भारत के लिए अहम है सन 2020 | आकाश प्रकाश / December 30, 2019 | | | | |
वर्ष 2019 का अंत करीब है और हम कह सकते हैं कि यह वर्ष एक बार फिर देश के सक्रिय फंड प्रबंधकों के लिए कठिन रहा है। बाजार का दायरा बहुत संकुचित रहा है और भले ही सूचकांक डॉलर के संदर्भ में 5-7 फीसदी का लाभ दर्शा रहे हों लेकिन हकीकत में भारत पर केंद्रित कई फंड गिरावट पर हैं। एक फंड आवंटक ने हाल ही में मुझसे कहा कि उन्होंने देश के फंडों के प्रदर्शन में ऐसी भिन्नता कभी नहीं देखी।
हम सन 2020 में प्रवेश कर रहे हैं और कई लोगों ने लंबी अवधि में भारत की तेजी को लेकर सवाल करने शुरू कर दिये हैं। भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और प्रति व्यक्ति अनुपात आज जिस स्तर पर है, चीन 2003-04 में उस स्तर पर था। किसी को यह अपेक्षा नहीं कि भारत चीन की तरह दो अंकों की वास्तविक जीडीपी भले हासिल न कर पाए लेकिन क्या 7 फीसदी की दर भी वास्तविक है? प्रशासनिक और न्यायिक अड़चनों को देखते हुए ऐसा लगता तो नहीं।
वैश्विक निवेशक देश की वास्तविक वृद्धि के रुझान आंक रहे होंगे। क्या यह केवल 5-6 फीसदी है या हमारा देश 8 फीसदी की पुरानी दर की ओर वापसी कर सकता है? इससे निवेशकों के लिए बड़ा अंतर पैदा होगा। यदि भारत केवल 5 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल कर सकता है तो यहां समय क्यों गंवाना? 5 फीसदी वास्तविक जीडीपी के साथ 9 फीसदी की नॉमिनल जीडीपी हासिल होगी और मंदडिय़े कह सकते हैं कि लंबी अवधि के लिए भी यही दर होगी।
दरअसल भारत का शेयर प्रतिफल केवल 10-11 फीसदी है। हां, कुछ अच्छी कंपनियां हैं लेकिन ज्यादातर पहले ही काफी ऊपर कारोबार कर रही हैं। इस लिहाज से देखें तो भारत ऊंची और स्थायी वृद्धि के लिए तैयार नहीं है। 2003-08 में हम भाग्यशाली थे। उस वक्त वैश्विक वृद्घि का माहौल नरम था। पहले के सुधारों का भी लाभ मिल रहा था। हम दोबारा उस उच्च वृद्घि दर तक शायद ही लौट सकें।
उच्च वृद्घि के साथ आंकड़े स्वाभाविक रूप से अलग नजर आते हैं। 13 फीसदी की नॉमिनल जीडीपी वृद्घि और कुछ वर्षों के लिए 30 फीसदी की मुनाफा वृद्घि की बात करें तो मुनाफा बढऩे के साथ-साथ शेयर प्रतिफल भी बढ़ेगा। आय की इस धारा के लिए निवेशक भुगतान करने को तैयार हैं। इसलिए क्योंकि कोई अन्य बड़ा बाजार आने वाले पांच वर्ष में ऐसा प्रदर्शन नहीं कर पाएगा। वृद्घि की चुनौती से जूझ रही दुनिया में उच्च वृद्घि और बढ़ा हुआ शेयर प्रतिफल अत्यंत मूल्यवान है। इस उच्च वृद्घि परिदृश्य में जब देश की आबादी का तीसरा हिस्सा खपत करने लगेगा तो स्थायित्व और अनुमन्यता में भी सुधार होगा। निवेशक को कम स्थिर और अधिक अनुमान वाले बाजार में प्रीमियम चुकाएंगे।
निवेशक अभी भी निश्चित नहीं हैं कि देश में वृद्घि में यह कमी चक्रीय है या ढांचागत। अगले 12 महीनों में कई लोग लंबी अवधि का नजरिया कायम करेंगे। मंदी ने पहले ही सबको चौंका दिया है। उसकी अवधि के आकलन और कारणों का अनुमान लगाते हुए निवेशक लंबी अवधि के आवंटन पर निर्णय करेंगे।
सन 2020 वह वर्ष है जब आखिकार निवेशक मोदी सरकार के आर्थिक एजेंडे और नीति निर्माण की काबिलियत के बारे में नजरिया बनाएंगे। बीते पांच वर्ष के दौरान नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर, ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकट आदि के रूप में एक के बाद एक झटके लगे। कारोबारी जगत में साफ-सफाई का भी एक सिलसिला चला। यह कहीं न कहीं तो समाप्त होगा। अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने का क्या अर्थ है? यह अर्थव्यवस्था के लिए कैसे बेहतर है? यदि कॉर्पोरेट आय इतने बुरे दौर से गुजरेगी तो अर्थव्यवस्था को औपचारिक कैसे बनाया जा सकेगा? क्या औपचारिक बनाने का अर्थ है छोटे उपक्रमों का समापन क्योंकि वे बदल नहीं सकते? क्या अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने से रोजगार जाएंगे? जो लोग सोचते हैं कि राजनीतिक नेतृत्व के लिए अर्थव्यवस्था महत्त्वपूर्ण नहीं रहेगी उनके लिए आने वाला वर्ष अहम है। देश का नेतृत्व इस मंदी से कैसे निपटेगा?
