कारोबारी विवादों को फौजदारी मामला न समझें तो सुधरेगा कारोबार
नेहा अलावधी / नई दिल्ली December 24, 2019
उद्योग संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की स्टार्ट अप काउंसिल के चेयरमैन और इन्फोसिस के सह संस्थापक कृष गोपालकृष्णन ने कहा कि कारोबारी और दीवानी मामलों को आपराधिक शिकायतों की तरह देखे जाने के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से भारत में निदेशकों, युवा उद्यमियों और विदेशी निवेशकों में डर पैदा हो गया है।
इस मसले के केंद्र में कंपनी अधिनियम के कुछ प्रावधानों को आपराधीकरण से अलग करने पर चल रही बातचीत है। एक खास मसला यह है कि अधिनियम में व्यक्तिगत अक्षमता और कॉर्पोरेट स्तर पर चूक को भी एकसमान गंभीरता से देखा गया है। गोपालकृष्णन ने कहा, 'इस तरह के कारोबारी और आर्थिक कानून, जो पंचाट या दीवानी न्यायालय में आते हैं, सरकार को उन्हें आपराधिक प्रक्रिया से अलग करने की जरूरत है, जब तक कि धोखाधड़ी या गलत काम करने का इरादा नहीं पाया जाता है।' उन्होंने कहा कि इससे न सिर्फ घरेलू व वैश्विक कारोबारियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा बल्कि भारत में इससे कारोबार में सुगमता को बढ़ावा मिलेगा।
इस साल सितंबर में गठित कंपनी कानून समिति (सीएलसी) ने अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्री को 14 नवंबर को सौंपी है, जिसमें इस साल की शुरुआत में कंपनी अधिनियम में संशोधन के माध्यम से इस तरह के 16 अपराधों को दीवानी अपराध के रूप में पुन:श्रेणीकरण किए जाने के बाद 46 संयोजनीय अपराधों को तार्किक बनाने की सिफारिश की गई है।
सीआईआई ने आगे एक बयान में कहा कि हालांकिभारत इस समय देश में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ते कारोबार और बेहतर उद्यम का माहौल है, लेकिन नियामकीय ढांचे में आपराधिक शिकायत से जुड़े कुछ पहलुओं पर विचार करने की जरूरत है, जिससे भारत में कारोबार की राह सुगम हो सके। उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित किए जाने की शर्त पर कहा, 'चाहे वह गलत इरादा हो, अनुपालन की चूक हो या किसी व्यक्ति द्वारा की गई धोखाधड़ी हो, सभी को एक ही लाठी से हांक दिया गया है। इस तरह के प्रावधानों से खाासकर नई कंपनियों के लिए कारोबार करना, निरंतरता बरकरार रखना और कारोबार में अनुमान लगा पाना बहुत कठिन होगा। उद्योग जगत चाहता है कि कंपनी कानून के तहत इन कानूनों की सख्ती कम की जाए।'
सीएलसी की रिपोर्ट में 66 शेष संयोजनीय अपराधों को कंपनी अधिनियम के तहत 23 अपराधों में फिर से श्रेणीकरण की सिफारिश की गई है। इसमें आगे कहा गया है कि इस तरह की शिकायतों को इनहाउस न्यायिकनिर्णय ढांचे में रखा जाएगा। इसमें अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों की तुलना में जुर्माने कम करने की भी सिफारिश की गई है। सरकार अपने स्तर पर इस तरह की कुछ चिंताओं को अपने स्तर पर दूर करने की कवायद कर रही है।
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