रिजर्व बैंक ने बॉन्ड बेचे और खरीदे मगर बढ़ गया प्रतिफल
अनूप रॉय / मुंबई December 30, 2019
भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार को द्वितीयक बाजार से 10,000 करोड़ रुपये के 10 वर्षीय बॉन्ड की खरीद की, वहीं अल्पावधि वाले 8,501 करोड़ रुपये के बॉन्डों की बिकवाली की। आरबीआई की यह कवायद इस कैलेंडर वर्ष में दूसरी बार विशेष ओपन मार्केट ऑपरेशंस (ओएमओ) के जरिए हुई। ओएमओ के बाद दिलचस्प रूप से 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल कम होने के बजाय 5 आधार अंक चढ़कर 6.55 फीसदी पर बंद हुआ।
ऐसे ओएमओ का मकसद लंबी अवधि का प्रतिफल नीचे लाना है और अल्पावधि का प्रतिफल बढ़ाना है। 10 वर्षीय प्रतिफल का कटऑफ 6.4874 फीसदी पर आने के बावजूद प्रतिफल में बढ़ोतरी हो रही है। अल्पावधि में परिपक्व होने वाली प्रतिभूतियों (तीन साल) का कटऑफ प्रतिफल 5.39 फीसदी से 5.51 फीसदी के बीच रहा। आरबीआई ने कोई विशेष प्रतिभूतियां न बेचने का फैसला लिया है, शायद इसकी वजह बाजार की तरफ से कम प्रतिफल की पेशकश है।
एक बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, ओएमओ के बाद राज्य सरकारों की नीलामी का कैलेंडर सामने आया। इससे पता चला कि राज्य अगले तीन महीने में 25,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी लेंगे। इससे बाजार में ऐसा देखने को मिला। पिछले हफ्ते आरबीआई ने 10 साल के बॉन्ड का पूरा कोटा खरीद लिया था, लेकिन अगले साल परिपक्व होने वाले महज 6,825 करोड़ रुपये को बॉन्डों की बिकवाली की।
एक वरिष्ठ बॉन्ड डीलर के मुताबिक, ओएमओ के बाद पप्रतिफल में बढ़ोतरी फंडामेंटल को प्रतिबिंबित करने के लिए हुई है और यह वास्तविकता बताने के लिए भी कि जब स्पष्ट तौर पर वित्त वर्ष के आखिर से पहले 50,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी का डर हो तो प्रतिफल ज्यादा होना चाहिए।
बॉन्ड डीलर ने कहा, ओएमओ की घोषणा से प्रतिफल 6.75 फीसदी से घटकर 6.55 फीसदी पर आ गया। आप उम्मीद नहीं कर सकते कि प्रतिफल और नीचे जाएगा क्योंकि आरबीआई ने दिसंबर में अपने कदम रोक लिए थे। अगर और ओएमओ का ऐलान होता है तो बॉन्ड प्रतिफल में अस्थायी गिरावट आ सकती है। कीमतें बढऩे पर प्रतिफल घटता है। कम प्रतिफल से सरकार को सस्ती उधारी में मदद मिलती है।
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