सन 2020 दिखाएगा कि मोदी सरकार ढांचागत सुधारों को लेकर कितनी गंभीर है। देश गंभीर आर्थिक मंदी से गुजर रहा है, यदि हम अब सुधारों को लेकर अहम कदम नहीं उठाए तो कब उठाएंगे? वैश्विक निवेशकों को पूरा यकीन है कि भारत के लिए सरकारी बैंकों में सुधार का यह बेहतरीन अवसर है। इसके अलावा प्रशासनिक बदलावों और देश को बेहतर कारोबारी केंद्र बनाने का भी यह अच्छा मौका है। इस सरकार के पास राजनैतिक ताकत है, एक शक्तिशाली नेता है जो अतीत में वृद्घि हासिल करने में सहायक रहा है और जिसने जोखिम उठाने का माद्दा दिखाया है। यदि यह सरकार अफसरशाही से काम नहीं ले सकती तो ऐसा कोई नहीं कर पाएगा।
भारत के लिए यह अवसर है कि वह वृद्धि को बढ़ावा देने वाले नये सुधार अपना सके। यदि हमने अब जोर नहीं दिया तो भविष्य में इसके पक्ष में दलील देना मुश्किल होगा। आज गंवाया गया अवसर देश को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि निवेशकों के मन में भारत की बेहतरी और 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की संभावनाएं कम होंगी।
सन 2020 घरेलू भरोसा कायम करने का वर्ष भी होगा। मैंने इससे पहले कभी करोबारी जगत को इतना निरुत्साहित नहीं देखा। इसके लिए एक हद तक वे खुद उत्तरदायी हैं तो दूसरी तरफ कुछ मामलों में न्यायिक और सरकारी हस्तक्षेप भी इसकी वजह हैं। लोगों को दोबारा जोखिम लेना होगा। किसी भी निवेश या पूंजीगत व्यय में जोखिम रहता है और वित्तीय तंत्र को जोखिम लेने का समर्थन करना चाहिए। निवेशक यह समझते हैं कि हमारे पास राजकोषीय गुंजाइश नहीं है।
सरकार इस मंदी से यूं ही बच नहीं सकती। रिजर्व बैंक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को लेकर सचेत है और मौद्रिक गुंजाइश सीमित है। लब्बोलुआब यह कि बिना रुझान में सुधार के हम इस संकट से उबर नहीं सकते। रुझान में सुधार तभी आएगा जब कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों में भरोसा पैदा होगा। सन 2020 में मुझे आशा है कि गैर अमेरिकी बाजार, अमेरिका से बेहतर प्रदर्शन करेंगे और डॉलर कमजोर होगा। यह उभरते बाजारों के शेयरों के लिए सकारात्मक हो सकता है क्योंकि वैश्विक वृद्धि मजबूत होगी लेकिन नकदी की स्थिति सहज बनी रहेगी।
बीते दो वर्ष में व्यापक भारतीय बाजार के कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए किसी भी तरह के सकारात्मक रुझान का प्रतिफल भारी लाभ के रूप में सामने आ सकता है। इसके लिए जरूरी है कि हम संतुलन कायम रखें और भरोसा बहाल करें। वैश्विक निवेशक यकीन करना चाहते हैं हमें उन्हें इसकी वजह देनी होगी।
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