ऐसे समय में जब प्रमुख सूचकांक नई ऊंचाई को छू रहे हैं, कॉरपोरेट आय और शेयर कीमतों के बीच अंतर बढ़कर एक वर्ष के ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। सेंसेक्स 29 गुना के पी/ई मल्टीपल पर कैलेंडर वर्ष 2019 के समापन की ओर बढ़ रहा है, जो वर्ष के अंत के आंकड़ों के आधार पर 25 वर्षों में सर्वाधिक है। वर्ष 2000 में आईटी बूम के दौरान सेंसेक्स का पी/ई कुछ समय के लिए 30 गुना के स्तर को पार कर गया था।
हालांकि मौजूदा मूल्यांकन 1990 के दशक (जिसमें हर्षद मेहता घोटाला शामिल) के शुरू के मुकाबले कम है। पिछले 12 महीनों में सेंसेक्स लगभग 14 प्रतिशत चढ़ा, जबकि इस सूचकांक ने इस अवधि के दौरान ईपीएस में 6.7 प्रतिशत की कमी दर्ज की। कैलेंडर वर्ष के अंत में इस सूचकांक के लिए ईपीएस 1,527 रुपये पर था, जो अब घटकर 1,425 रुपये रह गया है। वाहन और दूरसंचार क्षेत्रों में आय घटने से ईपीएस पर दबाव पड़ा है।
दिसंबर 2018 के दौरान 23.5 गुना के औसत पी/ई मल्टीपल पर कारोबार कर रहे इस सूचकांक ने दिसंबर 2017 के 24.7 गुना की तुलना में गिरावट दर्ज की है। यह विश्लेषण बीएसई द्वारा दैनिक रूप से दर्ज पिछले पी/ई मल्टीपल के साथ ऐतिहासिक सूचकांक वैल्यू पर आधारित है। पिछले पांच वर्षों में यह तीसरा मौका है जब इस सूचकांक के शेयरों ने सालाना आधार पर आय में गिरावट दर्ज की है। सूचकांक की कंपनियों ने कैलेंडर वर्ष 2015 और कैलेंडर वर्ष 2016 में आय में कमी दर्ज की थी जिसके बाद वर्ष 2017 और 2018 में कुछ सुधार देखा गया। विश्लेषक मूल्यांकन को नजरअंदाज कर लार्ज-कैप शेयरों को खरीदने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि इसकी वजह शेयर कीमतों और आय के बीच अंतर है।
इक्विनोमिक्स रिसर्च ऐंड एडवायजरी सर्विसेज के प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम कहते हैं, 'ज्यादातर इक्विटी निवेशक (घरेलू और विदेशी दोनों) अच्छा प्रदर्शन करने वाले शेयर खरीद रहे हैं जिससे लार्ज-कैप शेयरों के मूल्यांकन में बुलबुले जैसी स्थिति को बढ़ावा मिल रहा है। दरअसल, घरेलू निवेशकों ने मिड-कैप और स्मॉल-कैप शेयरों से पैसा निकालकर लार्ज-कैप में निवेश किया है।'
विश्लेषकों का कहना है कि इससे लार्ज-कैप और मिड-/स्मॉल-कैप शेयरों के बीच मूल्यांकन और प्रदर्शन अंतर पैदा हुआ है। चोकालिंगम कहते हैं, 'मौजूदा तेजी में जहां कुछ रिटेल ऋणदाताओं और कंज्यूमर कंपनियों के शेयरों में मजबूती आई, वहीं ज्यादातर शेयरों पर दबाव बरकरार रहा।' इससे उन छोटे निवेशकों का इक्विटी पोर्टफोलियो प्रभावित हुआ, जो पारंपरिक रूप से दूसरे और तीसरे स्तर के शेयरों में निवेश करते हैं, जिनमें प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से चक्रीयता-केंद्रित रहा है।
अन्य विश्लेषक इस तेजी के लिए उन विदेशी निवेशकों से पूंजी प्रवाह में वृद्घि को जिम्मेदार मान रहे हैं जो ताजा अमेरिका-चीन व्यापार सौदे से वैश्विक वृद्घि में फायदा देख रहे हैं। डाल्टन कैपिटल एडवायजर्स के निदेशक यू आर भट का कहना है, 'मौजूदा तेजी घरेलू निवेशकों की छोटी भागीदारी के साथ साथ विदेशी प्रवाह की वजह से आई है। विदेशी निवेशक वर्ष 2020 की दूसरी छमाही के दौरान भारत में आर्थिक वृद्घि में सुधार की उम्मीद कर रहे हैं। कॉरपोरेट आय के संदर्भ में अच्छी खबर मिलने की संभावना है, हालांकि कीमतों पर इसका असर पहले ही दिख चुका है, जिससे अल्पावधि में तेजी के आसार सीमित हो गए हैं।'
इससे पहले, शेयर भाव और कॉरपोरेट आय के बीच अंतर अक्सर गिरावट (2015 की तरह) की वजह से देखा गया। चोकालिंगम का कहना है, 'बाजार अब पहले की तुलना में विदेशी पोर्टफोलियो पर ज्यादा निर्भर हो गया है, जिससे घरेलू निवेशकों के लिए जोखिम बढ़ा है।'
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