► बैंकों ने किस्तें नहीं मिलने पर 50,000 ट्रक किए हैं जब्त
► जब्त वाहनों में 40 प्रतिशत एक साल से भी कम पुराने
► छोटे एवं बड़े सभी ट्रांसपोर्टर मंदी की चपेट में
► कारोबार में नरमी से बढ़ी ट्रांसपोर्टरों की मुश्किलें
अर्थव्यवस्था की सुस्त चाल से व्यावसायिक परिवहन (ट्रांसपोर्ट) खंड भी अछूता नहीं रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में लॉजिस्टिक एवं परिवहन केंद्रों पर मध्यम से भारी क्षमता वाले खड़े ट्रकों का बड़ा जखीरा देखा सकता है। ये ऐसे वाहन हैं, जिन्हें बैंकों ने समय पर किस्त नहीं मिलने के बाद जब्त कर लिए हैं।
इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग (आईएफटीआरटी) को वित्त प्रदाताओं एवं ट्रांसपोर्टरों से जो आंकड़े मिले हैं, उनके अनुसार लॉजिस्टिक एवं परिहवन केंद्रों पर जब्त किए गए 50,000 ट्रक धूल फांक रहे हैं। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सायम) के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में मझोले एवं भारी क्षमता वाले 3.15 लाख ट्रकों की बिक्री हुई थी। दिल्ली स्थित संस्था आईएफटीआरटी में सीनियर फेलो एस पी सिंह कहते हैं,'देश में करीब 150 रीपजेशन यार्ड हैं और इनमें ज्यादातर व्यावसायिक वाहनों से पटे हैं। ये वाहन बैंकों के कब्जे में हैं।'
सिंह ने कहा कि 2008-09 और 2012-13 में आई मंदी के मुकाबले परिस्थितियां इस बार अलग हैं। उन्होंने कहा कि जब्त वाहनों में 40 प्रतिशत तो ऐसे हैं, जिन्हें सड़कों पर आए 12 महीने भी नहीं हुए थे। अर्थव्यवस्था की धीमी चाल और खपत कम होने से ढुलाई के लिए माल की उपलब्धता कम हो गई है और इससे ट्रांसपोर्टर किराया भी नहीं बढ़ा पा रहे हैं। काम के अभाव में खड़े वाहनों का जखीरा और ऊंचा परिचालन खर्च (ईंधन एवं टायर पर आने वाले खर्च) ने ट्रांपसपोर्टरों का कारोबार फीका कर किया है। कई ट्रांसपोर्टर 90 दिनों की अनिवार्य सीमा बीतने के बाद भी ऋण भुगतान नहीं कर पाए हैं। कई ट्रांसपोर्टरों को जब यह लगने लगा कि वे किस्त नहीं भर पाएंगे तो उन्होंने खुद ही ट्रक बैंकों के हवाले कर दिया।
निशांत सिंह के पास 10 ट्रक हैं, लेकिन वह इनमें सभी की किस्त पिछले तीन महीने से नहीं भर पाए हैं। उन्हें बैंक लगातार कॉल कर किस्त भरने की हिदायत दे रहे हैं। बैंक धमकी दे रहे हैं कि किस्त नहीं मिलने पर ट्रक जब्त कर लिए जाएंगे। सिंह कहते हैं, 'कारोबार बिल्कुल ठप पड़ चुका है। ऐसे में वाहन बैंकों के कब्जे में देने पर गंभीरता से विचार कर रहा हूं। मेरे पास इसके अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं रह गया है।'
नवी मुंबई में रहने वाले सिंह 1988 से परिहवन कारोबार में हैं। हालांकि वाहन बैंकों के पास खड़ा करना भी विकल्प नहीं है। बैंक पहले उन्हें पिछला बकाया चुकाने के लिए कह रहे हैं और उसके बाद ही वाहन उठाएंगे। सिंह ने अपनी तरफ से कुछ वाहन बेचने की भी कोशिश की थी, लेकिन इसमें वह सफल नहीं हुए थे। सिंह कहते हैं, 'कोई खरीदार नहीं मिल रहा है और मिल भी रहा है तो आधी कीमत दे रहा है।' ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के पूर्व अध्यक्ष बलमलकित सिंह ने कहा कि छोटे ट्रांसपोर्टरों के साथ ही बड़े ट्रांसपोर्ट भी अघोषित मंदी की चपेट में आ चुके हैं। उन्होंने कहा, 'मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए स्थिति सुधरने की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।'
विभिन्न गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के उच्च अधिकारियों ने कहा कि आम तौर पर ऐसा होता है कि जब वाहन मालिक किस्त नहीं चुका पाता है तो वाहन जब्त कर लिया जाता है। अधिकारियों ने कहा कि यह अंतिम विकल्प होता है और इससे किसी को कोई फायदा भी नहीं होता है, खासकर सुस्त बाजार में तो बिल्कुल नहीं। नए व्यावसायिक वाहनों के लिए वित्त मुहैया करने वाली कंपनी सुंदरम फाइनैंस में प्रबंध निदेशक टी टी श्रीनिवासराघवन ने कहा कि इन दिनों ऋण नहीं चुकाने की घटनाएं बढ़ गई हैं, हालांकि इसका हमेशा यह मतलब भी नहीं होता कि वित्त प्रदाता वाहन पर कब्जा कर लेंगे।
कुछ मामलों में यह किस्त भरने के लिए 70 दिन का समय होता है, लेकिन ऋण नहीं लौटाने की मंशा की भनक पाते ही बैंक वाहन उठा लेते हैं। श्रीनिवासराघवन ने कहा कि हालांकि कुछ मामलों में यह अवधि 120 दिन की होती है, लेकिन इसके बावजूद वाहन कब्जे में नहीं लिया जाता है। उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी भी सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद वाहन कब्जे में ले रही है।
उन्होंने कहा, 'हाल में ऐसी घटनाओं में इजाफा हुआ है। हालांकि ऐसे मामले हजारों में नहीं पहुंचे हैं।' श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनैंस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी उमेश रेवानकर ने कहा कि कुछ मालिक जान बूझकर किस्त नहीं चुका रहे हैं और बैंकों, वित्त संस्थानों को वाहन कब्जा करने दे रहे हैं। रेवानकर ने कहा, 'वाहन कब्जे में लेना कोई असामान्य बात नहीं है और मजबूत दौर में भी ऐसी चीजें होती हैं। जहां तक मेरा मानना है कि इन मामलों में तेजी नहीं दिखी है।'