बीपीसीएल की कार्य संस्कृति आकर्षक | अमृता पिल्लई / मुंबई December 23, 2019 | | | | |
वर्ष 2016 में जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने 1976 के भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) राष्ट्रीयकरण अधिनियम को निरस्त कर दिया तो कभी निजी कंपनी रह चुकी बीपीसीएल के लिए एक नई जिंदगी की शुरुआत हुई। हालांकि कंपनी के पूर्व एवं मौजूदा कर्मचारियों और उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रीयकरण के बावजूद बीपीसीएल ने विदेशी एवं निजी कंपनियों की तरह अपनी कार्य संस्कृति को बरकरार रखा।
बीपीसीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, 'बीपीसीएल को हमेशा से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के तौर पर देखा गया जबकि यह एक सरकारी कंपनी है। इससे पता चलता है कि हमारी कार्य संस्कृति दूसरों के मुकाबले कितना अलग है।'
बीपीसीएल का सफर बर्मा ऑयल कंपनी से शुरू होकर बर्मा-शेल और फिर राष्ट्रीयकरण के बाद मौजूदा बीपीसीएल तक की है। इस कंपनी की शुरुआत स्कॉटलैंड से हुई थी जो दक्षिण एशियाई बाजारों से होकर 1950 में भारत के विनिर्माण क्षेत्र में अपना ठौर बनाया जब उसने मुंबई के ट्रॉम्बे में एक आधुनिक रिफाइनरी का निर्माण किया था। बाद में 1976 में बर्मा शेल के राष्ट्रीयकरण से मौजूदा बीपीसीएल के लिए रास्ता साफ हुआ।
समझा जाता है कि बीपीसीएल के राष्ट्रीयकरण का मुख्य कारण 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों के लिए ईंधन की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना था। केंद्र सरकार ने 20 नवंबर को बीपीसीएल में अपनी पूरी 53.29 फीसदी हिस्सेदारी को बेचने और उसके प्रबंधन पर अपना नियंत्रण एक रणनीतिक खरीदार को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है। इस मामले से अवगत लोगों का कहना है कि इसने कई विदेशी बोलीदाताओं को आकर्षित किया है और उनमें से अधिकतर तेल उत्पादक कंपनियां हैं जो अपने उत्पाद के लिए बाजार सुरक्षित करना चाहती हैं। जहां तक विदेशी अथवा निजी निवेशकों का सवाल है तो उन्हें राष्ट्रीयकरण से पहले की इसकी कार्य संस्कृति को लेकर संभवत: कोई समस्या नहीं होगी। कुछ लोगों का मानना है कि बीपीसीएल ने अपने राष्ट्रीयकरण से पहले की कार्य संस्कृति को अच्छी तरह बचाकर रखा है।
बीपीसीएल के पूर्व चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक सार्थक बेहरा ने कहा, 'राष्ट्रीयकरण के बावजूद बर्मा शेल वाली कार्य संस्कृति बरकरार रही। बर्मा शेल के तमाम कर्मचारी बीपीसीएल में बने रहे और नए कर्मचारियों को उसी संस्कृति में प्रशिक्षित किया गया। निर्णय लेने के मोर्चे पर कंपनी दूसरों से अलग थी। वह संकट प्रबंधन में कहीं अधिक पेशेवर और त्वरित प्रतिक्रिया देती थी।' बेहरा इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के भी चेयरमैन रह चुके हैं। हिंदुस्तान ऑयल एक्सप्लोरेशन कंपनी के प्रबंध निदेशक पी एलंगो ने कहा कि बीपीसीएल के कार्यालयों में अधिकारियों के नेमप्लेट लगाने का चलन नहीं है जो इस संस्कृति का प्रतीक है। उन्होंने कहा, 'निदेशकों और सहायकों के लिए वहां कोई नेमप्लेट नहीं है और एक-दूसरे को नाम से बुलाने की संस्कृति है।'
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