► भारत में क्लिनिकल परीक्षण के प्रावधान हैं काफी सख्त ► वैश्विक क्लिनिकल परीक्षण में से महज 1.2 फीसदी ही भारत में ► दवा कंपनियां अक्सर विदेश में कराती हैं क्लिनिकल परीक्षण ► सरकार भारत में ही नई दवाओं के परीक्षण पर कर रही विचार ► आईसीएमआर से संबद्ध संस्थानों में खोले जाएंगे परीक्षण केंद्र
एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम करने वाली क्षमता लगातार बढऩे और विदेश में विकसित दवाओं के भारत पहुंचने में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए सरकार अब अपनी निगरानी में देश के भीतर ही नई दवाओं के क्लिनिकल परीक्षण कराने पर विचार कर रही है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के तत्वावधान में ये परीक्षण कराने की तैयारी चल रही है।
यह क्लिनिकल परीक्षण से संबंधित भारतीय व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव होगा। इसके पहले सरकार ने क्लिनिकल परीक्षण कराने की कोशिश शायद ही की है। अभी तक नई दवाओं के क्लिनिकल परीक्षण मूलत: भारत की निजी दवा कंपनियों या विदेशी दवा कंपनियों ने ही कराए हैं। लेकिन क्लिनिकल परीक्षण को लेकर नियामकीय सख्ती के कारण तमाम दवा कंपनियां ये परीक्षण भारत के बाहर कराने लगी हैं। इसका असर यह हुआ कि दुनिया भर में होने वाले क्लिनिकल परीक्षण में से महज 1.2 फीसदी ही भारत में हो रहे हैं जबकि बीमारी के वैश्विक बोझ में भारत का हिस्सा 20 फीसदी है। इतने कम परीक्षण होने से नई दवाओं को भारतीय मरीजों तक पहुंचाने में लंबा वक्त भी लगता है। ऐसे में अगर भारतीय आबादी पर नई दवाओं के क्लिनिकल परीक्षण सरकार ही कराती है तो नई दवाएं जरूरतमंद लोगों तक जल्द पहुंच सकेंगी।
पिछले महीने हुई एक बैठक में अधिकारियों ने क्लिनिकल परीक्षण से जुड़े पहलुओं पर चर्चा की। आईसीएमआर से संबद्ध संस्थानों में क्लिनिकल परीक्षण केंद्र बनाने का प्रस्ताव रखा गया है जो निजी क्लिनिकल शोध संगठनों द्वारा संचालित परीक्षण की मौजूदा प्रणाली की जगह लेगा। आईसीएमआर, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन और शोध संगठनों के अधिकारियों ने नई एंटीबायोटिक दवाओं के क्लिनिकल परीक्षण के लिए सरकारी केंद्र खोलने की व्यवहार्यता पर चर्चा की। वैसे यह महज शुरुआत है। अगर यह पहल परवान चढ़ती है तो इस मॉडल को दूसरी तरह की दवाओं के लिए भी आजमाया जा सकता है।
बैठक में वैश्विक नियामकीय ढांचे के अनुरूप व्यवस्था बनाने पर भी चर्चा हुई। वहां मौजूद रहे एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'हमारे अस्पतालों में मरीजों की भरमार है। लेकिन ऐसे परीक्षणों के लिए नैतिक मसलों पर बेहद सावधानी से गौर करना होगा। अध्ययन के प्रारूप एवं मरीजों की संख्या को भी स्पष्ट तौर पर परिभाषित करने की जरूरत होगी।' सरकार अपने परीक्षण केंद्र खोलने के पहले शोध संगठनों के अनुभवों के बारे में जानना चाहती है। क्लिनिकल परीक्षण एवं नैतिक मसलों से जुड़ी चुनौतियों को समझने की कोशिश भी हो रही है। इस दिशा में अंतिम फैसला लिए जाने के पहले कई बैठकें होंगी। हरी झंडी मिलने के बाद भारतीय औषधि महानियंत्रक से अंतिम मंजूरी लेनी होगी।
एक अधिकारी का कहना है कि सरकार स्थायी परीक्षण केंद्र खोलना चाहती है ताकि वे केवल दवाओं के परीक्षण पर ही ध्यान दें। इसके लिए आईसीएमआर से संबद्ध संस्थानों पर निगाह है। आईसीएमआर भारत में जैव-चिकित्सा शोध का संवद्र्घन एवं समन्वय करने वाली शीर्ष संस्था है। यह देश में सूक्ष्मजीव-रोधी दवाओं के प्रतिरोध (एएमआर) की बढ़ती घटनाओं को लेकर चिंतित है। एएमआर का मतलब एक बैक्टीरिया, वायरस या कुछ अन्य सूक्ष्मजीवों की वह क्षमता है जो एंटीबायोटिक का असर नहीं होने देती है। अधिकारी कहते हैं, 'भारत में जल्द परीक्षण कराने का फायदा यह होगा कि नई दवाएं हमारे मरीजों को जल्दी मिलेंगी। एएमआर की समस्या बड़ी होती जा रही है और हमें उस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है।'
हालत यह है कि आज अधिकतर दवा कंपनियां नई एंटीबायोटिक दवाओं के विकास पर काम ही नहीं कर रही हैं। आज इस्तेमाल हो रही आधी एंटीबायोटिक दवाओं की खोज 1950 के दशक में ही हुई थी। एंटीबायोटिक विकास पर नजर रखने वाले थिंक टैंक 'प्यू' के मुताबिक जून 2019 तक 42 नई एंटीबायोटिक दवाओं के विकास की प्रक्रिया चल रही थी। समस्या यह है कि नई एंटीबायोटिक दवाएं उपलब्ध होने पर भी केवल गिने-चुने देशों में ही उनका पंजीकरण होता है।
वैश्विक एंटीबायोटिक शोध एवं विकास भागीदारी के प्रवक्ता कहते हैं कि औषधि क्षेत्र में सबसे अहम खोज रही एंटीबायोटिक ने करोड़ों लोगों की जान बचाई है, लेकिन अब इनका तिलिस्म खत्म हो रहा है। प्रवक्ता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने से छाती का सामान्य संक्रमण या ऑपरेशन भी काफी खतरनाक होने लगे हैं। जब तक नई तरह की एंटीबायोटिक दवाएं नहीं विकसित होती हैं, तब तक हम पर सामान्य बीमारी के भी जानलेवा होने का खतरा मंडराता रहेगा।' प्रवक्ता ने कहा कि नई दवाओं के शोध एवं विकास में भारत की भूमिका काफी अहम देखते हुए आईसीएमआर के साथ करार किया गया है।
क्लिनिकल परीक्षण उद्योग से जुड़े भरत दोशी आईसीएमआर के संबद्ध संस्थानों में दवाओं के परीक्षण के प्रस्ताव को सकारात्मक कदम मानते हैं। दोशी कहते हैं, 'इस पहल को सरकार का समर्थन होने से परीक्षण में शामिल पक्षों और समाज के बीच पारदर्शिता एवं भरोसे का अहसास जगेगा।'
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