दिवालिया विधेयक लोकसभा में पेश | रुचिका चित्रवंशी / नई दिल्ली December 12, 2019 | | | | |
सरकार ने ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में अहम बदलाव लाने वाले संशोधन विधेयक को आज लोकसभा में पेश किया। इसमें यह प्रस्ताव है कि किसी रियल एस्टेट कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिए कम-से-कम 100 या दस फीसदी खरीदारों को साथ आना जरूरी होगा। आईबीसी कानून की धारा सात में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है जो तमाम बदलावों को पश्चवर्ती प्रभाव से लागू करने की बात करता है। यह कानून लागू होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर नई शर्तों के मुताबिक दिवालिया अर्जी लगानी होगी। जिन मामलों में इकलौते फ्लैट खरीदार ने ही रियल एस्टेट कंपनी के खिलाफ दिवालिया कार्रवाई की अर्जी लगाई हुई है, उनमें भी संशोधित प्रावधानों का अनुपालन एक महीने के भीतर करना होगा। यह सीमा उन सभी मामलों में लागू होगी जिनमें ऋणदाताओं के समूह के प्रति वित्तीय ऋण की देनदारी है या प्रतिभूतियों या जमा की शक्ल में है और सभी वित्तीय लेनदारों के लिए अधिकृत प्रतिनिधि के तौर पर काम करने के लिए एक ट्रस्टी या एजेंट की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स के पार्टनर मनोज कुमार कहते हैं, 'आईबीसी में प्रस्तावित संशोधनों का मूल मुद्दा दिवालिया प्रक्रिया की राह में आ रही बाधाओं को दूर करना और निवेशकों के लिहाज से अधिक आकर्षक बनाना है।' हालांकि सरकार ने उद्योग संगठनों की मांग के अनुरूप एक कंपनी के लिए कुल सीमा नहीं बढ़ाई है। फिलहाल एक कंपनी के खिलाफ दिवालिया समाधान प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक लाख रुपये की सीमा रखी गई है। कर्जग्रस्त कंपनियों के खरीदारों को साफ-सुथरा परिवेश देने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए यह प्रावधान रखा गया है कि कर्जदार कंपनी की संपत्ति की जब्ती, कुर्की या निरोध जैसी आपराधिक प्रक्रिया नहीं हो सकती है।
आईबीसी संशोधन विधेयक में इस आशय से नया उपबंध 32ए जोड़ा गया है। यह कहता है कि दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही ऋणग्रस्त कंपनी के खिलाफ उस समय से कोई अभियोग नहीं चलाया जाएगा जब से समाधान योजना स्वीकृत हो जाएगी। पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर अंशुल जैन कहते हैं, 'भले ही यह प्रावधान सफल बोलीकर्ताओं के लिए बड़ी राहत लेकर आएगा लेकिन अकेले आईबीसी कानून से यह मसला नहीं दूर हो सकता है। इसके लिए दूसरे कानूनों में जरूरी बदलाव करने होंगे।'
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