भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) वित्त मंत्रालय के साथ बजट पूर्व बैठक में बैंकों के अतिरिक्त प्रावधान और दूरसंचार कंपनियों के ऋण पर दबाव के मुद्दे पर चर्चा करेगा। आरबीआई के 7 जून के परिपत्र के कारण बैंक अतिरिक्त प्रावधान की मांग कर सकते हैं। इसके अलावा समायोजित सकल राजस्व पर उच्चतम न्यायालय के आदेश से दूरसंचार कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस आदेश के मुताबिक उन्हें सरकार को ब्याज और जुर्माने सहित 1.33 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करना है।
आरबीआई की पिछले सप्ताह आई वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) में कहा गया था कि बैंकों का सकल एनपीए सितंबर 2020 तक बढ़कर 9.9 फीसदी पहुंच सकता है जो सितंबर 2019 में 9.3 फीसदी था। बैंक का मानना था कि इसके लिए वृहद आर्थिक परिदृश्य में बदलाव, राजकोषीय फिसलन में मामूली बढ़ोतरी और उधारी वृद्धि का नकारात्मक प्रभाव शामिल हैं।
बैंक चूककर्ता कंपनियों का समाधान खोजने में नाकाम रहे हैं जिसके कारण आरबीआई ने 7 जून को परिपत्र जारी किया था। इसके कारण वित्त वर्ष 2020 की अंतिम तिमाही में 3.8 लाख करोड़ रुपये के ऋण पर संकट पैदा हो सकता है। आरबीआई रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं था। साथ ही उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद तीसरी तिमाही में दूरसंचार कंपनियों के ऋण पर दबाव के बारे में भी एफएसआर में कुछ नहीं कहा गया था। केंद्रीय बैंक के 12 फरवरी, 2018 के परिपत्र को उच्चतम न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। इसके बाद आरबीआई ने इस साल 7 जून को संशोधित परिपत्र जारी किया था। इसमें बैंकों से कहा गया है कि अगर वे समाधान प्रक्रिया में आगे बढऩे में नाकाम रहते हैं तो उन्हें अतिरिक्त प्रावधान करने होंगे। यह रकम समीक्षा अवधि के छह महीने बाद बकाया राशि का 20 फीसदी होगी और एक साल बाद इसमें और 15 फीसदी राशि जुड़ जाएगी। छह महीने की अवधि और एक महीने की मुहलत की अवधि 7 जनवरी, 2020 में खत्म होगी और इसके दायरे में 20 बड़े दबावग्रस्त खाते हैं।
7 जून का परिपत्र जब जारी किया गया था तो इसके दायरे में केवल 2,000 करोड़ रुपये से राशि के दबावग्रस्त खाते थे लेकिन यह 1 जनवरी, 2020 से यह 1,500 करोड़ रुपये से 2,000 करोड़ रुपये तक के खातों पर लागू होगा। हालांकि 1,500 करोड़ रुपये से कम राशि के दबावग्रस्त खातों के बारे में इसमें कोई जिक्र नहीं है। सूत्रों का कहना है कि जल्दी ही एक परिपत्र जारी किया जाएगा जिसमें इस तरह के दबावग्रस्त खाते शामिल किए जाएंगे।
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद दूरसंचार कंपनियों के ऋण पर नया बोझ पड़ा है। इस आदेश के मुताबिक उन्हें सरकार को 1.33 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करना है। दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियां पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही हैं। वित्त वर्ष 2019 में उनका सकल घाटा 1.4 लाख करोड़ रुपये और ऋण 4.9 लाख करोड़ रुपये था। इससे बैंक इन कंपनियों की कर्ज चुकाने की क्षमता से चिंतित हैं। पहले ही कई कंपनियां बंद हो चुकी हैं या उनका मामला राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट में चल रहा है। यही वजह है कि उनके लिए कर्ज चुकाना मुश्किल हो गया है। वित्त सचिव राजीव कुमार ने शनिवार को कहा कि आरबीआई की ताजा रिपोर्ट उसकी पिछली रिपोर्ट से मेल नहीं खाती है। कुछ दिन पहले आई रिपोर्ट में कहा गया था कि एनपीए घट रहा है। उन्होंने कहा कि आपको दबावग्रस्त परिसंपत्तियों और कुल परिसंपत्तियों का अनुपात देखना चाहिए जिसमें उल्लेखनीय कमी आई है।
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