ऋणात्मक दर से चिंता नहीं | अनूप रॉय / मुंबई December 15, 2019 | | | | |
अर्थव्यवस्था में वास्तविक ब्याज दर ऋणात्मक हो गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर तीन साल से ज्यादा समय के उच्च स्तर 5.54 प्रतिशत और नीतिगत रीपो दर 5.15 प्रतिशत है। अगर ऐसी स्थिति बरकरार रहती है तो इससे बचत हतोत्साहित होगी। यह ऐसे समय में हो रहा है, जब बचत पर ब्याज दर पहले ही घट रही है। बहरहाल इसे अभी निराशा का संकेत नहीं माना जा सकता। सीपीआई महंगाई दर में बढ़ोतरी की मुख्य वजह खाद्य कीमतें खासकर प्याज है, जो हाल में बढ़कर 200 रुपये किलो तक पहुंच गया। प्याज के दाम सामान्यत: 20 से 30 रुपये किलो होते हैं।
जनवरी में प्याज की नई फसल आने के बाद कीमतें नीचे आ सकती है और उसके बाद फरवरी से खाद्य महंगाई कम हो सकती है। उसके बाद यह देखना होगा कि खाद्य और ईंधन को छोड़कर प्रमुख महंगाई दर की चाल कैसी रहती है। इस हिसाब से देखें तो प्रमुख महंगाई दर अभी भारत में नरम बनी हुई है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह कहना सही नहीं होगा कि ब्याज दरें सिर्फ नीतिगत दरोंं से ज्यादा प्रमुख महंगाई दर होने से नकारात्मक हो गई हैं। यह अहम होगा कि महंगाई दर का संयोजन कैसा है। ब्लूमबर्ग में अर्थशास्त्री अभिषेक गुप्ता ने कहा, 'प्रमुख महंगाई अभी 3.2 से 3.5 प्रतिशत (यह इस पर निर्भर करता है कि क्या पैमाना अपनाया जाता है) है, जिससे संकेत मिलता है कि भारत में वास्तविक ब्याज दरें इस क्षेत्र में उच्च स्तर पर बनी हुई हैं।'
गुप्ता का कहना है, 'दुर्भाग्य से भारतीय रिजर्व बैंक खाद्य महंगाई पर ध्यान केंद्रित करता है और उसकी नीतियां कम समय के हिसाब से प्याज के दाम से संचालित होती हैं। हमारा मानना है कि रिजर्व बैंक अब दरें कम करने के पहले इंतजार करेगा कि महंगाई उच्च स्तर पर पहुंचे। ऐसी स्थिति अप्रैल में आ सकती है।' ऋणात्मक वास्तविक ब्याज दर के बारे में गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, 'मैं इस वास्तविक ब्याज दर के मसले पर नहीं जाना चाहता क्योंकि मौद्रिक नीति के कई लक्ष्य नहीं हो सकते। मैंने इसके पहले के एमपीसी के संवाददाता सम्मेलन में भी कहा था। मौद्रिक नीति समिति कई लक्ष्य नहीं साथ सकती।'
गवर्नर ने कहा था, 'लक्ष्य कीमतों में स्थिरता है, जो महंगाई दर है। इसे देखते हुए वृद्धि पर ध्यान रहता है। ऐसे में जब हम नीतिगत दर समायोजित करते हैं तो ध्यान रखते हैं कि यह कितने नीचे जा सकती है।' वास्तविक ब्याज दर को गंभीरता से न लेने की कई उचित वजहें हैं। एक बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा, 'यह सब तकनीकी शब्दावली है, जिसे वास्तविक दुनिया की अन्य हकीकतों के साथ देखा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए सामान्य सकल घरेलू उत्पाद कंपनियों के नकदी प्रवाह का प्रतिरूप है और वासस्तविक ब्याज दर नकदी प्रवाह पर ब्याज की लागत का संकेतक है।' अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ब्याज दरें नकारात्मक होने से ग्राहकों का व्यवहार नहीं बदलता, लेकिन इसके बने रहने पर बैंकों का आंतरिक मुनाफा प्रभावित होता है।
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