वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित विभिन्न पक्ष अब इससे जुड़े कानूनों और नियमों में नीतिगत बदलाव के लिए अपने सुझाव दे सकते हैं। वित्त मंत्रालय ने देश के सभी कर क्षेत्रों और राज्यों में शिकायत निपटान समिति के गठन के लिए जीएसटी अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं। इन समितियों में कर अधिकारी, सलाहकार और व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। ये समितियां विभिन्न पक्षों से जीएसटी के बारे में उनकी शिकायत पर प्रतिक्रिया लेकर जीएसटी परिषद और जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) को सुझाव देंगी। मंत्रालय द्वारा जारी निर्देश के मुताबिक इनमें नीतिगत स्तर के बदलाव के सुझाव भी शामिल होंगे। जीएसटी परिषद ने पिछले सप्ताह इस तरह की समिति के गठन को मंजूरी दी थी। केंद्रीय कर के मुख्य आयुक्त और क्षेत्र या राज्य के मुख्य आयुक्त समिति के सह-अध्यक्ष होंगे। हर समिति में व्यापारिक संगठनों के सदस्यों की अधिकतम संख्या 12 होगी। मंत्रालय के मुताबिक इसमें चार्टर्ड अकाउंटेंट, कर सलाहकार और कर विशेषज्ञ के रूप में चार सदस्य होंगे। यह समिति करदाताओं के समक्ष पेश आ रही विभिन्न समस्याओं की समीक्षा और समाधान करेगी। इनमें प्रक्रियागत समस्याएं और आईटी से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। यह जीएसटी कानूनों, नियमों, अधिसूचनाओं, फॉर्म और परिपत्र में बदलावों से जुड़े मामलों को जीएसटी परिषद सचिवालय और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के पास भेज सकती है। मंत्रालय ने कहा कि समिति जीएसटी पोर्टल से जुड़े सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) से संबंधित मामलों को जीएसटीएन को भेज सकती है। अगर समिति जीएसटी नीति से संबंधित किसी मामले को भेजती है तो सीबीआईसी की संबंधित नीति शाखा इसकी समीक्षा करेगी। अगर जरूरी हुआ तो इसे जीएसटी परिषद के समक्ष रखा जाएगा। जीएसटीएन शिकायतों को दर्ज करने के लिए एक पोर्टल विकसित करेगा ताकि इन शिकायतों का समय पर निपटारा किया जा सके। यह सुनिश्चित करना समिति के सह-अध्यक्षों की जिम्मेदारी होगी कि शिकायतें समय पर दर्ज की जाएं और पोर्टल पर उनके निपटान से संबंधित जानकारी को अपडेट किया जाए। शिकायतों पर की गई कार्रवाई की जानकारी पोर्टल पर दिखाई जाएगी ताकि हर कोई इसे देख सके। अगर किसी क्षेत्र में एक से ज्यादा राज्य हैं तो हर राज्य में समिति का गठन किया जाएगा। इसी तरह अगर किसी राज्य में एक से अधिक क्षेत्र हैं तो हर क्षेत्र में समिति का गठन किया जाएगा। इन समितियों का गठन दो वर्ष के लिए किया जाएगा। अगर कोई सदस्य बिना किसी कारण के लगातार तीन बैठकों में शामिल नहीं होता है तो माना जाएगा कि उसने समिति से इस्तीफा दे दिया है।
