये नागरिकता का आवेदन देने की मौजूदा प्रक्रिया को खत्म करने पर विचार कर रहा है और इसके लिए एक नया अधिकारी अधिकृत किया जाएगा। तमिलनाडु में विपक्षी दल द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम और महाराष्ट्र में कांग्रेस नेता चाहते हैं कि इन राज्यों की विधानसभाओं में भी केरल की तरह ही विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर नागरिकता संशोधन कानून को खत्म करने की मांग की जाए। कई गैर भाजपाई मुख्यमंत्री जैसे कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने यह घोषणा की है कि वे नागरिकता संशोधन कानून पर अमल नहीं करेंगे लेकिन इन राज्यों की विधानसभाओं ने अब तक किसी औपचारिक प्रस्ताव के लिए स्वीकृति नहीं दी है।
केरल का विरोध
केरल में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव को राज्य में सत्तारुढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ), माकपा और विपक्षी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने समर्थन किया जबकि 140 सदस्यीय विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एकमात्र विधायक ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। इस प्रस्ताव में कहा गया, 'संसद के दोनों सदनों में पारित नागरिकता संशोधन विधेयक से समाज के कई वर्गों में चिंता की स्थिति बनी हुई है। नया कानून संविधान के भाग 3 में दिए गए धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी अधिकार के खिलाफ है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि धर्म के आधार पर नागरिकता तय करना ही देश के संविधान की बुनियादी संरचना के खिलाफ है जिसके तहत धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया गया है।' विधानसभा में ओ राजगोपाल एकमात्र भाजपा विधायक थे जिन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि दूसरे दल राजनीतिक फायदे के लिए विरोध प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी यह घोषणा की है कि सरकार अवैध प्रवासियों के लिए कोई बंदीगृह बनाने की योजना नहीं बना रही है।
राज्य विधानसभाओं को अधिकार नहीं
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि नागरिकता पर कोई कानून पारित करने की शक्तियां सिर्फ संसद के पास है और केरल विधानसभा सहित किसी राज्य विधानसभा को यह अधिकार हासिल नहीं है। केरल विधानसभा द्वारा प्रस्ताव पारित किए जाने के कुछ ही घंटों के बाद उनका बयान आया है। इस संशोधित कानून में पाकिस्तान, अफ गानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर प्रताडऩा का सामना करने के कारण भारत आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। उन्होंने कहा, 'यह कानून भारतीय नागरिकों से संबद्ध नहीं है और इस कारण यह नागरिकता ना तो सृजित करता है और न ही छीनता है।' उन्होंने यह याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने क्रमश: युगांडा के अल्पसंख्यकों और श्रीलंकाई तमिलों को नागरिकता मुहैया करायी थी। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर उन्होंने कहा कि यह भारत के 'सामान्य निवासियों' के बारे में सूचनाओं का व्यापक संग्रह है और इसका नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है।
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