'सहमति प्रबंधकों' की बढ़ेगी भूमिका | |
नेहा अलावधी, करण चौधरी और निधि राय / 12 11, 2019 | | | | |
निजी डेटा संरक्षण विधेयक अगर मौजूदा स्वरूप में पारित हो जाता है तब एक नए वर्ग वाली कंपनियों और संस्थाओं का उभार होगा जिनका मुख्य काम ही किसी उपयोगकर्ता के डेटा इस्तेमाल के लिए अनुमति लेना होगा। निजी डेटा संरक्षण विधेयक में सहमति प्रबंधक की अवधारणा उभर रही है जो भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा नियमित मौजूदा अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क की तर्ज पर हो सकता है। हालांकि ऐसी स्थिति में उद्योग विश्लेषकों के पास सवाल ज्यादा और जवाब कम हैं। निजी डेटा संरक्षण विधेयक 2019 को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त प्रवर समिति के पास गुरुवार को विचार के लिए भेजा गया है जिसमें सहमति लेने वाले प्रबंधक को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि डेटा के लिए जिम्मेदार व्यक्ति जो उपयोगकर्ता को एक सुलभ, पारदर्शी मंच के जरिये उसकी सहमति पाने या असहमति जताने और समीक्षा करने का विकल्प मुहैया करा सके।
सहमति के प्रारूप को भी तैयार किया गया है जिसे डेटा संरक्षण एवं सशक्तीकरण संरचना (डीईपीए) कहा जाता है और इसकी संकल्पना पॉलिसी थिंक टैंक आईस्प्रिट ने की है जिसके लिए 'सहमति' की शुरुआत कर इस साल जुलाई में औपचारिक रूप दे दिया गया था। सहमति का गठन धारा 8 गैर-लाभ के तौर पर किया गया है। इसके परीक्षण से जुड़ा यह संगठन डीईपीए को बढ़ावा दिए जाने की दिशा में काम करता है और इसका मकसद निजता को बरकरार रखने के साथ-साथ डेटा का इस्तेमाल सरकारात्मक चीजों के लिए करना है। इसी तरह की समान सहमति प्रणाली का प्रस्ताव आईस्प्रिट ने रखा था ताकि स्वास्थ्य डेटा और दूरसंचार डेटा के लिए सहमति दी जा सके। हालांकि मौजूदा स्वरूप में इस विधेयक से कई सवालों के जवाब नहीं मिलते। उद्योग विशेषज्ञों का डर यह है कि इस पर व्यापक अमल करने से आगे बाधाएं दिख सकती हैं।
कोएन एडवायजरी ग्रुप के पार्टनर विवान शरण कहते हैं, 'हम यह उम्मीद करते हैं कि अमल से जुड़ी चुनौतियां जरूर होंगी क्योंकि ऐसी अवधारणा देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए नई है। इस मसौदा विधेयक के मुताबिक सहमति प्रबंधकों का मानकीकरण करना जरूरी होगा और इसके लिए नियामकीय मंजूरी जरूरी होगी। हमारा यह मानना है कि इसमें स्वस्थ मुकाबला होगा और कोई गेटकीपिंग नहीं होगी।'
दूसरा मुद्दा यह भी है कि आखिर सहमति प्रबंधक की प्रणाली कैसे काम करेगी। सहमति का नियमन आरबीआई के तहत किया जाता है लेकिन क्या प्रत्येक क्षेत्र के सहमति प्रबंधकों के लिए अलग-अलग नियामक होंगे? इकीगाई लॉ में पॉलिसी निदेशक नेहा चौधरी कहती हैं, 'सहमति प्रबंधकों से यह उम्मीद की जाएगी कि वे सुलभ, पारदर्शी और सूचना का इस्तेमाल किए जाने वाले मंच से सहमति प्रबंधन को अंजाम दे सकें। उनका स्वरूप क्या होगा? डेटा प्रवाह की संरचना क्या होगी? वैश्विक संगठनों के लिए इसका क्या अर्थ होगा अभी यह तय होना बाकी।'
इसके अलावा कारोबारी मॉडल को लेकर भी सवाल है। वह कहती हैं, 'आरबीआई के तहत अकाउंट एग्रीगेटर मामूली फीस लेते हैं। बाद में हम इस तरीके का नियमन देख सकते हैं लेकिन मौजूदा विधेयक में कोई स्पष्टता नहींं है और हमें नियमन का इंतजार करना होगा।' सहमति के लिए आरबीआई, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) और पीएफआरडीए एक साथ मिलकर नियमित संस्थाओं को अपने नियंत्रण के जरिये यूजरों की सहमति के साथ डेटा साझा करने की इजाजत देती हैं।
प्रवर समिति को भेजने के संबंध में विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में प्रस्ताव पेश किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। प्रस्ताव के अनुसार संयुक्त प्रवर समिति में लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे। प्रसाद ने समिति में शामिल किए गए लोकसभा के 20 सदस्यों के नाम गिनाते हुए कहा कि इस संबंध में राज्यसभा को संदेश भेजकर 10 सदस्यों के नाम देने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि यह समिति बजट सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक अपनी रिपोर्ट संसद को देगी। समिति में लोकसभा से मीनाक्षी लेखी, पी पी चौधरी, राज्यवद्र्धन सिंह राठौड़, तेजस्वी सूर्या, एस एस अहलूवालिया, हिना गावित और संजय जायसवाल (भाजपा), कांग्रेस के गौरव गोगोई तथा एस ज्योति मणि, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय, द्रमुक की कनिमोई, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, बीजद के बी महताब और बसपा के रितेश पांडे आदि शामिल होंगे।
बैंक, स्वास्थ्य सेवाओं, वित्तीय तकनीक कंपनियों को इस बात का डर है कि सरकार के साथ गैर-निजी डेटा साझा करने से उनके कारोबारी हित प्रभावित होंगे जिन्हें कंपनियां काफी मशक्कत के साथ जुटाती हैं। बैंकों को इस बात का भी डर है कि डेटा का गलत इस्तेमाल हो सकता है।
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