तालाबंदी से कानपुर के चमड़ा निर्यात में 29 फीसदी की गिरावट | वीरेंद्र सिंह रावत / लखनऊ December 29, 2019 | | | | |
कानपुर के चमड़ा कारखानों में करीब 13 महीने की तालाबंदी होने से तैयार चमड़े के निर्यात में कमी आई है। पिछले वित्त वर्ष 2018-19 की तुलना में चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-अगस्त के दौरान चमड़ा निर्यात में करीब 29 फीसदी की कमी आई है। भारत ने अप्रैल-अगस्त 2018 के दौरान करीब 33.46 करोड़ डॉलर कीमत के तैयार चमड़े का निर्यात किया था जबकि चालू वित्त वर्ष की इसी अवधि में विदेश भेजे जाने वाली खेप 29 फीसदी कम होकर 23.77 करोड़ डॉलर रह गई है। चमड़े की अन्य श्रेणियों के निर्यात में भी कमी आ रही है।
देश के तैयार चमड़े में कानपुर की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है। इस साल प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में गंगा के साफ बहाव के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने इन चमड़ा कारखानों को पूरी तरह बंद करने का आदेश दिया था। इससे इस उद्योग को जोरदार झटका लगा है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने कानपुर शहर में करीब 400 चमड़ा कारखानों को 15 दिसंबर, 2018 से 15 मार्च 2019 के बीच बंद रखने का निर्देश दिया था। इन इकाइयों ने 15 दिसंबर से करीब एक महीने पहले ही अपने शटर बंद कर दिए थे ताकि कचरा न निकले।
कानपुर के चमड़ा कारखानों में तालाबंदी के कारण देश के तैयार चमड़ा उद्योग में मंदी की स्थिति बनी और देश के चमड़ा उद्योग में कानपुर की हिस्सेदारी पिछले साल के 14 फीसदी से घटकर 11 फीसदी से कम हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा अवैध बूचडख़ानों पर कार्रवाई के बाद कानपुर की करीब 40 टेनरियों को अब तक पश्चिम बंगाल स्थानांतरित किया जा चुका है क्योंकि प्रदूषण और कच्चे चमड़े की आपूर्ति में बार बार बाधा आ रही है।
टेनरियों और चमड़े के सामान निर्माताओं सहित कानपुर का चमड़ा उद्योग करीब 12,000 करोड़ रुपये का है जिसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कानपुर और उन्नाव जिलों के करीब 10 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। इस कलस्टर से खाड़ी देशों, यूरोप, चीन और ईरान आदि को 6,000 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात होता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 दिसंबर को केंद्र की नमामी गंगे परियोजना की प्रगति की समीक्षा करने और गंगा में बह रहे पानी की गुणवत्ता में आए कथित सुधार को व्यक्तिगत स्तर पर देखने के लिए कानपुर का दौरा किया था। मोदी के दौरे के तुरंत बाद यूपीपीसीबी ने कानपुर के जाजमऊ इलाके में 248 चमड़ा टेनरियों को 50 फीसदी क्षमता पर परिचालन की शर्त के साथ चलने की अनुमति दी। हरित समूह दो महीने बाद स्थिति का आकलन करेगा और अनुमति आगे जारी रखने पर निर्णय करेगा। स्मॉल टैनर्स एसोसिएशन के सदस्य नैयर जमाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि टेनरियों का परिचालन शुरू करने में 15-20 दिन और लगेंगे क्योंकि उनमें बहुत सारे मरम्मत कार्य होने हैं।
इन टेनरियों के बंद होने से उत्तर प्रदेश में कच्चे चमड़े की कीमतों पर भी बुरा असर पड़ा था और उसमें 60 फीसदी से अधिक की गिरावट आई। उन्होंने बताया कि इस बीच व्यापारी कच्चे चमड़े को प्रसंस्करण के लिए चेन्नई, जालंधर, कोलकाता जैसे शहरों में भेज रहे थे। इस साल कुंभ मेले के समापन के बाद यूपीपीसीबी ने 122 टेनरियों को 50 फीसदी क्षमता पर परिचालन चालू करने की अनुमति दी थी। हालांकि, बाद में एनजीटी के दिशानिर्देशों का हवाला देकर परिचालन बंद करने का आदेश दिया गया। एक ओर जहां कानपुर की टेनरियों को पटरी पर लौटने में एक वर्ष से अधिक का समय लगने की उम्मीद है वहीं उद्योग के मालिकों का कहना है कि विदेशी खरीदारों का विश्वास जीत पाना मुश्किल काम होगा।
शर्त के साथ काम चालू करने से हमें निर्यात आर्डर हासिल करने में मदद नहीं मिलेगी। कारण कि विदेशी खरीदारों के मन में भविष्य में फिर से कारखानों के बंद होने की आशंका घर कर गई होगी। काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स (सीएलई) सेंट्रल रीजन के चेयरमैन जावेद इकबाल ने कहा यदि राज्य सरकार हमें स्थायी रूप से परिचालन की इजाजत दे तो उद्योग का उद्देश्य ठीक से पूरा हो पाएगा क्योंकि उसी स्थिति में हम अपने खरीदारों को नियमित आपूर्ति को लेकर मना पाएंगे।हालांकि, उन्होंने टेनरियां चालू करने के आदेश को सकारात्मक करार दिया और भरोसा जताया कि सरकार उद्योग की बेहतरी के लिए और अधिक कदम उठाएगी।
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