मार्च 2019 में सकल गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) का अनुपात सात साल में पहली बार घटने के बाद एक बार फिर भारतीय बैंकों का सकल एनपीए अनुपात बढऩे की आशंका है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा आज जारी छमाही वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में नरमी और उधारी मांग घटने से कुल लोन बुक में फंसे कर्ज की हिस्सेदारी बढ़ गई है।
हालांकि सरकार द्वारा बैंकों में पूंजी डालने और आरबीआई की ओर कई कदम उठाए जाने से बैंकिंग प्रणाली इस साल जून की तुलना में बेहतर स्थिति में है। इससे पहले वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट जून में जारी किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है, 'सितंबर 2019 में बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 9.3 फीसदी था जो सितंबर 2020 में 9.9 फीसदी हो सकता है। वृहद आर्थिक परिस्थितियां, चूक के मामले बढऩे और उधारी वृद्घि कम रहने से सकल एनपीए के बढऩे का खतरा है।'
रिपोर्ट को वित्तीय स्थायित्व एवं विकास परिषद (एफएसडीसी) की उप-समिति ने तैयार किया है, जिसे आरबीआई द्वारा जारी किया गया। इस हफ्ते की शुरुआत में आरबीआई ने रुझान एवं प्रगति रिपोर्ट में कहा था कि बैंकिंग क्षेत्र में आगे सुधार वृहद आर्थिक परिदृश्य में बदलाव पर निर्भर करेगा।' रिपोर्ट में कहा गया है कि भू-राजनीतिक अनिश्चितता का जोखिम पूरे वित्तीय तंत्र पर बना हुआ है। निर्यात पर दबाव रह सकता है लेकिन चालू खाते का घाटा नियंत्रण में रहेगा। रिपोर्ट के अनुसार, खपत और निवेश में कमी वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए अहम चुनौती बनी रह सकती है। 2019-20 की दूसरी तिमाही में सकल मांग में कमी आई थी जिससे आगे भी वृद्घि पर असर पड़ सकता है। आगे के परिदृश्य पर आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने रिपोर्ट में कहा है कि मौद्रिक नीति का लाभ वास्तविक अर्थव्यवस्था को मिलना सुनिश्चित होना चाहिए न कि वित्तीय बाजार की मजबूती में इसका उपयोग हो।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई ने आर्थिक माहौल के हिसाब से प्रतिक्रिया दी है और सक्रिय मौद्रिक नीति प्रदान करने का प्रयास किया है। दास ने संपूर्ण बोर्ड स्तर पर कारोबारी संचालन को बेहतर बनाने के महत्त्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह एक अहम कारक है जिसमें हमारी अर्थव्यवस्था को पूरी ताकत के साथ ऊपर उठाने की क्षमता है।
बैंकिंग क्षेत्र में स्थायित्व के संकेत दिख रहे हैं, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अपने प्रदर्शन में सुधार लाना चाहिए और परिचालन जोखिम से होने वाले नुकसान के लिए समुचित उपाय करने चाहिए। दास ने कहा कि निजी क्षेत्र के बैंकों को भी कारोबारी संचालन के पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
आरबीआई गवर्नर दास ने कहा कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की चिंताओं को लेकर बाजार का रुख अब बदल रहा है। ये कंपनियां निरंतर अपने कारोबारी मॉडलों का पुनर्गठन कर रही हैं। सितंबर में बैंकों की उधारी की वृद्घि दर सालाना आधार पर 8.7 फीसदी रही जबकि जमाओं में 10.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 की दूसरी तिमाही के बाद यह पहला मौका है जब उधारी वृद्घि जमा वृद्घि से कम रही। वाणिज्यिक क्षेत्र में सभी श्रेणियों में क्रेडिट में कमी आई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि क्रेडिट उठाव और जीडीपी वृद्घि में संबंध को देखते हुए वाणिज्यिक क्षेत्र में ऋण के प्रवाह में सुस्ती को दूर करने की जरूरत है। मार्च और सितंबर 2019 के बीच जीएनपीए अनुपात 9.3 फीसदी पर बरकरार रहा लेकिन बैंकिंग तंत्र का प्रोविजन कवरेज अनुपात (पीसीआर) मार्च 2019 के 60.5 फीसदी की तुलना में सितंबर 2019 में बढ़कर 61.5 फीसदी हो गया। यह बैंकिंग क्षेत्र के बढ़ते लचीलेपन का संकेत है। वित्तीय व्यवस्था में विभिन्न संस्थाओं के बीच द्विपक्षीय निवेश में मामूली गिरावट आई। भुगतान के मामले में निजी क्षेत्र के बैंकों की वृद्धि सालाना आधार पर सबसे अधिक रही जबकि प्राप्तियों के मामले में बीमा कंपनियों ने बाजी मारी। अंतर बैंक बाजार का आकार लगातार सिकुड़ रहा है और सितंबर अंत तक बैंकिंग क्षेत्र की कुल परिसंपत्तियों में इसका हिस्सा 4 फीसदी से भी कम रह गया है।
इस कमी के साथ-साथ सरकारी बैंकों के बेहतर पूंजीकरण से मार्च 2019 की तुलना में वित्तीय क्षेत्र में संचारी जोखिम कम हुआ है। फिर भी कई बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात सितंबर 2020 में 9 फीसदी के न्यूनतम नियामकीय स्तर से कम हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वृहद आर्थिक परिदृश्य बदतर होता है तो पांच बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात 9 फीसदी से नीचे जा सकता है।
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