भारतीय परिचालन में और इक्विटी लगा रहा बैंक | अनूप रॉय / December 10, 2019 | | | | |
डॉयचे बैंक एजी के ट्रेजरर (समूह) डी जोशी ने कहा है कि मौजूदा मंदी साइक्लिकल है और वैश्विक निवेशक भारत में दीर्घावधि की संभावना देख रहे हैं और शायद इसी वजह से शेयर सूचकांक उच्चस्तर पर हैं। अनूप रॉय को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा, वैश्विक स्तर पर पुनर्गठन के बावजूद बैंक भारतीय परिचालन में और इक्विटी लगा रहा है क्योंकि इस देश में उसके कारोबार का प्रदर्शन बेहतर है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश...
अमेरिकी प्रतिफल का ग्राफ हाल में पलट गया था, लेकिन अब सामान्य हो गया है। क्या आपको लग रहा है कि मंदी आ रही है?
अर्थशास्त्र के लिए यह संभावना अगले साल या दो साल में काफी कम है, लेकिन भूराजनैतिक असर ज्यादा हो सकता है। अमेरिका की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है। हमें बहुत ज्यादा परेशानी नहीं दिख रही, लेकिन भूराजनैतिक लिहाज से बड़ा जोखिम यह है कि क्या अमेरिका-चीन विवाद का संतोषजनक हल निकलेगा या फिर यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन निकल जाएगा। जब इसका समाधान निकलेगा, बाजार से कई अनिश्चितता दूर हो जाएगी जो व्यापार और निवेश को रोके रखा है।
क्या आगे डॉलर का वर्चस्व घटेगा?
लंबे समय से डॉलर का वर्चस्व बना रहा है। मुझे नहीं लगता कि डॉलर में बड़ी गिरावट देखने को मिली हो। चूंकि यूरोप में अगले कुछ वर्षों में पूंजी बाजार यूनियन व बैंकिंग यूनियन काफी ज्यादा होंगे, लिहाजा इस बात की संभावना ज्यादा है कि अभी के मुकाबले पोर्टफोलियो में यूरो का अनुपात ज्यादा हो जाए।
डॉयचे बैंक वैश्विक स्तर पर पुनर्गठन कर रहा है। क्या बैंक में नकदी को लेकर कोई चिंता है?
करीब एक लाख करोड़ यूरो की शुद्ध बैलेंस शीट में से नकदी भंडार करीब 240 अरब यूरो का है। इसकी तुलना में 2007 में 2 ट्रिलियन यूरो की बैलेंस शीट में नकदी भंडार 65 अरब यूरो का था। हमारा मुख्य इक्विटी अनुपात 8.6 फीसदी था, जो अभी 13.4 फीसदी है। हमारी बैलेंस शीट और कारोबार अभी काफी अलग है। ऐसे में पुनर्गठन ने हमें समझा दिया है कि हम सही दिशा में हैं।
इस पुनर्गठन का भारतीय परिचालन पर क्या असर होगा?
हमारे पोर्टफोलियो में भारत का स्थान काफी अहम है। भारत न सिर्फ आगे बढ़ रहा है बल्कि यह हमारे लिए इक्विटी पर उच्च रिटर्न वाला कारोबार भी है। ऐसे में पिछले साल भारतीय परिचालन का लाभ 30 फीसदी बढ़ा। यहां अच्छी टीम है, हमारी 17 शाखाएं हैं और यह लाभकारी कारोबार है। हमने 2019 की शुरुआत में भारतीय कारोबार में 50 करोड़ यूरो की नई पूंजी लगाई है। अभी भारत में कुल पूंजी 2 अरब यूरो है, लेकिन भारतीय कारोबार में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए अगले कुछ वर्षों में हम 50 करोड़ यूरो और लगाएंगे।
आरबीआई यहां विदेशी डेरिवेटिव कारोबार लाने की कोशिश कर रहा है। आपकी राय में क्या यह व्यावहारिक है?
ऑफशोर यानी विदेशी डेरिवेटिव आपको काफी लचीला रुख मुहैया कराता है। हमेशा ही निवेशक के पोर्टफोलियो के विशाखन का तत्व होगा। लेकिन यह वास्तव में नियामकीय व्यवस्था, क्लाइंटों के विशिष्ट निवास स्थान आदि पर निर्भर करता है और इस पर भी कि क्लाइंट इस लेनदेन को कहां से करना चाहेगा। कभी-कभार क्लाइंट के पास सिर्फ एक विकल्प होगा और उस हद तक हमारे पास उस क्लाइंट को कुछ लचीलापन मुहैया कराने की दरकार होगी, जो उनकी प्राथमिकता पर निर्भर करेगा।
क्या भारतीय कंपनियों के लिए विदेशी फंडिंग अनिवार्य रूप से सस्ती है?
नकदी उपलब्ध है, लेकिन यह उनके लिए उपलब्ध है जो बाजार में सबसे मजबूत हैं। बाजार हमेशा से ही विभेदकारी रहने वाला है और नकदी का प्रवाह सिर्फ मजबूत कंपनियों की ओर जाएगा।
भारत में जीडीपी घट रही है, लेकिन शेयर सूचकांक रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं? आप इसे कैसे देखते हैं?
भारत में आपको अलग माहौल दिख रहा है, जहां बाजार अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है और कई शेयर अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है, जिसमें बैंक व कुछ एनबीएफसी शामिल है। कुछ औद्योगिक कंपनियां अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है। दूसरे छोर पर कुछ ऐसी कंपनियां हैं जो तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन उसके पास लंबी अवधि के लिहाज से पर्याप्त नकदी नहीं है, लेकिन छोटे मार्जिन के साथ कारोबार खड़ा कर रही है।
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