'इस्पात कीमतों में आगे तेजी की पर्याप्त गुंजाइश' | बीएस बातचीत | | ईशिता आयान दत्त / December 26, 2019 | | | | |
इस्पात कीमतों में नरमी के बाद पिछले दो महीनों के दौरान उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक एवं ग्रुप सीएफओ शेषगिरि राव ने ईशिता आयान दत्त से बातचीत में कहा कि सरकारी व्यय और खुदरा क्षेत्र से सकारात्मक तेजी उल्लेखनीय है। पेश हैं मुख्य अंश:
घरेलू इस्पात मांग के बारे में आप क्या कहेंगे?
इस्पात मांग में वृद्धि मार्च 2019 के अंत में 8.8 फीसदी थी। इसमें दो चीजें दिखीं- पहला, अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह प्रभावित हुआ और उसके बाद सरकारी व्यय में नरमी आई। इन दो कारकों के संयुक्त प्रभाव से आगे की तिमाहियों में एक बड़ी मंदी दिखी। पहली तिमाही में इस्पात की मांग में वृद्धि घटकर 6.6 फीसदी रह गई और दूसरी तिमाही के दौरान उसमें 2.3 फीसदी की और गिरावट आई। जबकि तीसरी तिमाही में यह घटकर 1 फीसदी से कम रह गई। लेकिन मासिक आधार पर सितंबर में थोड़ा सुधार दिखा। नवंबर में इस्पात की मांग में 0.7 फीसदी की वृद्धि हुई थी जबकि अक्टूबर में यह आंकड़ा 0.3 फीसदी था। सितंबर में इस्पात की मांग घटकर 0.25 फीसदी नकारात्मक हो गई। अक्टूबर में वृद्धि सकारात्मक हो गई और नवंबर में भी सकारात्मक रही। अब दिसंबर कहीं बेहतर है जबकि तीसरी तिमाही के लिए औसत वृ़द्धि अभी भी 1 फीसदी होगी। लेकिन हमारा मानना है कि अगली तिमाही के लिए रफ्तार सकारात्मक रहेगी।
वृद्धि को किन क्षेत्रों से रफ्तार मिल रही है?
बुनियादी तौर पर हमें खुदरा क्षेत्र से मांग आती दिख रही है। दूसरा क्षेत्र सरकारी परियोजना है। इसके अलावा पाइपलाइन, पुल, निर्माण एवं मेट्रो जैसे क्षेत्रों में गतिविधियां दोबारा शुरू हो रही हैं।
इस्पात कीमतों में लगातार दो महीनों के दौरान वृद्धि हुई है। क्या उसमें आगे और वृद्धि होने के आसार हैं?
मौजूदा कीमत 520 से 525 डॉलर प्रति टन है जिसमें लागत और किराया शामिल हैं जबकि आयात की लागत के मुकाबले उसमें 2,000 से 2,500 रुपये का अंतर है। इसलिए निश्चित तौर पर आगे कीमतों में तेजी की गुंजाइश है।
इस्पात कीमतों में पूरी तरह सुधार कब तक आने की उम्मीद है?
करीब 55 से 60 फीसदी इस्पात की खपत बुनियादी ढांचा, निर्माण एवं रियल एस्टेट क्षेत्रों में होती है। जहां तक रियल एस्टेट का सवाल है तो 1 करोड़ रुपये से कम कीमत वाले मकानों की श्रेणी में गतिविधियां दिख रही हैं। इसके अलावा सस्ते आवास श्रेणी में भी आर्थिक गतिविधियां दिख रही हैं। अन्य जिन क्षेत्रों में काफी पूछताछ हो रही है उनमें गोदामों के निर्माण और डेटा स्थानीयकरण के लिए डेटा केंद्रों की स्थापना जैसे क्षेत्र शामिल हैं। शेष 40 फीसदी इस्पात की खपत वाहन, मशीनरी एवं पूंजीगत वस्तु क्षेत्रों में होती है। इन क्षेत्रों में सुधार होने में थोड़ा वक्त लगेगा।
वित्त वर्ष 2021 में परिदृश्य कैसा रहने का अनुमान है?
मांग के मोर्चे पर अगले साल वैश्विक स्तर पर वृद्धि 1.7 फीसदी रह सकती है जो इस साल के लिए 3 करोड़ टन होगी। लेकिन आपूर्ति के मोर्चे पर उल्लेखनीय सुधार हुआ है। विश्व इस्पात संघ ने स्पष्टï तौर पर दिखाया है कि मई 2019 के मुकाबले नवंबर 2019 में आपूर्ति पक्ष का समायोजन 18 से 20 करोड़ टन रहा। यह उल्लेखनीय है। इसी समायोजन के कारण हमने कोकिंग कोल कीमतों में उल्लेखनीय सुधार देखा है। लेकिन लौह अयस्क में ऐसा नहीं हुआ जिसमें सुधार की दरकार है। जब तक लौह अयस्क की कीमतें इस स्तर पर रहेंगी तब तक इस्पात कंपनियों के लिए कीमत घटाने की गुंजाइश नहीं होगी।
बजट से इस्पात उद्योग की क्या उम्मीदें हैं?
बुनियादी तौर पर हम चाहते हैं कि बुनियादी ढांचे पर खर्च में वृद्धि के जरिये मांग में तेजी लाई जाए। इसके अलावा हम व्यक्तिगत कर दरों में भी कटौती चाहते हैं ताकि खर्च में बढ़ोतरी होने से मांग बढ़ेगी। तीसरा, विभिन्न कच्चे माल पर आयात शुल्क घटाने और इस्पात पर आयात शुल्क बढ़ाने की जरूरत है।
निजी क्षेत्र से निवेश की क्या स्थिति है?
फिलहाल भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जोखिम से बचने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन इस तिमाही में बेहतर प्रवाह दिखा जबकि कुल मिलाकर बैंकों की उधारी में नरमी है। बड़ी परियोजनाओं को रकम की जरूरत है। इसलिए बैंकों को अधिक ऋण वितरण पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय संस्थान तैयार करने की भी जरूरत है जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी वाली परियोजनाओं को ऋण देगा।
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