रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन की चर्चा के बीच भारतीय रेलवे की सालाना योजना चिंताजनक तस्वीर पेश कर रही है। नैशनल ट्रांसपोर्टर की बजट से इतर संसाधनों (ईबीआर)पर निर्भरता बढ़ रही है और पूंजीगत व्यय में आंतरिक संसाधनों का हिस्सा घट रहा है। इसी तरह से रेलवे का परिचालन अनुपात (परिचालन व्यय और परिचालन राजस्व का अनुपात) चालू वित्त वर्ष के दौरान पहले ही 100 प्रतिशत पार कर चुका है। इससे संकेत मिलते हैं कि रेलवे ने अब तक जितना कमाया है, उससे ज्यादा खर्च किया है। वित्त वर्ष 2018-19 में परिचालन अनुपात 97.3 प्रतिशत था, जबकि 2017-18 में 98.4 प्रतिशत था। 2018-19 की वास्तविक प्राप्तियों के हिसाब से देखेंं तो पूंजीगत व्यय में आंतरिक संसाधनों का प्रतिशत घटकर 3.5 रह गया जो 2015-16 में 18 प्रतिशत था। वहीं दूसरी ओर इस अवधि के दौरान योजनागत पूंजीगत व्यय में ईबीआर पर निर्भरता 42 प्रतिशत से बढ़कर 57 प्रतिशत हो गई है। 2019-20 में इसमें आगे और बढ़ोतरी होने की संभावना है। ईबीआर में ज्यादा हिस्सा भारतीय रेलवे वित्त निगम (आईआरएफसी) और इंस्टीट्यूशनल फाइनैंस द्वारा एलआईसी जैसे कारोबारियों से ली गई उधारी का है।रेलवे के पूर्व वित्त आयुक्त आर शिवदासन ने कहा, '2006-07 में आंतरिक कमाई की हिस्सेदारी 35-40 प्रतिशत के उच्च सस्तर पर थी। इसका गिरकर 3.5 प्रतिशत पर आना चिंताजनक है। इसकी एक बड़ी वजह यह रही है कि उसके बाद की सरकारों ने यात्री किराया बढ़ाने में सुस्ती दिखाई, जो ममता बनर्जी के कार्यकाल से शुरू हुआ।' उन्होंने कहा कि उधारी बढऩा निश्चित रूप से मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों के मुताबिक है। अगर इस धन का इस्तेमाल समर्पित मालवाहक गलियारा (डीएफसी) जैसी परियोजनाओं में होता तो यह एक तरह का प्रोत्साहन होता, जिससे एक सुनिश्चित मुनाफे की उम्मीद की जा सकती है। आंतरिक संसाधनों से कमाई घटने की मुख्य वजह मालभाड़े और यात्रियों की आवाजाही में स्थिरता और यात्रियों को किराये में सब्सिडी दिया जाना है। एक अधिकारी ने कहा कि कमाई बढ़ाने के लिए यात्री किराये में जल्द ही सभी श्रेणियों में कम से कम 40 पैसे प्रति किलोमीटर बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है। हालांकि रेलवे के प्रवक्ता ने कहा कि किराये को तार्किक बनाने का यह मतलब नहीं होता कि उसमें बढ़ोतरी ही हो। 1 अप्रैल से 10 दिसंबर 2019 के बीच कुल कमाई में 0.5 प्रतिशत की मामूली गिरावट हुई है और यह 2018-19 के 1,22,759.9 करोड़ रुपये से घटकर 1,22,108.8 करोड़ रुपये रह गई है। माल ढुलाई से कमाई में 2.94 प्रतिशत गिरावट आई है और यह इस अवधि के दौरान घटकर 79,297.88 करोड़ रुपये रह गई है, जो 2018-19 में 81,697.05 करोड़ रुपये थी। एक अधिकारी ने कहा, 'सातवें वेतन आयोग के बाद खर्च बढऩे और पेंशन पर व्यय बढऩे और यात्रियों से कमाई कम रहने के कराण परिचालन मुनाफा प्रभावित हुआ है। माल ढुलाई से मिलने वाला राजस्व कम होने का भी असर रहा है, जो आर्थिक सुस्ती की वजह से प्रभावित हुआ है।' रेलवे की सालाना पेंशन देनदारी करीब 30,000 करोड़ रुपये है, जबकि उसके कर्मचारियों पर आने वाला खर्च करीब 79,000 करोड़ रुपये है। रेलवे बोर्ड ने वित्त मंत्रालय से मांग की है कि वह पेंशन में अंशदान करे, जिससे कि परिचालन अनुपात 70 प्रतिशत तक लाया जा सके। इसके साथ ही बोर्ड प्रदर्शन सूचकांकों को 90 प्रतिशत तक लाने पर भी काम कर रहा है, जिनमें परिटालन कुशलता मेंं सुधार और ईंधन की लागत कम करना शामिल है। चालू वित्त वर्ष के दौरान यात्री कियारे से कमाई 4.21 प्रतिशत बढ़ी है और यह दिसंबर 2018-19 तक के 35,250.34 करोड़ रुपये से बढ़कर इस साल दिसंबर तक 36,732.83 करोड़ रुपये हो गया है। दिलचस्प है कि रेलवे की माल ढुलाई इस दौरान 1.19 प्रतिशत घटकर 8723.7 लाख टन रह गई है। माल ढुलाई में कमी की बड़ी वजह कोयले की ढुलाई में 3.2 प्रतिशत की गिरावट है, जो पिछले साल की समान अवधि के 4,349 लाख टन की तुलना में घटकर 4,202 लाख टन रह गई।
