वास्तविक हो बजट | संपादकीय / December 27, 2019 | | | | |
बजट की रूपरेखा तैयार करते वक्त किसी भी वित्त मंत्री को सबसे पहले आगामी वर्ष में अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि दर तय करनी होती है। राजस्व, घाटा तथा तमाम अन्य आंकड़े इस बात पर निर्भर करते हैं कि सरकार उक्त वृद्धि दर का कितना सटीक आकलन लगा पाती है। उदाहरण के लिए चालू वर्ष में यदि मुद्रास्फीति समेत जीडीपी वृद्धि दर (नॉमिनल) का अनुमान सही होता तो राजस्व आकलन में कुछ गंभीर खामियों से बचा जा सकता था।
सही अनुमान अतीत के रुझानों के सही अध्ययन पर निर्भर करता है। सन 2020 तक के दशक में अर्थव्यवस्था कमोबेश दोगुनी हो गई। इस दौरान औसत वृद्धि दर 7 फीसदी की रही। परंतु दशक के बीच के वर्षों में अर्थव्यवस्था को तेल कीमतों में भारी गिरावट से भी लाभ मिला। यह शायद दोहराया न जाए। इसके अलावा मौजूदा वैश्विक आर्थिक हालात भी बहुत उत्साहवद्र्धक नहीं हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था में कई सुधार करने की आवश्यकता है। वित्तीय क्षेत्र में सुधार की जरूरत है, निर्यात में ठहराव है, राजकोषीय या मौद्रिक नीति पहल की कोई खास गुंजाइश नहीं है। बीती तिमाही में चूंकि अर्थव्यवस्था का गैर सरकारी हिस्सा 3 फीसदी की गति से ज्यादा तेजी से नहीं बढ़ा, ऐसे में अर्थव्यवस्था के लिए अगले वर्ष के लिए 5 फीसदी के आसपास की अनुमानित वृद्धि दर ही वास्तविक होगी। इसमें ज्यादा से ज्यादा आधा फीसदी का बदलाव हो सकता है।
बीते दशक में 7 फीसदी की वृद्धि हासिल करने वाली तथा उससे पिछले दशक में और तेजी हासिल करने वाली अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत अच्छी दर नहीं है। परंतु हमारे सामने जिस तरह के कठिन विकल्प हैं, उन्हें देखते हुए धीमी वृद्धि को स्वीकार करने के सिवा चारा नहीं है। फिलवक्त तो 7 फीसदी की दर से विकसित होती अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए राजस्व अनुमान लगाया भी नहीं जा सकता। ऐसे में हकीकत का सामना करना ही बेहतर है। खासतौर पर तब जबकि बात बजट की तैयारी की हो। बजट में घाटे के आंकड़े को काफी कम करके बताया गया है। यह कमी जीडीपी के 2 फीसदी तक है। हर बजट में संसाधनों की सीमा होती है लेकिन आने वाले बजट में यह संकट भी चरम पर होगा।
बजट से इतर देखें तो मध्यम अवधि में पूर्वानुमान काफी उलझाऊ है। खासकर तब जबकि वृद्धि दर को 7 फीसदी के वांछित स्तर पर लौटने में समय लगे। वित्त मंत्री को अपने बजट भाषण में यह साफ करना चाहिए कि वह 7 फीसदी की दर कैसे हासिल करेंगी। उन्हें धीमी होती अर्थव्यवस्था के गतिशील होने तक हकीकत को अपनाने के लिए वह क्या कदम उठाने जा रही हैं उनके बारे में भी उन्हें सूचित करना चाहिए। सरकारी कदमों के बारे में अनुमान लगाया जा सके तो यह हमेशा बेहतर होता है।
राजस्व में कमी होने पर तलवार व्यय पर गिरेगी, भले ही मंदी के मध्य अर्थशास्त्री ऐसी सलाह नहीं दें। यह बात अहम है कि बजट अनुशासन नजर आए। ऐसे में आवंटन को मौजूदा स्तर पर बरकरार रखना होगा। जो पैसा व्यय न हो वह समाप्त हो जाना चाहिए। जिन क्षेत्रों में बहुत अधिक सार्वजनिक निवेश हो चुका है, उनसे कहा जाना चाहिए कि वे प्रदर्शन में सुधार दर्शाएं। उदाहरण के लिए रेलवे का राजस्व, राजमार्ग टोल, उच्च बिजली टैरिफ आदि। यदि वित्त मंत्री कड़ी निगाह डालें तो उन्हें और अधिक गैर कर राजस्व की राह निकालने में आसानी होगी। उदाहरण के लिए सरकारी बैंकों के लिए नई पूंजी जुटाने के लिए उनमें से एक या दो का निजीकरण कर दिया जाना चाहिए। इसका बोझ करदाताओं पर नहीं डालना चाहिए।
सबसे बढ़कर बजट को आधुनिक बनाने का वक्त आ गया है। सबसे पहले नकद अंकेक्षण से संग्रहण अंकेक्षण की ओर बढऩा चाहिए ताकि उन बिलों को शामिल किया जा सके जो बकाया हैं लेकिन चुकता नहीं हैं। इसी प्रकार सरकार को बैलेंस शीट से इतर मुद्दों की जानकारी देनी चाहिए जो अब तक बजट का हिस्सा नहीं हैं। इसे ऐसी खबरें आनी बंद होंगी जिनमें नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा छिपे हुए व्यय पर सवाल उठाया जाता है। मिसाल के तौर पर सरकारी कंपनियों द्वारा बैंकों से पैसे उधार लेकर खाद्य सब्सिडी बिल चुकाना या रेलवे संस्थानों से अग्रिम भुगतान लेना ताकि रेलवे के खाते में घाटा न दिखे। अधिक विश्वसनीय आंकड़े बेहतर होंगे और इससे सरकारी कामकाज की पारदर्शिता भी बढ़ेगी।
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