इस्पात विनिर्माताओं को लौह अयस्क आपूर्ति बाधित होने का डर | जयजित दास / भुवनेश्वर December 15, 2019 | | | | |
व्यापारिक खदानों की पट्टा अवधि 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने के बाद इस्पात विनिर्माताओं को लौह अयस्क आपूर्ति का भविष्य निराशाजनक नजर आ रहा है। गैर निजी उपभोग वाले खदान मालिकों की पट्टा अवधिखत्म होने के बाद विशेष रूप से इन पर निर्भर रहने वाले इस्पात विनिर्माताओं को 24 से 36 महीने के लिए लौह अयस्क आपूर्ति बाधित होने का डर सता रहा है। चूंकि ऐसे इस्पात विनिर्माता व्यापारिक आपूर्ति पर निर्भर रहते हैं इसलिए पट्टे की वैधता खत्म होने का मतलब यह है कि बाजार में 66 प्रतिशत लौह अयस्क आपूर्ति बंद हो जाएगी।
इस्पात उद्योग के एक सूत्र ने कहा कि लौह अयस्क की आपूर्ति में बाधा अपेक्षित है क्योंकि मौजूदा पट्टाधारकों से नए पट्टाधारकों की ओर जाना उतना आसान नहीं है, जितना कि अनुमान लगाया गया था। वन और पर्यावरण मंजूरी के अलावा खदानों का संचालन जारी रखने के लिए 20 से अधिक वैधानिक मंजूरी की जरूरत होती है। साथ ही मांग-आपूर्ति का यह असंतुलन कई इस्पात कंपनियों की पहले से जोखिम में चल रही वित्तीय स्थिति को और खतरे में डाल सकता है।
घरेलू इस्पात उद्योग मुख्य रूप से ओडिशा में उत्पादित लौह अयस्क पर निर्भर रहता है। यह राज्य सबसे ज्यादा मात्रा में लौह अयस्क उत्पादन करता है। पिछले वित्त वर्ष में ओडिशा ने 11.4 करोड़ टन लौह अयस्क का उत्पादन किया था जो 20.7 करोड़ टन के देशव्यापी उत्पादन का 50 प्रतिशत से अधिक रहा। ओडिशा का लौह अयस्क रणनीतिक रूप से इसलिए महत्त्वपूर्ण रहता है क्योंकि यह मुख्य रूप से इस्पात और अन्य अंतिम उपयोगकर्ता उद्योगों को आपूर्ति करता है, जबकि कर्नाटक और गोवा का जोर निर्यात पर रहा है।
लौह अयस्क से संपन्न राज्य लौह अयस्क खंडों की अवधि समाप्त होने के मद्देनजर पहले ही ऑनलाइन नीलामी प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं। कर्नाटक में ऑनलाइन नीलामी के लिए रखे गए चार लौह अयस्क खंडों को बोली के लिए अनुकूल प्रतिक्रिया मिली है। ओडिशा ने ऐसे 20 लौह अयस्क और मैंगनीज के पट्टों के लिए प्रक्रिया शुरू की है। इसके अलावा राज्य सरकार ने नौ नए या पूर्ण स्वामित्व वाले लौह अयस्क खंड अधिसूचित किए हैं। लौह अयस्क के 10 खंडों के पहले भाग के लिए राज्य ने 60 से अधिक कंपनियों से 176 बोलियां प्राप्त की हैं।
लेकिन लौह अयस्क के दाम और आपूर्ति का संतुलन इस बात पर निर्भर करेगा कि इन खदानों की पट्टा अवधि समाप्त होने के बाद इनसे कितनी जल्दी उत्पादन शुरू किया जा सकेगा। हालांकि सरकार का मानना है कि मालिकाना हक में यह बदलाव निर्बाध और शीघ्रता से होगा क्योंकि नए पट्टाधारक वन और पर्यावरण मंजूरियों को दो साल तक आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन इस्पात उद्योग ने इस दावे का खंडन किया है। इस्पात विनिर्माताओं का मानना है कि इन मंजूरियों का विस्तार होना ही सही समाधान नहीं है क्योंकि परिचालन जारी रखने के लिए खदानों को इन दोनों मंजूरियों के अलावा भी बहुत-सी मंजूरियों की जरूर रहती है।
सूचना मिली है कि लौह अयस्क की आपूर्ति में रुकावट से बचाने के लिए उद्योग के प्रमुख संगठनों - भारतीय इस्पात संघ (आईएसए), फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (फिक्की), एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (एसोचैम) और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने खदान और खनिज विकास एवं नियमन (एमएमडीआर) में संशोधन करवाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के सम्मुख अपनी बात रखी है। एक्विट रिसर्च ऐंड रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार 232 व्यापारिक लौह अयस्क खदानों के पट्टे मार्च 2020 तक समाप्त होने के कारण भारत के इस्पात क्षेत्र, विशेष रूप से स्पंज आयरन और द्वितीयक इस्पात निर्माताओं को लौह अयस्क आपूर्ति में कुछ समय के लिए दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। वित्त वर्ष 21 की पहली छमाही में 25-30 प्रतिशत घरेलू लौह अयस्क की कुल आपूर्ति प्रभावित होने का अनुमान जताया गया है।
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