ज्यादा क्षेत्रीय कारोबारी समझौतों व एसईजेड में कर छूट की जरूरत | शुभायन चक्रवर्ती / नई दिल्ली December 17, 2019 | | | | |
प्रस्तावित क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) पर बातचीत से सरकार के हटने के एक महीने बाद भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को और ज्यादा क्षेत्रीय कारोबारी समझौते करने की जरूरत है, जिससे विभिन्न उत्पादों के निर्यात के लिए बाजार खुल सकें और स्थापित मूल्य शृंखलाओं का फायदा उठाया जा सके। वाणिज्य विभाग को सौंपी रिपोर्ट में कहा गया है कि तरजीही मार्ग के माध्यम से वैश्विक कारोबार बढ़ रहा है और भारत को आगामी नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) के तहत और कारोबारी समझौतों पर हस्ताक्षर करने की जरूरत है। सीआईआई ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ कारोबारी समझौते पर हस्ताक्षर करने के भारत सरकार के कदम का भी समर्थन किया है।
रिपोर्ट में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) में 10 साल के लिए आयकर से पूर्ण छूट, निर्यातकों के लिए सस्ते कर्ज और हाइटेक शिपमेंट में तेजी लाने का सुझाव दिया है। बहरहाल रिपोर्ट में मौजूदा मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की समीक्षा करने की वकालत की गई है। साथ ही उद्योगों द्वारा एफटीए का लाभ लेने को लेकर अनिच्छा पर भी दुख जताया है। भारत इस समय एसोसिएशन आफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस ब्लॉक, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ कारोबारी सौदों के लिए बातचीत कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'कोरिया के साथ समझौते से हमें बाजार तक अतिरिक्त पहुंच बनाने का मौका मिलेगा और शुल्क कम होंगे, साथ ही गैर शुल्क बाधाएं भी कम होंगी।'
एफटीए साझेदारों को निर्यात के मामले में भारत का प्रदर्शन खराब रहा है। तीसरी दुनिया के साझेदार देशों ने उनके साथ बेहतर एफटीए किया है, जिससे भारत पिछड़ गया है। सीआईआई ने यह भी सुझाव दिया है कि अमेरिका व यूरोप से दवा कारोबार और एशियाई देशों से समुद्री उत्पाद के कारोबार को लेकर समयबद्ध प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, जिससे कारोबार सुगम हो सके। सीआईआई ने निर्यात बास्केट के विविधीकरण का सुझाव दिया है, जिसमें इस समय कच्चे माल, कृषि उत्पादों और कम मूल्यवर्धन वाले सामान की अहम भूमिका है। चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम के तहत पहले चरण में मोदी सरकार ज्यादा मूल्यवर्धित उत्पादों जैसे मोबाइल फोन के निर्यात पर जोर दे रही है। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के निर्यात बास्केट में हाइटेक एक्सपोर्ट की हिस्सेदारी 2000 और 2017 के बीच स्थिर बनी हुई है और यह सिर्फ 4.8 प्रतिशत है। इसके ऊपर विनिर्माण निर्यात 8 प्रतिशत है। यह एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओंं की तुलना में कम है।
|