चुनावों में प्रचार के लिए खर्च की जाने वाली रकम पर चुनाव आयोग की कड़ी नजर होने के कारण उत्तर प्रदेश में सभी पार्टी के प्रत्याशी परेशान हैं। लेकिन इससे एफ एम रेडियो के प्रसारणकर्ताओं को मंदी में कारोबार करने का नया अवसर मिल गया है। ज्यादातर एफ एम चैनलों के प्रमुख मार्केटिंग अधिकारी लखनऊ में आकर बड़ी राजनीतिक पार्टियों के चुनाव प्रचार का ठेका पाने के लिए प्रस्तुतिकरण कर चुके हैं। रिलायंस के स्वामित्व वाला बिग एफ एम चैनल अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में ओबामा द्वारा रेडियो को प्रचार का एक प्रमुख हथियार बनाए जाने की बात को भुनाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि इसमें बाकी रेडियो चैनल भी पीछे नहीं हैं। सभी रेडियो चैनल चुनावों के दौरान अधिक से अधिक कारोबार कर मुनाफा कमाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए सभी एफ एम रेडियो चैनल भी प्रत्याशियों को अपने पैकेज बेचने की तैयारी में लगे हुए हैं। जहां एफ एम चैनल मौके को भुनाने की फिराक में है वहीं हर बार आम चुनाव में अच्छा कारोबार करने वाले प्रिंटिंग प्रेस के मालिक इस बार काफी निराश हैं। प्रिंटिंग प्रेस मालिकों का कहना है कि चुनावों के दौरान प्रत्याशी को आयोग को कुल छापे गए पोस्टरों का ब्योरा उपलब्ध कराना होगा जिसे घटाकर दिखाना एक टेढ़ी खीर है। प्रिंट व्यवसायी आलोक सक्सेना ने बताया कि एक तो पोस्टर पर प्रिंटर का नाम देना अनिवार्य है और दूसरा प्रत्याशी अगर कहे भी तो प्रेस का मालिक उसे ज्यादा पोस्टर छापने के बाद कम का बिल नही दे सकता है। अलीगढ़ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग सभी पार्टियों के प्रत्याशी खासे संपन्न हैं और चुनाव खर्च पर अंकुश लग जाने के बाद प्रचार के नए रास्ते तलाश रहे हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता अखिलेश प्ताप सिंह ने बताया कि कई रेडियो चैनलों के लोग उनकी पार्टी का प्रचार करने के लिए संपर्क साध रहे हैं। उनका कहना है कि प्रत्याशी अपनी सुविधा के हिसाब से प्रचार माध्यमों का चयन करेंगे। दूसरी ओर प्रिंटिंग प्रेस मालिकों का कहना है कि पोस्टर फैंसी लुक, आकार और बेहतर विजन के चलते आने जाने वालों का ध्यान आसानी से खींचते हैं। भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में प्रचार सामाग्री बेचने का काम कर रहे राम कुमार जायसवाल का कहना है कि गत विधान सभा चुनावों से ही फलेक्स की मांग काफी ज्यादा बढ़ गयी है। लखनऊ से बाहर की कंपनियां भी फलेक्स का काम कर रही हैं।
