नई दिल्ली का पुनर्निर्माण | संपादकीय / December 16, 2019 | | | | |
केंद्र सरकार मध्य दिल्ली के व्यापक पुनर्निर्माण की जिस योजना पर काम कर रही है उस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यह वह इलाका है जहां सरकार के कार्यालय और ऐतिहासिक महत्त्व वाला केंद्रीय सचिवालय तथा संसद भवन स्थित हैं। योजना की कुछ सरसरी जानकारी है: उदाहरण के लिए राजपथ पर इंडिया गेट और विजय चौक के दोनों ओर स्थित समाजवादी दौर की इमारतों को तोड़ा जा सकता है या उनका पुनर्निर्माण किया जाएगा। यह भी संभव है कि मौजूदा संसद और केंद्रीय सचिवालय समेत अंग्रेजी युग की कुछ इमारतों को संग्रहालय बना दिया जाए और वहां होने वाले कामकाज नये भवनों में हों। परंतु कुल मिलाकर इस पुनर्निर्माण के दायरे और इससे जुड़ी बातों को अनावश्यक रूप से अस्पष्ट रखा जा रहा है। एक बात जो पता है वह यह कि इसके डिजाइन में 'नये भारत के मूल्यों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व' होना चाहिए और इसमें 'भारतीय संस्कृति और सामाजिक परिवेश' समाहित होना चाहिए। ये बातें भी अस्पष्ट सी हैं। नई इमारतों की जीवनावधि भी पहले 150 और उसके बाद 250 वर्ष बताई गई।
अक्टूबर में कई फर्मों ने इस परियोजना के लिए निविदा प्रस्तुत की। इसकी लागत ज्ञात नहीं है लेकिन अनुमान है कि यह राशि 12,000 करोड़ रुपये से 25,000 करोड़ रुपये के बीच हो सकती है। यह बोली एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट कंपनी को हासिल हुई। अहमदाबाद की यह कंपनी साबरमती रिवर फ्रंट के विकास कार्य से जुड़ी रही है। यह वही परियोजना है जिसका जिक्र तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर किया करते थे। यह भी ज्ञात नहीं है कि इसका चयन कैसे किया गया और इसके मानक क्या थे? इस डिजाइन में मौजूदा केंद्रीय सचिवालय और राष्ट्रपति भवन के बीच प्रधानमंत्री के लिए एक विशाल नया आवास बनाना शामिल है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और उस संवैधानिक मान्यता के प्रतिकूल है जिसके तहत प्रधानमंत्री को कैबिनेट के समकक्षों में प्रथम माना जाता है। इंडिया गेट के षटकोणीय इलाके में स्थित ऐतिहासिक आवासों का क्या होगा यह अभी स्पष्ट नहीं है क्योंकि एचसीपी की बोली के बारे में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी बताती है कि इनमें से कुछ आवास सचिवालय के सहायक कार्यालय बनेंगे। अनुमान है कि यह पुनर्निर्माण कार्य 2024 तक पूरा हो जाएगा। संयोग की बात है कि लगभग उसी समय देश में अगले आम चुनाव होंगे।
इस परियोजना पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता है। यदि इसे सदियों तक बरकरार रखने लायक बनाना है तो ऐसा नहीं हो सकता कि इसके डिजाइन को गोपनीय रखा जाए और पांच साल से कम वर्ष में इसका निर्माण कर लिया जाए। इस बोली के बारे में वास्तुविदों, संरक्षणवादियों और विरासत के विशेषज्ञों की क्या राय रही? इन मशविरों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? भारतीय गणराज्य का सर्वाधिक पवित्र सार्वजनिक स्थल होने के बावजूद इसके बदलाव की योजना पर राष्ट्रीय बहस क्यों नहीं हुई? शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी यदि नहीं चाहते कि आने वाले दशकों में उनके कार्यकाल को हड़बड़ी में किए गए इस विकास कार्य के लिए जाना जाए तो उन्हें पारदर्शिता और मशविरा बढ़ाना चाहिए। सबसे अहम बात, इस पुनर्निर्माण कार्य के अन्य प्रभावों पर गौर किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए माना जा रहा है किनई संसद में ज्यादा लोक सभा सदस्यों की बैठक व्यवस्था होगी। क्या कुछ वर्ष बाद होने वाले परिसीमन के बाद हिंदी प्रदेशों के सांसदों की तादाद बढ़ सकती है जबकि आबादी पर नियंत्रण रखने वाले अन्य राज्यों में उतने ही सांसद रहेंगे? यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या इस बदलाव को लेकर इतनी गोपनीयता बरते जाने की यह भी एक वजह है?
|