गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करेंगे और विधेयक पर इसी दिन चर्चा भी होगी। रविवार शाम जारी लोकसभा की कार्यसूची में यह बताया गया। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) यह सुनिश्चित करना चाहता है कि यह विधेयक लोकसभा के साथ साथ राज्यसभा से भी परित हो जाए। विधेयक बुधवार को राज्यसभा के पटल पर रखा जाएगा। संसद का यह सत्र शुक्रवार को समाप्त हो रहा है।
इस विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने का प्रयास किया गया है। हालांकि विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए विपक्षी दलों के पास दोनों सदनों में सदस्य संख्या की कमी है लेकिन फिर भी पार्टियों ने फैसला किया है कि वे विभिन्न रणनीतियों के साथ विधेयक का विरोध करने के अपने कारणों को उजागर करने का प्रयास करेंगे।
विधेयक का विरोध करने के पीछे विपक्षी दलों का मुख्य तर्क यह है कि विधेयक संविधान की आत्मा के खिलाफ जाता है। राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, 'वे (सरकार) संख्या में अधिक (संसद में सदस्य संख्या) हैं लेकिन उनकी संवैधानिक नैतिकता काफी कम है।' लोकसभा में कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक के पारित होना महात्मा गांधी के विचारों के पर मोहम्मद अली जिन्ना की सोच की जीत को चिह्नित करेगा। उन्होंने कहा कि धर्म के आधार पर नागरिकता देना 'भारत में एक पूरे समुदाय को बाहर निकालने तथा बांटने के लिए एक राजनीतिक कवायद' है जो भारत को 'पाकिस्तान के हिंदुत्व स्वरूप' में तब्दील कर देगा।
विपक्षी दलों के सदस्य इस बात को रखेंगे कि विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 15 में वर्णित समानता एवं धार्मिक भेदभाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। तृणमूल कांग्रेस ने संसद के दोनों सदनों में नोटिस दिया है कि इस विधेयक को पेश नहीं किया जाना चाहिए। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक संशोधन का सुझाव दिया है कि विधेयक में कुछ निर्धारित देशों तथा धर्मों के स्थान पर इसे 'सभी पड़ोसी देशों के शरणार्थी' किया जाए। फिलहाल, विधेयक में कहा गया है कि इस्लाम को छोड़कर सभी धर्मों के सताए गए लोगों को नागरिकता दी जाएगी।
विपक्षी दलों के सदस्य इस बात का भी विरोध कर रहे हैं कि विधेयक नागरिकता के लिए अनेक ऐसे नियम ला रहा है जो असंवैधानिक और आदिवासी लोगों के हितों के विपरीत हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) असम में विफल हो गई लेकिन सरकार इसे फिर भी 27 राज्यों में लागू करना चाहती है। असम में बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों के हिंदुओं समेत कुल 19 लाख लोग एनआरसी से बाहर हो गए और गोरखा समुदायों को एनआरसी सूची में अपने नाम नहीं मिले। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक बेरोजगारी और आर्थिक मंदी से ध्यान हटाने का एक प्रयास है। पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और पंजाब के मुख्यमंत्रियों का कहना है कि वे विधेयक का विरोध करेंगे और उन्हें अपने-अपने राज्यों में एनआरसी की जरूरत नहीं है। हालांकि विपक्षी दलों ने अभी यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या वे विधेयक के खिलाफ वोट करेंगे या सदन से बाहर चले जाएंगे।
वहीं, भाजपा महासचिव राम माधव ने कहा कि भारत पड़ोसी देशों से प्रताडि़त अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए कर्तव्यबद्ध है क्योंकि वे धार्मिक आधार पर देश को विभाजित करने के फैसले के कारण 'पीडि़त' हैं। उन्होंने कहा कि इसी तरह का एक कानून 'आप्रवासियों (असम से निष्कासन)' अधिनियम वर्ष 1950 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा बनाया गया था। संभावना है कि शिवसेना सरकार के पक्ष में मतदान करे और साथ ही तेलंगाना राष्ट्र समिति, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और दूसरे क्षेत्रीय दल भी सरकार के पक्ष में मतदान कर सकते हैं।
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