बढ़ते आयात और धातु उत्पादन लागत में इजाफे से परेशान एल्युमीनियम विनिर्माताओं ने प्रमुख कच्चे माल पर आयात शुल्क में कटौती के जरिये शुल्क संरचना की विसंगतियां दूर करने की मांग की है। चूंकि प्रमुख कच्चे माल पर भारी आयात शुल्क की वजह से एल्युमीनियम के तैयार उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धी क्षमता गंवा रहे हैं, इसलिए एल्युमीनिमय विनिर्माताओं ने केंद्र सरकार से वित्त वर्ष 21 के बजट से पहले आवश्यक सामग्री पर शुल्क में कमी करने का अनुरोध किया है। एल्युमीनियम कंपनियों ने भारतीय एल्युमीनियम संघ (एएआई) के माध्यम से बात रखते हुए चार प्रमुख कच्चे माल - कैलसाइन्ड पेट्रोलियम (सीपी) कोक, कास्टिक सोडा लाई, एल्युमीनियम फ्लोराइड और ग्रीन एनोड पर आयात शुल्क घटाकर 2.5 प्रतिशत करने की मांग की है। इस कच्चे माल पर मौजूदा शुल्क 7.5 से 10 प्रतिशत के दायरे में है। उद्योग के एक सूत्र ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के तैयार उत्पाद ज्यादा महंगे और गैर-प्रतिस्पर्धी हैं। परिणामस्वरूप तैयार उत्पादों के सस्ते आयात के मुकाबले असुरक्षा उत्पन्न हो रही है और देश में मूल्य संवर्धन हतोत्साहित हो रहा है। एल्युमीनियम उद्योग की लागत संरचना में सुधार करने और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए प्रमुख कच्चे माल पर मूल सीमा शुल्क कम करना जरूरी है। भारतीय एल्युमीनियम उद्योग उलट शुल्क संरचना से भी परेशान है। जहां कैलसाइन्ड पेट्रोलियम कोक आयात पर 10 प्रतिशत शुल्क लगता है, वहीं एल्युमीनियम के तैयार उत्पादों पर 7.5 प्रतिशत शुल्क लगता है। इसी तरह कास्टिक सोडा लाई पर आयात शुल्क 7.5 प्रतिशत है, जबकि एल्युमिना पर पांच प्रतिशत शुल्क लगता है। सीपी कोक एक प्रमुख कच्चा माल है। एल्युमीनियम निर्माण लागत में इसका योगदान छह से आठ प्रतिशत रहता है। आयात रोकने के लिए 14 दिसंबर, 2017 को सीपी कोक पर आयात शुल्क 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया था जिसका उपयोग ईंधन के उद्देश्य से किया जा रहा था। इसके परिणामस्वरूप गैर-ईंधन दर्जे वाले पेट्रोलियम कोक का सीमा शुल्क बढ़ गया। एल्युमीनियम उद्योग सीपी कोक (गैर-ईंधन दर्जे वाले) का उपयोग करता है जिसमें अधिकतम 3.5 प्रतिशत गंधक होती है। यह भारत में बहुत कम उपलब्ध है और घरेलू आवश्यकता पूरी नहीं कर सकता है। इस वजह से देश सीपी कोक का शुद्ध आयातक बन गया है। इस आयात में एल्युमीनियम की प्रमुख हिस्सेदारी रहती है। एल्युमिना निर्माण लागत में एक अन्य प्रमुख कच्चे माल - कास्टिक सोडा लाई की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत रहती है। भारत कास्टिक सोडा का शुद्ध आयातक है और 60 प्रतिशत से अधिक आयात का उपभोग एल्युमीनियम उद्योग द्वारा किया जाता है। एएआई द्वारा वित्त मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा गया है कि भारतीय एल्युमीनियम उद्योग चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है और बढ़ते आयात, घरेलू बाजार में घटती हिस्सेदारी, उत्पादन और लॉजिस्टिक की बढ़ती लागत की वजह से काफी खतरे में है। इसके अलावा उद्योग के लिए कोयले की कमी और ऊर्जा लागत के कारण मौजूदा अनिश्चित स्थिति ने भारतीय एल्युमीनियम उद्योग की स्थिरता पर प्रतिकूल असर डाला है। प्रमुख सामग्री की बढ़ती लागत, कच्चे माल के आयात पर उलट शुल्क संरचना, कोयले के उपकर में बढ़ोतरी, अक्ष्य ऊर्जा खरीद की बाध्यता (आरपीओ), बिजली दर और लॉजिस्टिक लागत के कारण पिछले तीन से पांच सालों के दौरान एल्युमीनियम विनिर्माताओं की उत्पादन लागत 30 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है। घरेलू एल्युमीनियम कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) पर दामों में गिरावट और आयात में लगातार इजाफे जैसी प्रतिकूल स्थिति का सामना करना पड़ता है। मई 2018 से अक्टूबर 2019 के बीच एलएमई पर एल्युमीनियम के दाम 2,290 डॉलर प्रति टन से 25 प्रतिशत तक गिराकर 1,719 डॉलर हो गए हैं जिससे प्राप्तियों में कमी आई है। इसके अलावा अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव के कारण भी भारतीय एल्युमीनिमय उद्योग को आयात से भारी खतरा है।
