भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए ऋण देने की शर्तें सख्त बनाने जा रहा है। इसके तहत ये बैंक अपने कुल ऋण का आधा हिस्सा ही व्यक्तियों और समूहों को दे सकेंगे। इन बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल ऋण में से कम से कम आधा ऋण 25 लाख रुपये प्रति उधारकर्ता से अधिक नहीं होना चाहिए। साथ ही उन्हें प्राथमिकता क्षेत्र के लिए ऋण लक्ष्यों को बढ़ाना होगा।
आरबीआई ने आज इससे संबंधित परिपत्र का मसौदा जारी किया। इसके मुताबिक यूसीबी को ये सभी बदलाव 31 मार्च, 2023 तक अपनाने होंगे। पंजाब ऐंड महाराष्ट्र कॉओपरेटिव बैंक (पीएमसी) में हाल में सामने आए घोटाले के बाद केंद्रीय बैंक ने यूसीबी के नियमों में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। पीएमसी में खुलासा हुआ है कि उसके प्रबंधन ने फर्जीवाड़ा करके एक ही समूह को 70 फीसदी से अधिक ऋण दिया था।
इसके मद्देनजर वित्त मंत्रालय और आरबीआई ने सहकारी बैंकों के लिए नए नियम बनाने का फैसला किया था। ये बैंक राज्य सरकारों और बैंकिंग नियामक के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। आरबीआई का कहना है कि नए नियमों से यूसीबी किसी व्यक्ति या समूह को ज्यादा ऋण देने के जोखिम से बचेंगे और वित्तीय समावेश के अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे।
यूसीबी के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्र को ऋण का लक्ष्य उनरकी कुल उधारी का 75 फीसदी करने का प्रस्ताव है जो अभी 40 फीसदी है। मार्च 2021 तक इसे 50 फीसदी, मार्च 2022 तक 60 फीसदी और मार्च 2023 तक 75 फीसदी पहुंचाने का लक्ष्य है।
केंद्रीय बैंक का कहना है कि यूसीबी की एकल और समूह उधारी की सीमा बैंक की टियर-1 पूंजी की क्रमश: 10 फीसदी और 25 फीसदी होनी चाहिए। अब तक वे अपने पूंजी फंड का 15 फीसदी एकल उधारकर्ता को और 40 फीसदी समूह उधारकर्ता को दे सकते थे। ऋण देने की संशोधित क्षमता यूसीबी द्वारा दिए जाने वाले सभी ऋणों पर लागू होगी। उनके द्वारा दिए जाने वाले कुल ऋण में से कम से कम आधा ऋण 25 लाख रुपये प्रति उधारकर्ता से अधिक नहीं होना चाहिए। इसमें वित्त पोषित और गैर वित्त पोषित दोनों तरह के ऋण शामिल हैं। मौजूदा यूसीबी को 31 मार्च, 2023 तक अपने ऋण का हिसाब किताब नए नियमों के मुताबिक ढालना होगा। इस प्रयोजन के लिए ऋण में सभी तरह के वित्त पोषित और गैर वित्त पोषित ऋण शामिल होंगे।
आरबीआई के परिपत्र के मसौदे में कहा गया है कि अगर सावधि ऋण या गैर वित्त पोषित है तो यह भुगतान की अवधि या परिपक्वता तक जारी रह सकता है। टियर-1 पूंजी बैंक की प्रमुख पूंजी होती है जबकि पूंजी फंड में चुकता पूंजी और मुक्त भंडार शामिल होता है। ऋण में वित्त पोषित और गैर वित्त पोषित उधारी सीमा और अंडरराइटिंग तथा इस तरह की अन्य प्रतिबद्धताएं शामिल होती हैं। आरबीआई ने परिपत्र के मसौदे में कहा है कि बैंकों के एकल या आपस में संबंध रखने वाले उधारकर्ताओं के समूह को ज्यादा ऋण देने से जोखिम बढ़ता है। जब ऐसे किसी उधारकर्ता को दिया गया ऋण फंस जाता है तो इससे संबंधित बैंक की पूंजी/हैसियत बुरी तरह प्रभावित होती है और कभी-कभार नकदी संकट और दिवालिया होने की नौबत भी आ जाती है।
आरबीआई ने कहा कि बैंकों को संशोधित नियमों और प्राथमिकता वाले क्षेत्र के लिए ऋण लक्ष्यों के पालन के लिए अपने निदेशक मंडल से एक कार्ययोजना की मंजूरी लेनी होगी। परिपत्र के मसौदे पर 20 जनवरी, 2020 तक सुझाव दिया जा सकता है।
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